भूमि बहुमूल्य संसाधन, वितरण में सरकार को पारदर्शिता बरतनी चाहिए : उच्चतम न्यायालय |

Ankit
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नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक प्रस्तावित आवासीय सोसाइटी को भूमि आवंटन को लेकर बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि यह बहुमूल्य संसाधन है, इसलिए सरकार से अपेक्षा रहती है कि इसके वितरण में पारदर्शिता बरती जाए।


न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें भूमि के आवंटन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि आवंटन के लिए पात्रता मानदंड पूरा नहीं करने के बावजूद मेडिनोवा रीगल को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी (एमआरसीएचएस) को जिस तरह भूखंड आवंटित किया गया वह ‘‘भाई-भतीजावाद और पक्षपात’’ को दर्शाता है।

पीठ ने कहा, ‘‘भूमि समुदाय का एक बहुमूल्य संसाधन है, इसलिए सरकार से अपेक्षा है कि कम से कम वह इसके वितरण में पारदर्शिता दिखाए। इसलिए, हमारी राय में एमआरसीएचएस के पक्ष में आवंटन में पूरी तरह से मनमानी हुई है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘जहां तक ​​वर्तमान अपीलकर्ता का संबंध है, भूखंड आवंटन का उसका मामला ऐसा विषय है जिस पर प्राधिकारों द्वारा अभी निर्णय लिया जाना है, लेकिन एमआरसीएचएस के पक्ष में भूखंड का आवंटन उचित नहीं है, क्योंकि यह प्रक्रिया के साथ-साथ पात्रता मानदंडों का भी उल्लंघन है।’’

पीठ ने कहा कि रिकार्ड के अवलोकन से पता चलता है कि सोसायटी का एक भी सदस्य टाटा मेमोरियल अस्पताल में डॉक्टर नहीं है। न्यायालय ने कहा, ‘‘डॉक्टर को तो छोड़िए, एक भी सदस्य टाटा मेमोरियल अस्पताल का कर्मचारी नहीं है, जिसके बारे में पहले कहा गया था और जिसके लिए भूखंड आवंटित करने की मांग की गई थी।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि इस सोसायटी की संरचना भी अब मूल संरचना से पूरी तरह बदल गई है।

पीठ ने कहा कि यदि भूमि सरकार की विवेकाधीन शक्तियों के तहत आवंटित की गई थी, तो लिखित में कारण बताना आवश्यक है कि किसी विशेष सोसायटी के पक्ष में ऐसा आवंटन क्यों किया गया।

प्रस्तावित आवासीय सोसायटी एमआरसीएचएस ने 2000 में बांद्रा में एक भूखंड के आवंटन के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को आवेदन दिया था। आवेदन में उल्लेख किया गया था कि आवेदक सोसायटी के सदस्य अग्रणी अस्पताल और कैंसर अनुसंधान संस्थान ‘टाटा मेमोरियल सेंटर’ में काम करते हैं तथा सदस्यों के पास अपना कोई मकान नहीं है, जबकि वे लगभग 20 वर्षों से महाराष्ट्र में रह रहे हैं।

आवेदन में यह भी कहा गया कि वे ऐसे स्थानों पर रह रहे, जो उनके कार्यस्थल से बहुत दूर है, इसलिए यात्रा करना कठिन और समय लेने वाला है। आवंटन के लिए अनुरोध करते हुए तर्क दिया गया कि डॉक्टर होने के नाते उन्हें आपात स्थिति में अस्पताल पहुंचने में समय लगता है।

भाषा आशीष अविनाश

अविनाश



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