नयी दिल्ली, 11 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र और इसके राजस्व विभाग की याचिकाओं को खारिज कर दिया तथा कहा कि लॉटरी टिकटों के प्रचार, विपणन या बिक्री पर सेवा कर नहीं लगाया जा सकता।
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन के सिंह की पीठ ने कहा, ‘‘भारत संघ और अन्य द्वारा दायर अपील में कोई दम नहीं है। इसलिए इन अपील को खारिज किया जाता है। करदाता द्वारा दायर अपील का तदनुसार निपटारा किया जाता है।’’
सिक्किम उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए 120 पृष्ठों का फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने वित्त कानून, इसके संशोधनों और मामले के इतिहास पर चर्चा की।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमने पाया है कि प्रत्येक स्तर पर लॉटरी टिकटों के एकमात्र वितरक/खरीदार (प्रतिवादी-करदाता) पर सेवा कर लगाने के लिए वित्त अधिनियम, 1994 में किए गए संशोधन असफल रहे हैं।’’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि क्योंकि प्रतिवादी-करदाता द्वारा सिक्किम सरकार के लिए कोई एजेंसी या एजेंट के रूप में कोई सेवा प्रदान नहीं की गई है, इसलिए लॉटरी टिकटों के खरीदार (प्रतिवादी-करदाता) और सिक्किम सरकार के बीच हुए लेन-देन पर सेवा कर नहीं लगाया जा सकता।
फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘चूंकि इस संबंध में कोई एजेंसी नहीं है, इसलिए प्रतिवादी (लॉटरी वितरक) सेवा कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। हालांकि प्रतिवादी संविधान की सूची 2 की प्रविष्टि 62 के तहत राज्य द्वारा लगाए गए जुआ कर (गैंबलिंग टैक्स) देना जारी रखेंगे।’’
पीठ ने कहा, ‘‘लॉटरी टिकट के खरीदार और फर्म के बीच हुए लेन-देन पर सेवा कर नहीं लगाया जाता… उपरोक्त चर्चाओं के मद्देनजर, हमें भारत संघ और अन्य द्वारा दायर अपील में कोई दम दिखाई नहीं देता। इसलिए, इन अपील को खारिज किया जाता है।’’
शीर्ष अदालत ने सिक्किम उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि केवल राज्य सरकार ही लॉटरी पर कर लगा सकती है, केंद्र नहीं।
इसने कहा कि उच्च न्यायालय का यह कहना सही था कि लॉटरी ‘‘सट्टेबाजी और जुआ’’ की श्रेणी में आती है, जो संविधान की राज्य सूची की प्रविष्टि 62 का हिस्सा है और केवल राज्य सरकार ही इस पर कर लगा सकती है।
केंद्र ने 2013 में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने लॉटरी फर्म ‘फ्यूचर गेमिंग सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड’ द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया था।
भाषा
देवेंद्र नेत्रपाल
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