नयी दिल्ली, 18 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश के 17 निजी विद्यालयों की वित्तीय स्थिति की जांच के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में दो सदस्यीय समिति गठित की।
इन विद्यालयों ने कोविड-19 महामारी के दौरान ली गई 15 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क को समायोजित करने या वापस करने के आदेश को चुनौती दी है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
आदेश में कहा गया है, ‘‘इसमें प्रत्येक मामले में तथ्यों और खातों की जांच की आवश्यकता है। इन परिस्थितियों में, हम दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी पी मित्तल और चार्टर्ड अकाउंटेंट आदिश मेहरा की सदस्यता वाली एक समिति गठित करते हैं, जो खातों की जांच करेगी और संबंधित अवधि के दौरान उन विद्यालयों की वित्तीय स्थिति के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।’’
उच्च न्यायालय ने निजी विद्यालयों को निर्देश दिया था कि वे 2020-2021 के दौरान जब महामारी अपने चरम पर थी, तब अभिभावकों द्वारा भुगतान की गई फीस का 15 प्रतिशत समायोजित करें या प्रतिपूर्ति करें।
उच्चतम न्यायालय में 17 निजी विद्यालयों द्वारा याचिकाएं दायर की गई थीं।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रत्येक निजी स्कूल के तथ्यों और वित्तीय परिस्थितियों पर विचार किए बिना ‘‘व्यापक दृष्टिकोण’’ अपनाया है और इसे लागू रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय के आदेश में बहुत व्यापक दृष्टिकोण अपनाया गया है, यह संभव नहीं है, आपको प्रत्येक मामले पर गौर करना होगा।’’
भाषा धीरज दिलीप
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