उच्चतम न्यायालय ने बंधक बनाने के मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त किया

Ankit
3 Min Read


नयी दिल्ली, एक मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कथित तौर पर बंधक बनाए जाने के मामले में स्वापक नियंत्रण ब्यूरो (एनसीबी) के निदेशक को निर्देश दिया गया था कि वह आरोपी को मुआवजे के रूप में पांच लाख रुपये का भुगतान करें।


न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा कि मुआवजा ‘कानून के अधिकार’ के बिना दिया गया। शीर्ष अदालत एनसीबी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही है, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के आदेश को चुनौती दी गई है।

इस मामले में, एक संयुक्त अभियान में, एनसीबी ने दो व्यक्तियों -मान सिंह वर्मा और अमन सिंह के पास से 1,280 ग्राम मादक पदार्थ (कथित तौर पर हेरोइन) जब्त किया। इसके बाद, वर्मा के खिलाफ स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 की धारा 8 (सी), 21 और 29 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया और उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

प्रयोगशाला से रिपोर्ट आने से पहले आरोपी ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में एनडीपीएस के विशेष न्यायाधीश के समक्ष जमानत याचिका दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। आरोपी ने आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

तीस जनवरी 2023 को प्रयोगशाला ने अपनी रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि नमूने में हेरोइन और अन्य मादक पदार्थों की जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई। बाद में, नमूने को आगे की जांच के लिए केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) चंडीगढ़ भेजा गया।

पांच अप्रैल 2023 को सीएफएसएल, चंडीगढ़ से प्राप्त रिपोर्ट में पाया गया कि नमूनों के दूसरे सेट में भी किसी भी मादक पदार्थ की मौजूदगी नहीं पाई गई।

परिणामस्वरूप, एनसीबी ने विशेष न्यायाधीश, एनडीपीएस के समक्ष एक ‘क्लोजर रिपोर्ट’ (मामला बंद करने का अनुरोध) दायर की, जिसके अनुसार प्रतिवादी को जिला जेल, बाराबंकी से रिहा कर दिया गया।

‘क्लोजर रिपोर्ट’ और प्रतिवादी की रिहाई के बावजूद, उच्च न्यायालय लंबित जमानत अर्जी पर निर्णय देने के लिए आगे बढ़ा और पाया कि प्रतिवादी एक युवा व्यक्ति है, जिसे प्रारंभिक प्रयोगशाला निष्कर्ष के बावजूद चार महीने तक गलत तरीके से कैद रखा गया था और इसलिए, एनसीबी के निदेशक को मुआवजा देने का निर्देश दिया गया।

उच्च न्यायालय के आदेश पर टिप्पणी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘समय-समय पर न्यायालयों द्वारा क्षेत्राधिकार का उल्लंघन करने को स्पष्ट रूप से नकारा गया है। वर्तमान मामला भी ऐसा ही एक उदाहरण है। यह निर्विवाद है कि उच्च न्यायालय में दायर जमानत याचिका निरर्थक हो गई थी, क्योंकि जिला न्यायालय ने प्रतिवादी को पहले ही रिहा कर दिया था।

भाषा सुभाष अविनाश

अविनाश



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *