छह गैर-भाजपा शासित राज्यों ने यूजीसी मसौदा नियमों को तत्काल वापस लेने की मांग की |

Ankit
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बेंगलुरु, पांच फरवरी (भाषा) कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में बुधवार को छह गैर-भाजपा शासित राज्यों की भागीदारी वाले उच्च शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में यूजीसी मसौदा नियमों में विभिन्न “खामियों” का हवाला देते हुए केंद्र सरकार से इन नियमों को तत्काल वापस लेने की मांग की गई।


कर्नाटक सरकार के निमंत्रण पर केरल के उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू, तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री गोवी चेजियान और हिमाचल प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने इस एक दिवसीय सम्मेलन में हिस्सा लिया, जबकि तेलंगाना का प्रतिनिधित्व आईटी एवं उद्योग मंत्री डी. श्रीधर बाबू और झारखंड की नुमाइंदगी विधायक सुदिव्य कुमार ने की।

सम्मेलन के बाद कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री एमसी सुधाकर ने संवाददाताओं को बताया कि बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय भी लिया गया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को इन नियमों को बनाते समय सभी राज्यों के साथ एक सहयोगात्मक परामर्श प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए।

सुधाकर ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी दलों के शासन वाले राज्यों समेत कई राज्यों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के उपाय) विनियम, 2025 के मसौदे में विभिन्न “खामियों” की ओर इशारा किया है।

उन्होंने दावा किया, “उदाहरण के लिए, कुलपति बनने के लिए कोई व्यक्ति 24 वर्षों की सेवा और विभिन्न जिम्मेदारियां निभाने के बाद पात्र होता है। लेकिन यहां इस मसौदे में वे कहते हैं कि प्रबंधन भूमिका या शिक्षा उद्योग में केवल 10 वर्षों के अनुभव वाले व्यक्ति को भी कुलपति बनाने पर विचार किया जा सकता है, जो सही नहीं है।”

तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री चेजियान ने कहा कि मसौदा छात्रों को एक साल के बाद प्रमाणपत्र, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन साल के बाद डिग्री प्राप्त करने की अनुमति देकर अपनी इच्छानुसार दाखिला लेने और पाठ्यक्रम छोड़ने की अनुमति देता है, जो शिक्षा के मूल विचार के लिहाज से अपमानजनक है।

उन्होंने कहा, “शिक्षा आपके लिए बाजार नहीं है कि आप जब मर्जी आएं और जब मर्जी चले जाएं।”

चेजियान ने कहा कि उन्होंने 15 प्रमुख बिंदुओं की पहचान की है, जिसमें महत्वपूर्ण बिंदु यह भी शामिल है कि राज्य सरकारों को कुलपति की नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका दी जानी चाहिए, जिस पर मसौदा पारित होने से पहले पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

भाषा पारुल प्रशांत

प्रशांत



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