(जैस्मीन स्किनर, यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न क्वींसलैंड)
क्वींसलैंड, आठ अप्रैल (द कन्वरसेशन) अगर आपने अपने घर में बिल्ली पाल रखी है, तो सावधान हो जाएं। पालतू बिल्लियां धूल के कणों के बाद एलर्जी उभरने की दूसरी सबसे बड़ी वजह हैं।
लेकिन, पालतू बिल्लियों से एलर्जी का वास्तविक स्रोत क्या है? और क्या बिल्लियों की कुछ नस्लें एलर्जी के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील होती हैं? बिल्लियों से एलर्जी को लेकर कई भ्रम और गलतफहमियां हैं। आइए, इनमें से कुछ को दूर करें।
बाल जिम्मेदार नहीं
-आम धारणा के विपरीत बिल्ली के बाल लोगों में एलर्जी के लिए जिम्मेदार नहीं होते। अलबत्ता, बिल्ली की लार और त्वचा की ग्रंथियों में पैदा होने वाला प्रोटीन ‘फेल डी 1’ एलर्जी के खतरे को बढ़ावा देता है। यूं तो बिल्लियों के शरीर में एलर्जी के लिए जिम्मेदार आठ कण का उत्पादन होता है, लेकिन विभिन्न अध्ययनों में ‘फेल डी 1’ को इनमें सर्वाधिक घातक पाया गया है।
‘फेल डी 1’ एक सूक्ष्म प्रोटीन है, जो कपड़ों और अन्य सतहों से आसानी से चिपक जाता है। यह हवा में भी लंबे समय तक सक्रिय रह सकता है, जिससे इसके श्वास के रास्ते शरीर में प्रवेश करने की आशंका रहती है।
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि ‘फेल डी 1’ उन घरों में भी मौजूद हो सकता है, जहां बिल्लियां नहीं होतीं। बिल्ली की लार के माध्यम से इस प्रोटीन के कण उसके बालों और त्वचा पर आ सकते हैं। यही नहीं, सर्दियों के मौसम के बाद जब बिल्लियों के बाल और मृत त्वचा झड़ती है, तो यह प्रोटीन वातावरण में भी फैल सकता है।
ऐसे में बिल्ली के बाल में भले ही ‘फेल डी 1’ जैसे एलर्जी वाले कण मौजूद हो सकते हैं, लेकिन यह खुद एलर्जी के लिए जिम्मेदार नहीं होता। बिल्लियों की बिना बाल वाली नस्ल ‘स्फिंक्स’ में भी ‘फेल डी 1’ का स्राव होता है।
नस्ल भी कसूरवार नहीं
-अध्ययन दिखाते हैं कि न तो बिल्ली के बालों की लंबाई और न ही उसकी त्वचा की रंगत निर्धारित करती है कि उसके शरीर में कितनी मात्रा में ‘फेल डी 1’ का उत्पादन होगा।
नस्ल के विपरीत, लिंग और ‘फेल डी 1’ के उत्पादन के मामले में व्यक्तिगत भिन्नताएं तय करती हैं कि कुछ बिल्लियां अन्य बिल्लियों के मुकाबले एलर्जी के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील क्यों होती हैं।
यह लंबे समय से ज्ञात है कि आमतौर पर बिना नसबंदी वाले बिल्लों में बिल्लियों या नसबंदी वाले बिल्लों की तुलना में अधिक मात्रा में ‘फेल डी 1’ का उत्पादन होता है। कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि ज्यादा उम्र की बिल्लियों में छोटी उम्र की बिल्लियों के मुकाबले ‘फेल डी 1’ का उत्पादन काफी कम होता है।
बिल्लियों की कई नस्लों को ‘हाइपोएलर्जेनिक’ बताया जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनसे “एलर्जी का खतरा बिल्कुल नहीं” होता। 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, “बिल्ली की “हाइपोएलर्जेनिक नस्ल” के बारे में अभी तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल सका है।
यूं घटा सकते हैं जोखिम
-विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि पालतू बिल्लियों को ‘फेल डी 1’ प्रोटीन रोधी टीका लगवाना उनसे एलर्जी के प्रसार का जोखिम घटा सकता है। हालांकि, ‘फेल डी 1’ रोधी टीकाकरण को प्रोत्साहित करने से पहले यह जानना जरूरी है कि बिल्लियों के शरीर में इस प्रोटीन की क्या भूमिका है। मौजूदा साक्ष्य से पता चलता है कि ‘फेल डी 1’ बिल्लियों में अन्य जीवों से संचार में सहायक ‘फेरोमोन’ के उत्पादन को बढ़ावा देने के अलावा उनकी त्वचा की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता है। हालांकि, इसकी पुष्टि के लिए और अध्ययन की जरूरत है।
इस बात के प्रारंभिक सबूत भी मिले हैं कि बिल्लियों के दैनिक आहार में अंडा शामिल कर उनके शरीर में ‘फेल डी 1’ बनने को कम किया जा सकता है। इसके अलावा, घर में साफ-सफाई का खास ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है।
(द कन्वरसेशन) पारुल पवनेश
पवनेश