मालेगांव विस्फोट मामले के आरोपियों को अधिकतम सजा से देश में कड़ा संदेश जाएगा: पीड़ितों ने कहा |

Ankit
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मुंबई, 21 अक्टूबर (भाषा) वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट के पीड़ितों ने सभी सात आरोपियों के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए दावा किया है कि उनकी दोषसिद्धि से ‘‘राष्ट्र में एक कड़ा संदेश जाएगा कि हमारे समाज में हिंसा और आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है।’’


पीड़ितों ने मामले की सुनवाई कर रहे विशेष एनआईए न्यायाधीश ए के लाहोटी के समक्ष प्रस्तुत अपनी लिखित दलीलों में यह अनुरोध किया।

इस मामले में भोपाल से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व लोकसभा सदस्य प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित भी आरोपियों में शामिल हैं।

पीड़ितों की ओर से हस्तक्षेपकर्ता द्वारा दायर लिखित बयान में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष ने पूरी श्रृंखला को साबित किया है, जो आरोपियों को बम विस्फोट और आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक-दूसरे से जोड़ती है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘इससे मामला पूरी तरह से साबित हो गया है कि वर्तमान आरोपी और फरार आरोपी ही बम विस्फोट के भयानक कृत्य के लिए जिम्मेदार हैं, जिसके कारण छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इसलिए पीड़ितों की ओर से विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि मुकदमे का सामना कर रहे आरोपियों को अधिकतम सजा दी जाए।’’

याचिका में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष ने अपने आरोपपत्र में कुल 495 गवाहों का हवाला दिया और उनमें से 323 से जिरह की, जिनमें से 37 मुकर गए, 39 को मुकदमे के दौरान हटा दिया गया और 21 की मृत्यु हो गई।

इसमें कहा गया है, ‘‘यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि आरोपी हाई-प्रोफाइल और अत्यधिक प्रभावशाली लोग हैं। गवाहों पर बहुत अधिक दबाव रहा होगा, संभवतः उन्हें अदालत में आरोपियों के खिलाफ गवाही न देने के लिए धमकाया गया होगा या लालच दिया गया होगा। गवाहों को प्रभावित करने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है।’’

याचिका में कहा गया है, ‘‘केवल नागरिक गवाह ही मुकर गए, पुलिस या पंच गवाहों में से किसी ने भी ऐसा नहीं किया और उन्होंने अभियोजन पक्ष के मामले का पूरी तरह से समर्थन किया। हालांकि समय बीतने के साथ तारीख, समय और नाम में कुछ गलतियां सामने आई हैं, ये विसंगतियां मामूली हैं और साक्ष्य पर समग्र रूप से विचार करने पर इन्हें हल किया जा सकता है। आरोपियों को इन विसंगतियों से कोई लाभ नहीं दिया जाना चाहिए।’’

लिखित दलीलों में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सूचना एकत्र करने और निर्धारित समय के भीतर प्रक्रियात्मक कार्य पूरा करने के लिए आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस) के जांच अधिकारी की सराहना भी की गई।

याचिका में कहा गया है, हालांकि, शासन में बदलाव के कारण अभियोजन एजेंसियों के दृष्टिकोण में बदलाव आया, लेकिन पीड़ितों ने न्यायपालिका में कभी भी उम्मीद या विश्वास नहीं खोया और उनका दृढ़ विश्वास है कि यह दोषसिद्धि का एक स्पष्ट मामला है।

लिखित दलील में कहा गया, ‘‘आरोपी को दोषी ठहराकर, अदालत राष्ट्र को एक कड़ा संदेश दे सकती है कि हमारे समाज में हिंसा और आतंकवाद के लिए कोई जगह नहीं है।’’

पीड़ितों ने दावा किया कि उन्हें ‘‘न्याय मांगने के लिए अपमान का सामना करना पड़ा, लेकिन अदालतों ने उनके अधिकारों की रक्षा की है।’’

मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर उत्तर महाराष्ट्र के शहर मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोग मारे गए थे और 100 से अधिक घायल हो गए थे।

प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के अलावा, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मुकदमे का सामना करने वाले अन्य आरोपियों में मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी हैं।

विशेष अदालत ने 30 अक्टूबर, 2018 को यूएपीए की धारा 16 और 18 के साथ-साथ आईपीसी की धारा 120 (बी), 302, 307, 324 और 153 (ए) के तहत सात आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे।

मामला 2011 में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण को सौंपे जाने से पहले इसकी शुरुआत में जांच महाराष्ट्र आतंकवाद रोधी दस्ते ने की थी।

भाषा अमित अविनाश

अविनाश



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