नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने जनता के लिए मुकदमेबाजी की लागत और याचिकाओं की बहुलता के कारण निपटान में देरी पर चिंता व्यक्त की और केंद्र से पूछा कि क्या राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण बनाना विवेकपूर्ण है।
कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एसएटी) में रिक्तियों को भरने से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि इन न्यायाधिकरणों में रिक्तियों को भरने के लिए याचिकाएं आती रहती हैं।
पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहीं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा, ‘‘जब हमारे पास प्रबंधन के लिए जनशक्ति नहीं है, तो इन संस्थानों का क्या मतलब है।’’
अदालत ने कहा कि इस स्थिति ने केवल याचिकाओं और याचिका की लागत को बढ़ाया है। उसने कहा, ‘‘लोग हर आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती देते हैं और फिर मामला वापस न्यायाधिकरण के समक्ष चला जाता है। इससे केवल मामलों के निपटान में देरी होती है।’’
भाटी ने कहा कि ये नीतिगत निर्णय थे, जो उच्चतम स्तर पर लिए गए थे।
पीठ ने सहमति जताई कि प्रत्येक राज्य में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और एसएटी होना एक वैधानिक आवश्यकता है। लेकिन उसने पूछा कि क्या यह ‘‘वास्तव में उद्देश्य पूरा करता है’’।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘इन न्यायाधिकरणों के समक्ष दायर याचिकाओं को उच्च न्यायालय द्वारा निपटाया जा सकता है और यदि हम उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में वृद्धि करते हैं, तो यह उद्देश्य पूरा करेगा और सेवा मामलों से संबंधित मामलों की सुनवाई में तेजी लाएगा।’’
उन्होंने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपने अनुभव को याद किया जब न्यायाधिकरण में रिक्तियों को भरने के लिए एक ऐसी याचिका मिली और उन्होंने इसके बजाय सरकार से उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या बढ़ाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, ‘‘अब, मुझे पता चला है कि उच्च न्यायालय में स्वीकृत संख्या बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है।’’
याचिका का निपटारा करने वाली पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि वे न्यायाधिकरण में रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया को रिक्तियों के सृजन से छह महीने पहले ही पूरा कर लें।
अदालत ने कहा कि याचिका 2022 में दायर की गई थी जब एसएटी का एक न्यायिक सदस्य सेवानिवृत्त होने वाला था और उसके स्थान पर कोई नियुक्ति नहीं की गई थी।
भाषा वैभव माधव
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