पुरुषों का वर्चस्व कायम, मानसिकता बदलने की जरूरत |

Ankit
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मुंबई, 27 अगस्त (भाषा) बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि लड़कों को कम उम्र से ही लैंगिक समानता के बारे में शिक्षित और संवेदनशील बनाने की जरूरत है और साथ ही उनकी सोच में भी बदलाव लाने की जरूरत है।


न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने एक स्वत:संज्ञान याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि समाज में पुरुष वर्चस्व और पुरुषवाद (स्त्रियों पर श्रेष्ठता की मान्यता) अब भी कायम है, इसलिए लड़कों को छोटी उम्र से ही सही और गलत व्यवहार के बारे में सिखाया जाना चाहिए।

अदालत ने इस मुद्दे का अध्ययन करने तथा ऐसी घटनाओं से बचने के लिए स्कूलों में पालन किये जाने वाले नियमों और दिशानिर्देशों की सिफारिश करने के लिए एक समिति गठित करने का सुझाव दिया।

बदलापुर के एक स्कूल में चार साल की दो लड़कियों के साथ कथित तौर पर यौन शोषण किया गया। इस घटना के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, राज्य सरकार ने अपराधी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया।

अदालत ने बदलापुर पुलिस द्वारा शुरुआती जांच के तरीके पर अपनी नाराजगी दोहराई और कहा कि पुलिस को कुछ संवेदनशीलता दिखानी चाहिए थी।

पीठ ने कहा, “पीड़ित लड़कियों में से एक और उसके परिवार को अपना बयान दर्ज करने के लिए पुलिस थाने आने के लिए कहा गया था। बदलापुर पुलिस ने उनके घर पर बयान दर्ज करने का प्रयास भी नहीं किया। बदलापुर पुलिस की जांच में गंभीर चूक हुई है।”

महाराष्ट्र के महाधिवक्ता (एजी) बीरेंद्र सराफ ने चूक को स्वीकार किया और कहा कि बदलापुर पुलिस थाने के तीन पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है।

अदालत ने कहा कि राज्य शिक्षा विभाग यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकता है कि बच्चों को स्कूल में पूर्व-प्राथमिक स्तर से ही लैंगिक समानता और लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में पढ़ाया जाए।

पीठ ने कहा, “पुरुष वर्चस्व और पुरुषवादी मानसिकता अब भी कायम है। जब तक हम अपने बच्चों को घर में समानता की शिक्षा नहीं देंगे, तब तक कुछ नहीं होगा। तब तक निर्भया जैसे कानून और अन्य कानून कारगर नहीं होंगे।”

अदालत ने कहा, “हम हमेशा लड़कियों के बारे में बात करते हैं। हम लड़कों को यह क्यों नहीं बताते कि क्या सही है और क्या गलत? हमें युवा अवस्था में ही लड़कों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। उन्हें महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं।”

अदालत ने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, एक सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी, एक सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, एक महिला आईपीएस अधिकारी और बाल कल्याण समिति के एक सदस्य की एक समिति गठित करने का सुझाव दिया।

यह समिति इस मुद्दे का अध्ययन कर सकती है और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए स्कूलों में पालन किए जाने वाले नियमों एवं दिशानिर्देशों की सिफारिश कर सकती है।

पीठ ने कहा कि वह इस मामले पर तीन सितंबर को आगे सुनवाई करेगी, तब तक सरकार उसे समिति के बारे में सूचित करेगी।

अदालत ने सवाल किया, “प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान को समय-समय पर अपने कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की जांच करनी चाहिए। ये सभी चीजें प्रत्येक स्कूल द्वारा की जानी आवश्यक हैं। क्या इस स्कूल ने ऐसा किया है?”

अटॉर्नी जनरल का जवाब नकारत्मक था। उन्होंने कहा कि आरोपी के माता-पिता उसी स्कूल में कार्यरत हैं, इसलिए उसे भी नौकरी पर रखा गया।

अदालत ने यह भी जानना चाहा कि क्या स्कूल परिसर से सीसीटीवी फुटेज बरामद कर उसे सुरक्षित रखा गया है।

सराफ ने कहा कि ‘हार्ड डिस्क’ बरामद कर ली गयी है और उसकी जांच की जा रही है।

पीठ ने यह भी सुझाव दिया कि मामले में नियुक्त विशेष लोक अभियोजक की सहायता के लिए एक महिला अभियोजक की नियुक्ति की जाए।

भाषा प्रशांत रंजन

रंजन



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