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विज्क आन जी (नीदरलैंड), तीन फरवरी (भाषा) ग्रैंडमास्टर रमेशबाबू प्रज्ञानानंदा ने आठ घंटे के विश्व स्तरीय प्रदर्शन वाले इस तरह के ‘अजीब दिन’ की कल्पना नहीं की थी जिसके बाद उन्होंने मौजूदा विश्व चैंपियन डी गुकेश को हराकर अपना पहला टाटा स्टील शतरंज खिताब जीत लिया।
प्रज्ञानानंदा ने मुकाबले के बाद कहा, ‘‘यह बहुत लंबा था, करीब आठ घंटे, पहली बाजी ही लगभग साढ़े छह घंटे तक चली और फिर ब्लिट्ज बाजी, यह एक अजीब दिन था।’’
उन्होंने इस जीत के प्रभाव के बारे में कहा, ‘‘शतरंज की दुनिया में यह एक बहुत ही खास प्रतियोगिता है और मैंने बड़े होते हुए इस टूर्नामेंट के मुकाबले देखे हैं। पिछले साल चीजें मेरे हिसाब से नहीं रहीं थी इसलिए मैं इस टूर्नामेंट के लिए प्रेरित था।’’
भारतीय ग्रैंडमास्टर ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मेरे खेल में यह दिखा कि मैं सभी बाजियों में लड़ने की कोशिश को लेकर काफी महत्वाकांक्षी था इसलिए हमने कई नतीजे वाली बाजियां देखीं।’’
प्रज्ञानानंदा ने छह बाजी जीती और पांच ड्रॉ खेली। उन्हें दो बाजियों में हार का सामना करना पड़ा।
अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में प्रज्ञानानंदा ने कहा कि वह प्राग मास्टर्स में प्रतिस्पर्धा करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे पता था कि पिछले छह महीनों में क्या गलत हुआ और मुझे पता था कि मुझे किस चीज पर काम करने की जरूरत है। मैं इसमें बेहतर होने की कोशिश करता रहूंगा। मैंने इस टूर्नामेंट के लिए (अपने खेल में) कुछ चीजें बदली और यह काम कर गया।’’
टाईब्रेकर की शुरुआती दो बाजियों में से प्रज्ञानानंदा ने एक गंवाई और फिर दूसरी बाजी जीती। उन्होंने कहा कि उन्हें पहली बाजी ड्रॉ करानी चाहिए थी।
दूसरी बाजी में गुकेश अच्छी स्थिति में थे लेकिन धीरे-धीरे वह पिछड़ गए। तीसरी और निर्णायक बाजी में प्रज्ञानानंदा ने फिर से अपने सफेद मोहरों के साथ रक्षात्मक रुख अपनाया लेकिन फिर कुछ अच्छे मूव बनाए और गुकेश इसके बाद अति महत्वाकांक्षी हो गए और संभवत: ड्रॉ होने वाली बाजी को हार गए।
जर्मनी के विन्सेंट कीमर के खिलाफ गंवाई बाजी में अपनी गलतियों के बारे में बात करते हुए प्रज्ञानानंदा ने स्वीकार किया कि उन्होंने कुछ अजीबोगरीब हरकतें कीं।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे वह स्थिति (बीच के समय का खेल) पसंद थी और फिर मैंने कुछ अजीबोगरीब हरकतें करनी शुरू कर दीं। इस समय मैंने देखा कि गुकेश हार गया है लेकिन फिर मैं इस स्थिति में बैठकर और इंतजार करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। मैं हार नहीं मान सकता, मैं कोई चाल नहीं चल सकता था। मुझे बस इंतजार करना था और पीड़ा सहनी थी। यह बहुत निराशाजनक था।’’
भाषा सुधीर आनन्द
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