चंडीगढ़, 18 जनवरी (भाषा) हिमाचल प्रदेश के कोटखाई में 2017 में नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के एक आरोपी की हिरासत में मौत के मामले में शनिवार को यहां एक विशेष अदालत ने प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक और सात अन्य पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) मामलों की विशेष न्यायाधीश अलका मलिक 27 जनवरी को सजा सुनाएगी।
सीबीआई अदालत ने आईजी जहूर हैदर जैदी, तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक मनोज जोशी, तत्कालीन उपनिरीक्षक राजिंदर सिंह, तत्कालीन सहायक उपनिरीक्षक दीपचंद शर्मा, तत्कालीन हेड कांस्टेबल मोहन लाल, सूरत सिंह, रफी मोहम्मद और तत्कालीन कांस्टेबल रंजीत सटेटा को दोषी ठहराया।
अदालत ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डीडब्ल्यू नेगी को बरी कर दिया। उनके वकील रवींद्र पंडित ने यह जानकारी दी।
सीबीआई के लोक अभियोजक अमित जिंदल ने बताया कि आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के साथ 120-बी, 330 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए जानबूझकर चोट पहुंचाना), 348 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए गलत तरीके से बंधक बनाना) और 195 (झूठे साक्ष्य देना) सहित विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया है।
सूरज की हिरासत में मौत के मामले में जैदी और सात अन्य को गिरफ्तार किया गया था। सूरज को 18 जुलाई, 2017 को कोटखाई पुलिस थाने में मृत पाया गया था।
चार जुलाई, 2017 को कोटखाई में एक 16 वर्षीय लड़की लापता हो गई थी और उसका शव दो दिन बाद छह जुलाई को हलैला के जंगलों में मिला था।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई और मामला दर्ज किया गया।
राज्य में भारी जनाक्रोश के बीच, तत्कालीन राज्य सरकार ने जैदी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन किया था।
एसआईटी ने छह लोगों को गिरफ्तार किया, जिनमें से एक सूरज की पुलिस हिरासत में मौत हो गई।
पुलिस अधिकारियों ने सूरज की हत्या के लिए राजिंदर (सामूहिक बलात्कार मामले के एक आरोपी) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने दोनों मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी। इसके बाद सीबीआई ने हिरासत में हुई मौत के सिलसिले में जैदी, डीसीपी जोशी और अन्य पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया।
सीबीआई ने आपराधिक साजिश, हत्या, झूठे साक्ष्य गढ़ने, सबूत नष्ट करने, कबूलनामा लेने के लिए पुलिस हिरासत में यातना देने, झूठे रिकॉर्ड तैयार करने आदि के लिए गहन जांच के बाद आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।
बाद में, शीर्ष अदालत ने मई 2019 में हिरासत में हुई मौत से संबंधित मामले को शिमला से चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया।
भाषा सुरेश माधव
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