गर्मी से थकान और लू लगने में क्या अंतर है? व्यक्ति की चिकित्सकीय आपातस्थिति है |

Ankit
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(मैथ्यू बार्टन, ग्रिफिथ विश्वविद्यालय और माइकल टोडोरोविक, बॉन्ड विश्वविद्यालय)


गोल्ड कोस्ट (ऑस्ट्रेलिया), 20 जनवरी (द कन्वरसेशन) जब पिछले साल यूनान में एक ब्रिटिश टीवी डॉक्टर माइकल मोस्ले की अत्यधिक गर्मी में चलने के कारण मौत हो गई थी, तो स्थानीय पुलिस ने कहा था कि ‘गर्मी से थकान’ इसका एक कारण था।

इसके बाद मृत्यु समीक्षक को मौत का निश्चित कारण पता नहीं चल सका, लेकिन उन्होंने कहा कि यह संभवतः अज्ञात चिकित्सा कारण या लू (तापघात) के कारण हुआ।

गर्मी से थकान और लू (तापघात) दो ऐसी बीमारियां हैं, जिसका संबंध गर्मी से है।

तो अंतर क्या है?

विभिन्न स्थितियां

गर्मी से संबंधित बीमारियां हल्की से लेकर गंभीर तक हो सकती हैं। वे अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने से होती हैं, चाहे वह गर्म परिस्थितियों, शारीरिक परिश्रम या दोनों से हो। सबसे आम बीमारियों में शामिल हैं:

गर्मी से शोथ: हाथ, पैर और टखनों में सूजन

गर्मी से ऐंठन: मांसपेशियों में दर्दनाक अनैच्छिक ऐंठन जो आमतौर पर व्यायाम के बाद होती है।

गर्मी से बेहोशी: अधिक गर्मी के कारण बेहोशी

गर्मी से थकान: यह तब होता है जब शरीर अत्यधिक पसीने के कारण पानी खो देता है, जिससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है (लेकिन फिर भी 40 डिग्री सेल्सियस से कम)। इसके लक्षणों में सुस्ती, कमजोरी और चक्कर आना शामिल है, लेकिन चेतना या मानसिक स्पष्टता में कोई अंतर नहीं आता।

लू लगना (तापघात): जब शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो तो यह एक चिकित्सकीय आपातस्थिति होती है। इससे तंत्रिका तंत्र से संबंधित गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे भ्रम, दौरे और बेहोशी, जिसमें कोमा भी शामिल है, फलस्वरूप मृत्यु हो सकती है।

लू लगने और गर्मी से थकान के कुछ लक्षण एक जैसे होते हैं। इससे चिकित्सा पेशेवरों के लिए भी अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है।

ऐसा कैसे होता है?

मानव शरीर अविश्वसनीय रूप से एक कुशल और अनुकूलनयोग्य मशीन है, जो हमारे आंतरिक तापमान को इष्टतम 37 डिग्री सेल्ससियस पर बनाए रखने के लिए कई अंतर्निहित तंत्रों से सुसज्जित है।

लेकिन स्वस्थ लोगों में शरीर के तापमान का नियमन तब बिगड़ने लगता है जब तापमान 100 प्रतिशत आर्द्रता के साथ लगभग 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो (डार्विन या केर्न्स के बारे में सोचें) या 60 प्रतिशत आर्द्रता के साथ लगभग 38 डिग्री सेल्सयस से अधिक हो (जो गर्मियों में ऑस्ट्रेलिया के अन्य भागों के लिए सामान्य है)।

ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि नमी वाली हवा पसीने को वाष्प में नहीं बदलने देती है और अपने साथ गर्मी भी लाती है। ठंडक के उस प्रभाव के नहीं होने से शरीर ज्यादा गर्म होने लगता है।

जब शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से ऊपर हो जाता है, तो गर्मी से थकान हो सकती है, जिससे तीव्र प्यास, कमजोरी, मिचली और चक्कर आ सकते हैं।

अगर शरीर की गर्मी बढ़ती रहती है और शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, तो बहुत अधिक लू (तापघात) शुरू हो सकता है। इस स्थिति में, यह जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली आपात स्थिति होती है, जिसके लिए तुरंत चिकित्सा की आवश्यकता होती है।

इस तापमान पर, हमारे प्रोटीन विकृत होने लगते हैं (जैसे कि हॉटप्लेट पर रखा अंडा) और आंतों की ओर रक्त का प्रवाह रुक जाता है। इससे आंत में बहुत अधिक रिसाव वाली स्थिति हो जाती है, जिससे ‘एंडोटॉक्सिन’ (कुछ बैक्टीरिया में विषाक्त पदार्थ) और रोगजनक (रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव) जैसे हानिकारक पदार्थ रक्तप्रवाह में रिसने लगते हैं।

यकृत इन विषाक्त पदार्थों को जल्दी से बाहर नहीं निकाल पाता, जिससे पूरे शरीर में सूजन हो जाती है, अंग काम करना बंद कर देते हैं और सबसे खराब स्थिति में मौत भी हो सकती है।

सबसे ज्यादा जोखिम किसको है?

जो लोग कठोर व्यायाम करते हैं, खासकर अगर उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं, तो उन्हें गर्मी से थकान या तापघात का खतरा होता है। जोखिम वाले अन्य लोगों में उच्च तापमान और आर्द्रता के संपर्क में आने वाले लोग शामिल हैं, खासकर जब वे भारी कपड़े या सुरक्षात्मक ‘गियर’ पहनते हैं।

किसान, दमकलकर्मी और निर्माण श्रमिकों जैसे घर से बाहर काम करने वाले कामगारों को भी अधिक जोखिम होता है। जिन्हें मधुमेह, हृदय रोग, या फेफड़ों की परेशानी (जैसे सीओपीडी या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) जैसे स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, उन्हें और रक्तचाप की दवाएं लेने वाले लोग भी ऐसी स्थिति के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।

भाषा

राजकुमार सुरेश

सुरेश



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