जीएसटी दर को युक्तिसंगत बनाने की रिपोर्ट अंतिम चरण में : सीबीआईसी प्रमुख अग्रवाल |

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(राधा रमण मिश्रा)


नयी दिल्ली, पांच फरवरी (भाषा) केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के चेयरमैन संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि जीएसटी दर को तर्कसंगत बनाने के लिए गठित मंत्री समूह अपने काम में जुटा है और इस पर रिपोर्ट अंतिम चरण में है। इसे जल्द ही जीएसटी (माल एवं सेवा कर) परिषद के समक्ष रखे जाने की उम्मीद है।

प्रत्यक्ष कर मोर्चे पर आयकर दरों में छूट के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि उपभोक्ता मांग को और गति देने के लिए जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाया जा सकता है।

अग्रवाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में कहा, ‘‘ मंत्री समूह विभिन्न वस्तुओं पर जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए काम कर रहा है। रिपोर्ट अंतिम चरण में है और इसे जल्द ही जीएसटी परिषद के समक्ष रखे जाने की उम्मीद है।’’

माल एवं सेवा कर (जीएसटी) वर्तमान में चार-स्तरीय कर संरचना है, जिसमें पांच, 12, 18 और 28 प्रतिशत के चार ‘स्लैब’ हैं। विलासिता एवं समाज के नजरिये से नुकसानदेह वस्तुओं पर सबसे अधिक 28 प्रतिशत कर लगाया जाता है। दूसरी ओर पैकिंग वाले खाद्य पदार्थों और जरूरी वस्तुओं पर सबसे कम पांच प्रतिशत कर लगता है।

रिपोर्ट आने में देरी के सवाल पर अग्रवाल ने कहा, ‘‘ जीएसटी में दरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए लगभग तीन वर्ष पहले मंत्री समूह का गठन किया गया था। बाद में उसका दायरा बढ़ाया गया, नियम शर्तों में बदलाव हुए। सदस्यों में बदलाव आया। इससे रिपोर्ट आने में देरी हुई है, लेकिन अब यह अंतिम चरण में है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या जीएसटी परिषद की अगली बैठक में रिपोर्ट पेश की जाएगी, अग्रवाल ने कहा, ‘‘अभी मंत्री समूह अपना काम कर रहा है और उस बारे में इस समय कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा।’’

अमेरिका के कुछ देशों के खिलाफ शुल्क दर में अच्छी-खासी वृद्धि के जरिये एक तरह से व्यापार युद्ध शुरू करने पर अग्रवाल ने कहा कि अमेरिका से आयातित उत्पादों पर शुल्क दरें पहले से ही कम हैं लिहाजा भारत से निर्यात होने वाले सामान पर अमेरिका में अधिक शुल्क लगाने का कोई मतलब नहीं दिखता।

उन्होंने कहा, ‘‘ अमेरिका से जो आयात होते हैं, उनमें से अगर शीर्ष 30 उत्पादों को लें, तो उन पर शुल्क कोई ज्यादा नहीं है। उदाहरण के लिए, सबसे ज्यादा आयात होने वाला कच्चा तेल है, उस पर सीमा शुल्क मात्र एक रुपया प्रति टन है। इसी तरह एलएनजी पर पांच प्रतिशत, कोयला पर 2.5 प्रतिशत, हवाई जहाज पर तीन प्रतिशत, कच्चे हीरे पर शून्य प्रतिशत एवं तराशे गए हीरों पर पांच प्रतिशत शुल्क है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ जब हमने बहुत ज्यादा शुल्क नहीं लगाया तो मेरे हिसाब से ऐसे में कोई मामला नहीं बनता है कि भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाया जाएगा। हालांकि यह तो भविष्य ही बताएगा कि इस मामले में क्या होता है।’’

उल्लेखनीय है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मेक्सिको, कनाडा और चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर कड़े शुल्क लगाने संबंधी एक आदेश पर शनिवार को हस्ताक्षर किए थे। हालांकि मेक्सिको और कनाडा के मामले में इस आदेश के क्रियान्वयन पर 30 दिन की रोक लगा दी गयी है।

उन्होंने यह भी कहा, ‘‘बजट में सात शुल्क दरों को हटा दिया गया और अब आठ बचे हैं। इसमें शुल्क दरें शून्य से लेकर 70 प्रतिशत के बीच हैं। इससे हमारा शुल्क ढांचा सरल हुआ है और भारत के बारे में उच्च शुल्क दर को लेकर बनी भ्रांति को भी दूर किया गया है।’’

अग्रवाल ने कहा कि शुल्क दरों को युक्तिसंगत बनाने से औसत भारतीय शुल्क 11.56 प्रतिशत से घटकर 10.65 प्रतिशत हो गया है। इससे भारत आसियन (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का समूह) देशों में लागू शुल्क दर के करीब पहुंच गया है।

उन्होंने कहा कि अगर वियतनाम, ब्राजील जैसे उभरते देशों से भी तुलना की जाए तो भारत का शुल्क ढांचा कमोबेश उनके बराबर है।

एक अन्य सवाल के जवाब में अग्रवाल ने कहा कि 2024-25 में अप्रत्यक्ष कर संग्रह का संशोधित अनुमान 16.02 लाख करोड़ रुपये का है जो गत वित्त वर्ष के मुकाबले 7.1 प्रतिशत अधिक है। अगले वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 17.35 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया है, जो संशोधित अनुमान से 8.3 प्रतिशत अधिक है।

उन्होंने अप्रत्यक्ष कर संग्रह में उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क की वृद्धि लगभग स्थिर रहने पर कहा, ‘‘ यह बात सही है। कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) होना इसका कारण है। उनमें कई उत्पादों पर शुल्क से छूट है या साल-दर-साल वह कम हो रहा है। कई कच्चे माल पर छूट दी गयी है। इन सबके चलते हम सीमा शुल्क को राजस्व संग्रह का माध्यम नहीं देखते। इसे अब एक प्रभावी संरक्षण उपाए के रूप में देखा जाता है।’’

अग्रवाल ने कहा, ‘‘ उसी तरह उत्पाद शुल्क का मामला है। पहले ‘विंडफाल टैक्स’ (अप्रत्याशित लाभ कर) लगता था जिसे दिसंबर, 2024 में हटा लिया गया है। अक्टूबर से इसमें कोई कर संग्रह नहीं हो रहा था। इससे 6,500 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। उत्पाद शुल्क मद में भी संग्रह पिछले साल के बराबर ही रहेगा।’’

उन्होंने साथ ही कहा कि संशोधित अनुमान के तहत 2024-25 में उत्पाद शुल्क संग्रह 3.05 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जिसमें पेट्रोलियम उत्पादों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है।

भाषा रमण निहारिका

निहारिका



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