नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे के कारण अगले पांच वर्षों में कृषि और आवास ऋण खंड के 30 प्रतिशत में चूक का जोखिम बढ़ सकता है। बीसीजी द्वारा किए गए एक विश्लेषण में यह आशंका जताई गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, जिसके कारण तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ रही है और कृषि उत्पादन में कमी आ रही है।
रिपोर्ट कहती है कि इसके परिणामस्वरूप, बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित लोगों की प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आई है।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का लगभग आधा कर्ज, प्रकृति और उसके पारिस्थितिकी तंत्र पर काफी हद तक निर्भर है, इसलिए कोई भी प्राकृतिक आपदा उनके मुनाफे को प्रभावित करती है।
अनुमान के मुताबिक, 2030 तक भारत के 42 प्रतिशत जिलों में तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है। इसलिए, अगले पांच साल में तापमान वृद्धि से 321 जिले प्रभावित हो सकते हैं।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन बैंकों को देश की ऊर्जा परिवर्तन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रतिवर्ष 150 अरब डॉलर का अवसर भी प्रदान करता है, क्योंकि 2070 तक शुद्ध-शून्य के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक वित्तपोषण काफी कम है।
बीसीजी के प्रबंध निदेशक (एमडी) और भागीदार एशिया प्रशांत और इंडिया लीडर (जोखिम व्यवहार) अभिनव बंसल ने कहा, “भारत कोयले और तेल से दूर होकर नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत को यह बदलाव लाने/परिवर्तन करने के लिए सालाना 150-200 अरब डॉलर का निवेश करना होगा। इसके विपरीत, भारत में जलवायु वित्त 40-60 अरब डॉलर के बीच है, जिससे 100-150 अरब डॉलर का अंतर पैदा हो रहा है।”
उन्होंने कहा, “यह परिवर्तन अवसरों का परिदृश्य तैयार करेगा। हालांकि, हम लक्ष्य से बहुत दूर हैं और हम इसे 2030-40 तक घटित होते हुए देख सकते हैं, तथा यह अभी शुरू हो रहा है।”
उन्होंने कहा कि अग्रणी इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाएंगे, तथा “बैंकिंग संदर्भ के नजरिये से हम बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।”
‘निष्क्रियता की लागत: जलवायु जोखिम से निपटने के लिए सीईओ गाइड’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते जलवायु जोखिम पहले से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं और सामूहिक कार्रवाई की व्यावसायिक आवश्यकता स्पष्ट है।
भाषा अनुराग अजय
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