नयी दिल्ली, 12 जनवरी (भाषा) असम के जोरहाट जिले के तेकेलागांव गांव में चार नवंबर 1977 की रात एक बड़ा विमान हादसा हुआ था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बाल-बाल बचे थे। देसाई खुद घायल होने के बावजूद अधिकारियों से बाकी घायलों को बचाने पर ध्यान देने के लिए कह रहे थे।
वरिष्ठ पत्रकार दिवंगत एनवीआर स्वामी की नयी किताब ‘द ओडिसी ऑफ एन इंडियन जर्नलिस्ट’ इस हादसे के दौरान का खौफनाक मंजर विस्तार से बयां करती है।
स्वामी उस समय ‘पीटीआई’ के विशेष संवाददाता थे। वह देसाई के पूर्वोत्तर के दौरे के दौरान उनके साथ गए पत्रकारों में शामिल थे। उन्होंने ‘पुष्पक’ विमान के धान के एक खेत में ‘क्रैश लैंडिंग’ करने के रौंगटे खड़े कर देने वाले अनुभव का जिक्र करते हुए लिखा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री की आधिकारिक यात्रा को कवर करने का उनका उत्साह ज्यादा समय तक नहीं टिक सका था।
रूस में निर्मित टुपोलेव टीयू-124 विमान ‘पुष्पक’ ने चार नवंबर 1977 की रात दिल्ली के पालम से असम के जोरहाट के लिए उड़ान भरी थी। ‘क्रैश लैंडिंग’ के दौरान विमान का ‘कॉकपिट’ उसके बाकी हिस्सों से अलग हो गया था। इस हादसे में विमान के दो पायलट और चालक दल के तीन सदस्य मारे गए थे।
‘क्रैश लैंडिंग’ का मतलब किसी उड़ान को आपात स्थिति के कारण अचानक उतारने से है, जिसके परिणामस्वरूप विमान और उसमें सवार लोगों को कभी-कभी गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।
स्वामी ने उस काली रात की यादें ताजा करते हुए लिखा, “हम ‘लैंडिंग’ का इंतजार कर रहे थे, तभी विमान अचानक फिर से ऊंचाई पकड़ने लगा और जमीन पर जल रही लाइटें नजरों से धीरे-धीरे ओझल हो गईं। अचानक एक जबरदस्त और हिला देने वाली टक्कर महसूस हुई। विमान तेजी से डगमगाया।”
उन्होंने कहा, “वीवीआईपी विमान हवाई अड्डे से आगे निकल गया। हम रनवे पर नहीं थे। हम बहुत दूर थे। पीछे के निकास द्वार से तेज आवाज आई-विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। बाहर निकलें।”
स्वामी के मुताबिक, देसाई (81) को तुरंत मलबे से निकाला गया और घटनास्थल से दूर खेत के किनारे पर ले जाया गया।
उन्होंने बताया, “अचानक तेज धमाके की आवाज गूंजी। मैंने पीछे मुड़कर देखा कि प्रधानमंत्री कहां हैं? मैं विमान से ज्यादा दूर नहीं था। विमान जहां दुर्घटनाग्रस्त होकर गिरा था, वहां आग लग गई थी। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के संयुक्त निदेशक जॉन लोबो (जो प्रधानमंत्री के मुख्य सुरक्षा अधिकारी थे) और उनके निजी सुरक्षा अधिकारी मदन लाल जैदका ने प्रधानमंत्री को विमान से बाहर निकाला था।”
स्वामी के अनुसार, देसाई पूरी त्रासदी के दौरान “शांत और संयमित” रहे। बाद में उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें पास में स्थित एक घर में ले जाया गया।
स्वामी ने लिखा, “प्रधानमंत्री कहते रहे-मैं ठीक हूं, मैं ठीक हूं। वह ऐसी स्थिति में भी अपने अधिकारियों से कहते रहे-घायलों को बचाने पर ध्यान दें।”
दुर्घटनाग्रस्त विमान में देसाई के अलावा अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीके थुंगन, आईबी के पूर्व प्रमुख जॉन लोबो, देसाई के बेटे कांतिलाल और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता नारायण देसाई भी सवार थे। ये सभी बच गए।
स्वामी ने बताया, “हादसे में कांतिलाल के पैर कुचले गए थे और वह दर्द से कराह रहे थे। उन्हें लोबो ने मलबे से बाहर निकाला। नारायण देसाई की कई हड्डियां टूट गई थीं और वह खड़े नहीं हो पा रहे थे।”
स्वामी का पिछले साल फरवरी में निधन हो गया था।
उनकी लिखी किताब में बताया गया है कि दुर्घटनाग्रस्त विमान पर कोई चिकित्सक सवार नहीं था।
स्वामी ने हादसे का विवरण देते हुए लिखा कि विमान निर्धारित पट्टी पर ‘लैंडिंग’ से चूक गया और जब उसने दूसरे स्थान पर उतरने का प्रयास किया, तो वह एक ऊंचे पेड़ से टकरा गया, जिससे उसके बाएं हिस्से के पहिये सहित निचला ढांचा टूट गया।
दिवंगत वरिष्ठ पत्रकार द्वारा लिखी गई किताब के अनुसार, “टक्कर से एक पंख और कॉकपिट (विमान के बाकी हिस्से से) अलग हो गया। कॉकपिट में मौजूद चालक दल के सदस्यों की मौत हो गई। इसके बाद लड़खड़ाता विमान बांस की झाड़ियों के बीच से गुजरा, जिससे उसकी रफ्तार धीमी हो गई और वह धान के एक खेत में जा गिरा।”
स्वामी ने दिल्ली के राजनीतिक गलियारों से लेकर अफ्रीका की सरजमीं तक, लगभग दो दशक तक पीटीआई के संवाददाता के रूप में काम किया। ‘द ओडिसी ऑफ एन इंडियन जर्नलिस्ट’ पाठकों को ऐतिहासिक घटनाओं और प्रभावशाली नेताओं की शानदार रिपोर्टिंग की उनकी यात्रा से रूबरू कराती है।
भाषा
पारुल नरेश
पारुल