विश्व की पहली’ बॉयलर-रहित गन्ना प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी अब व्यावसायिक रूप से लाभप्रद : कंपनी |

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(सुष्मिता गोस्वामी)


लंका (असम), 15 अप्रैल (भाषा) बॉयलर-रहित गन्ना प्रसंस्करण तकनीक अब व्यावसायिक रूप से लाभप्रद हो गई है। इस प्रणाली को विकसित करने वाली कंपनी ने यह दावा किया है। इसके बारे में दावा किया जाता है कि यह दुनिया की पहली ऐसी प्रणाली है और चार साल पहले इसे असम के एक संयंत्र में स्थापित किया गया था,

कंपनी के अधिकारियों ने दावा किया कि मध्य असम के होजई जिले में एक संयंत्र इस तकनीक का उपयोग कर रहा है, जो किसी भी अवशिष्ट बायोमास को जलाए बिना, गन्ना रस से गुड़ का उत्पादन करने की सुविधा देता है।

स्प्रे इंजीनियरिंग डिवाइसेस लिमिटेड (एसईडीएल) द्वारा विकसित की गई इस तकनीक को चार साल पहले इको टेक एग्रो मिल्स में स्थापित किया गया था, और अब कंपनी का दावा है कि यह अपने ‘व्यावसायिक रूप से लाभप्रद’ चरण में पहुंच गई है।

एसईडीएल के प्रबंध निदेशक विवेक वर्मा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘जब कोई नई तकनीक विकसित की जाती है तो उसमें चुनौतियां होती हैं। इस मामले में, ताप संतुलन जैसी समस्याएं थीं। लेकिन हम भाग्यशाली थे कि हमें एक औद्योगिक इकाई का समर्थन प्राप्त था। अब हम उस चरण में पहुंच गए हैं, जहां यह तकनीक सभी गन्ना प्रसंस्करण संयंत्रों के लिए व्यावसायिक रूप से फायदेमंद है।’’

उन्होंने कहा कि पारंपरिक चीनी प्रसंस्करण इकाइयों के विपरीत, एसईडीएल द्वारा विकसित कम तापमान-वाष्पीकरण (एलटीई) प्रणाली बॉयलर के बिना काम करती है, जिससे संयंत्र 100 प्रतिशत ईंधन मुक्त हो जाता है।

एसईडीएल के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि इको टेक एग्रो मिल्स की स्थापना चार साल पहले 50-60 करोड़ रुपये के निवेश के साथ की गई थी, जिसमें भूमि और उपकरणों का मूल्य भी शामिल है, जिसमें नई बॉयलर-रहित तकनीक स्थापित की जा रही है।

उन्होंने कहा कि संयंत्र ने पहले तीन वर्षों में लगभग 30 करोड़ रुपये का कारोबार किया था, और अपने चौथे और चालू वर्ष में भी लाभ कमाने की उम्मीद है।

अधिकारी ने कहा कि एसईडीएल तकनीक के साथ गुड़ संयंत्र परियोजना स्थापित करने के लिए पूंजी निवेश 500 टन गन्ना प्रतिदिन (टीसीडी) पेराई क्षमता के लिए लगभग 50 करोड़ रुपये होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘अब तकनीक को बेहतर बनाया जा रहा है, इसलिए संयंत्र कच्चे माल यानी गन्ने की उपलब्धता और गुणवत्ता के आधार पर पहले भी लाभ सुनिश्चित कर सकते हैं।’’

इको टेक एग्रो मिल्स के प्रवर्तक प्रदीप जैन ने कहा कि संयंत्र वर्तमान में अपनी स्थापित क्षमता के लगभग 40 प्रतिशत पर काम कर रहा है। यह गन्ने की कमी के कारण केवल 200 टीसीडी पर काम कर रहा है।

जैन ने कहा कि वे क्षेत्र में गन्ना खेती को बढ़ावा दे रहे हैं, उत्पादकों को बेहतर उपज के लिए नई किस्मों और तकनीकों को अपनाने के लिए राजी कर रहे हैं।

जैन ने कहा कि उनकी कंपनी ने किसानों के वित्तीय लाभ दिखाने के लिए पड़ोसी क्षेत्रों में 700-800 बीघा जमीन पट्टे पर ली है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम अभी शुरुआती चरण में हैं और हमें आने वाले वर्षों में और भी बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है।’’

उन्होंने गन्ने से रस निकालने के बाद बचे सूखे गूदे के अवशेष खोई के उपयोग की संभावना को रेखांकित किया। इसका उपयोग कागज की लुगदी बनाने और ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

जैन ने कहा कि लंका संयंत्र में वर्तमान में उत्पादित खोई को उनकी कंपनी के दूसरे उद्योग में ले जाया जा रहा है, जहां इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय



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