गुवाहाटी, पांच मार्च (भाषा) असम में विपक्ष ने ‘डी’ (संदिग्ध) मतदाताओं की दुर्दशा को रेखांकित करते हुए बुधवार को राज्य के एकमात्र निरुद्ध केंद्र को बंद करने और विधानसभा में एनआरसी रिपोर्ट पेश किये जाने की मांग की। निरुद्ध केंद्र (डिटेंशन सेंटर) को अब ‘ट्रांजिट कैंप’ कहा जाता है।
इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) विधायक अमीनुल इस्लाम ने दावा किया कि लाखों लोगों को ‘डी’ मतदाता घोषित कर दिया गया जबकि ना तो किसी अधिकारी ने उनके घर का दौरा किया और ना ही कोई उचित सत्यापन किया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे हजारों मामले हैं जब परिवार में केवल एक व्यक्ति को ‘डी’ मतदाता घोषित किया गया है, लेकिन उसके भाई-बहन और माता-पिता अब भी भारतीय नागरिक हैं। इससे कई परिवार बर्बाद हो गए हैं और हजारों युवाओं के सपने चकनाचूर हो गए हैं।’’
इस्लाम ने विधानसभा अध्यक्ष से ‘डी’ मतदाताओं और निरुद्ध केंद्र में रहने वाले लोगों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक सर्वदलीय दल के गठन की मांग की। इस्लाम ने कहा, ‘‘यहां तक कि विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) ने भी प्रतिवादियों द्वारा पर्याप्त सबूत प्रस्तुत किए जाने के बावजूद फैसले सुनाए हैं। ये अदालतें बहुत पक्षपाती हैं और वहां न्याय नहीं होता है।’’
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सदस्य मनोरंजन तालुकदार ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सत्ता में आने से पहले निरुद्ध केंद्र को बंद करने का वादा किया था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और असम के गोलपारा जिले में केंद्र को जारी रखा।
उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र में बंद सभी भारतीयों को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए और विदेशियों को निर्वासित किया जाना चाहिए। निरुद्ध केंद्र को ध्वस्त किया जाना चाहिए। वहां कई फैसले एकतरफा लिए जाते हैं और उच्चतम न्यायालय ने भी इस पर सवाल उठाए हैं।’’
निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने सदन का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि न केवल हिंदुओं और मुसलमानों को ‘डी’ मतदाता घोषित किया गया है, बल्कि नेपाली, कोच-राजबोंगशी, हाजोंग, गारो और राभा समुदायों के लोगों को भी इस श्रेणी में रखा गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का काम पूरा हो जाता तो यह पूरी समस्या सुलझ जाती। एनआरसी ने पता लगाया कि कौन भारतीय है और कौन नहीं। लेकिन यह सिर्फ़ झूठ है। अगर एनआरसी गलत है, तो कृपया इसे सुधारें।’’
31 अगस्त, 2019 को 19,06,657 लोगों को बाहर करके अंतिम एनआरसी जारी की गई थी। हालांकि, इसे अभी तक भारत के महापंजीयक द्वारा अधिसूचित नहीं किया गया है, जिससे दस्तावेज की कोई आधिकारिक वैधता नहीं रह गई है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह एनआरसी को विधानसभा में पेश करे। फिर हम केंद्र को इसकी सिफारिश कर सकते हैं और इस विदेशी मुद्दे को स्थायी रूप से सुलझा सकते हैं।’’
निरुद्ध केंद्र को मानवाधिकारों के विरुद्ध बताते हुए गोगोई ने यह भी दावा किया कि मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा के सत्ता में आने के बाद उनके पूर्ववर्ती सर्बानंद सोनोवाल की सरकार की तुलना में बहुत कम विदेशियों को निर्वासित किया गया है, जबकि कांग्रेस के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के कार्यकाल में यह सबसे अधिक था।
कांग्रेस विधायक नूरुल हुदा ने उदाहरण देते हुए कहा कि हजारों भारतीय नागरिक वर्षों से निरुद्ध केंद्र में कष्ट झेल रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘लोग केंद्र के अंदर मर रहे हैं, लेकिन उनके शव बांग्लादेश नहीं भेजे जाते हैं। इन्हें अंतिम संस्कार के लिए असम में रिश्तेदारों को सौंप दिया जाता है। अगर वे बांग्लादेशी थे, तो आप उन्हें उस देश में क्यों नहीं भेजते?’’
सोमवार को एक लिखित जवाब में, मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि चुनाव विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, असम में वर्तमान में 1,18,134 ‘डी’ मतदाता हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 24 फरवरी तक ‘ट्रांजिट कैंप’ में 258 व्यक्ति थे।
निरुद्ध केंद्र के अस्तित्व का समर्थन करते हुए, भाजपा विधायक दीपायन चक्रवर्ती ने सरकार से सभी हिंदू ‘डी’ मतदाताओं को केंद्र से रिहा करने का आग्रह किया।
एआईयूडीएफ विधायक अशरफुल हुसैन ने कहा कि ‘डी’ मतदाता सभी बुनियादी सुविधाओं और आधार कार्ड, पैन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे पहचान दस्तावेजों से वंचित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह एक राजनीतिक समस्या है और इसे कानूनी प्रणाली द्वारा हल नहीं किया जा सकता है। स्थायी समाधान के लिए एक राजनीतिक समाधान खोजना होगा।’’
संसदीय कार्य मंत्री चंद्र मोहन पटवारी ने कहा कि एफटी के आदेश के बिना किसी को भी ट्रांजिट कैंप में नहीं रखा गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम बंदियों को विदेशी घोषित किए जाने के बाद रखते हैं। हम उन्हें निर्वासन होने तक रखते हैं। साथ ही, ‘डी’ मतदाता अवधारणा सरकार या पुलिस द्वारा पेश नहीं की गई थी। यह निर्वाचन आयोग द्वारा किया गया था और उन्होंने किसी को ‘डी’ मतदाता करार देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे।’’
असम में ‘डी’ मतदाताओं की अवधारणा 1997 में निर्वाचन आयोग द्वारा शुरू की गई थी। इसने उन लोगों को शामिल करते हुए एक सूची तैयार की जो अपनी भारतीय नागरिकता के पक्ष में सबूत नहीं दे सके। भारत में कहीं और ‘डी’ मतदाता नहीं हैं।
भाषा अमित वैभव
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