गुजरात सरकार का उच्च न्यायालय को जवाब |

Ankit
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अहमदाबाद, 20 सितंबर (भाषा) गुजरात सरकार ने शुक्रवार को उच्च न्यायालय को बताया कि राज्य का अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग एक सदस्यीय आयोग के रूप में काम करना जारी रखेगा।


राज्य के ओबीसी आयोग की स्थापना 1993 में एक प्रस्ताव के माध्यम से की गई थी।

हालांकि दो अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति का प्रस्ताव था, लेकिन राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि वह इस पर आगे नहीं बढ़ेगी तथा कहा कि ‘सरकार ने निर्णय लिया है कि ओबीसी आयोग एक सदस्यीय आयोग के रूप में कार्य करेगा।’

यह जवाब गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा राज्य को फटकार लगाए जाने के लगभग दो सप्ताह बाद आया है, जब न्यायालय को पता चला था कि उसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग में दो सदस्यों की नियुक्ति में देरी की है, जबकि न्यायालय को आठ महीने पहले इस बारे में आश्वासन दिया गया था।

मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति प्रणव त्रिवेदी की खंडपीठ स्थायी ओबीसी आयोग की स्थापना और इसके सदस्यों की नियुक्ति की जानकारी के बारे में 2018 में दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

पिछली सुनवाई में सरकारी वकील जीएच विर्क ने अदालत को बताया था कि नियुक्ति के बारे में फैसला लंबित है लेकिन राज्य ओबीसी आयोग लागू है और काम कर रहा है।

शुक्रवार को गुजरात के मुख्य सचिव राज कुमार ने एक हलफनामे के माध्यम से अदालत को बताया कि आयोग 1993 से केवल अपने अध्यक्ष के साथ काम कर रहा है और भविष्य में भी यह एक सदस्यीय आयोग के रूप में काम करता रहेगा।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन का हवाला देते हुए मुख्य न्यायाधीश ने विर्क से पूछा कि राज्य इसका पालन क्यों नहीं कर सकता।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन सदस्य होते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, ‘बहु-सदस्यीय आयोग का गठन सही भावना में होगा। एक व्यक्ति के मुकाबले एक निकाय होने से फर्क पड़ता है। यह एक बहुत बड़ा काम है। गुजरात में संविधान के अनुच्छेद 338बी (एनसीबीसी की स्थापना के बारे में) के प्रावधानों का पालन क्यों नहीं किया जा रहा? अपवाद कहां है?’

विर्क ने जवाब देते हुए कहा कि आयोग 1993 से सिर्फ एक अध्यक्ष के साथ काम कर रहा है और जब भी जरूरत होती है, विशेषज्ञ सदस्यों की सेवाएं ली जाती हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, ‘तो आप 1993 में जो भी करते थे, क्या आप 2024 और उसके बाद भी उसका पालन करना जारी रखेंगे? कब और कैसे, यह बहुत व्यक्तिपरक है। एक आदमी एक संस्था चला रहा है। जब संविधान में इसका प्रावधान है, तो अपवाद क्यों? आप कह रहे हैं कि हम एकल व्यक्ति आयोग के साथ जारी रहेंगे क्योंकि कोई कानून नहीं है। यही आपका जवाब है।’

इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ताओं से अपने जवाब दाखिल करने को कहा और दो सप्ताह बाद अगली निर्धारित की।

सरकारी हलफनामे के अनुसार, आयोग का नेतृत्व वर्तमान में सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आर पी धोलारिया कर रहे हैं।

भाषा

योगेश माधव

माधव



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