भारत में कैंसर के निदान के बाद पांच में से तीन रोगियों की चली जाती है जान: अध्ययन |

Ankit
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नयी दिल्ली, 24 फरवरी (भाषा) वैश्विक कैंसर डेटा के विश्लेषण से अनुमान लगाया गया है कि भारत में हर पांच में से तीन लोग कैंसर के निदान के बाद दम तोड़ देते हैं, जिसमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अत्यधिक बोझ पड़ता है।


‘द लांसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया’ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में मृत्यु दर का अनुपात लगभग चार में से एक पाया गया, जबकि चीन में यह दो में से एक था।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन में पाया गया कि चीन और अमेरिका के बाद भारत कैंसर की घटनाओं के मामले में तीसरे स्थान पर है, और दुनिया भर में कैंसर से मौत के 10 प्रतिशत से अधिक मामले भारत में सामने आते हैं, जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।

शोधकर्ताओं ने यह भी अनुमान लगाया कि आने वाले दो दशकों में, भारत को कैंसर की घटनाओं से संबंधित मौतों के प्रबंधन में एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि आबादी की उम्र बढ़ने के साथ मामलों में दो प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि होगी।

टीम ने ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी (ग्लोबोकॉन) 2022 और ग्लोबल हेल्थ ऑब्जर्वेटरी (जीएचओ) डेटाबेस का उपयोग करके पिछले 20 वर्ष में भारत में विभिन्न आयु समूहों और लैंगिक समूहों में 36 प्रकार के कैंसर की प्रवृत्तियों की जांच की।

अनुसंधानकर्ताओं ने लिखा, ‘‘भारत में कैंसर का निदान होने पर पांच में से लगभग तीन व्यक्तियों की मृत्यु होने की संभावना है।’’

निष्कर्षों से यह भी पता चला कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करने वाले पांच सबसे आम कैंसर सामूहिक रूप से भारत में कैंसर के 44 प्रतिशत मामलों में कारक हैं।

हालांकि, भारत में महिलाओं को कैंसर का अधिक प्रकोप झेलना पड़ा है क्योंकि स्तन कैंसर सबसे प्रचलित कैंसर बना हुआ है, जो पुरुषों और स्त्रियों दोनों के कैंसर के नए मामलों में 13.8 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है, वहीं गर्भाशय ग्रीवा कैंसर तीसरा सबसे बड़ा (9.2 प्रतिशत) कारक है।

महिलाओं में, कैंसर के नए मामलों के लगभग 30 प्रतिशत स्तन कैंसर के हैं, इसके बाद गर्भाशय ग्रीवा कैंसर है के लगभग 19 प्रतिशत मामले हैं। पुरुषों में सबसे अधिक पहचान मुख कैंसर के मामलों की हुई, जिसके 16 प्रतिशत नए मामलों दर्ज किए गए।

अनुसंधान दल ने विभिन्न आयु समूहों में कैंसर के प्रसार में भी बदलाव पाया, जिसमें वृद्धावस्था आयु समूह (70 वर्ष और उससे अधिक आयु) में कैंसर का सबसे अधिक बोझ देखा गया। 15 से 49 वर्ष के आयु वर्ग में कैंसर के मामले दूसरे सबसे अधिक पाए गए और कैंसर से संबंधित मौतों के 20 प्रतिशत मामले इसी आयु वर्ग से जुड़े थे।

इस अध्ययन के ‘भारत में कैंसर के वर्तमान और भविष्य के परिदृश्य का पहला व्यापक मूल्यांकन’ होने का दावा किया गया, जो विभिन्न आयु समूहों और लिंग असमानताओं पर केंद्रित है।

ग्लोबोकॉन डेटाबेस दुनिया भर के 185 देशों और क्षेत्रों के लिए गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर सहित 36 प्रकार के कैंसर के मामलों, उनसे मौतों और उनकी व्यापकता का अनुमान प्रदान करता है।

भाषा वैभव नेत्रपाल

नेत्रपाल



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