पेरिस, दो अगस्त (भाषा) भारत के धीरज बोम्मादेवरा और अंकिता भकत की मिश्रित तीरंदाजी जोड़ी यहां पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक के मैच में अमेरिकी जोड़ी से हारकर पदक से चूक गई जिसके बाद उन्होंने कहा कि पहली बार सेमीफाइनल में पहुंचना ऐतिहासिक था लेकिन पदक से चूकना निराशाजनक रहा।
जब धीरज और अंकिता की मिश्रित टीम जोड़ी ने नौ ओलंपिक में पहली बार अंतिम चार में प्रवेश किया तो भारत ने तीरंदाजी में यह एतिहासिक उपलब्धि हासिल की। लेकिन दक्षिण कोरियाई जोड़ी से हारने के बाद यह जोड़ी कांस्य पदक के प्लेऑफ में पहुंची जिसमें उन्हें अमेरिका से हार का सामना करना पड़ा।
धीरज ने कहा, ‘‘निश्चित रूप से जब आप चौथे स्थान पर होते हैं तो पदक से बस एक कदम पीछे होते हैं। यह बहुत दुखद लगता है।। लेकिन हम एक तरह से यह भी सोच रहे हैं कि हम अभी तक चौथे स्थान तक भी नहीं पहुंचे थे। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मतलब है कि हम कभी शीर्ष चार में भी नहीं पहुंचे थे तो यह हमारे लिए अच्छी बात है कि हम पिछले कुछ ओलंपिक से सुधार कर रहे हैं। और चाहे वह मिश्रित टीम स्पर्धा हो, टीम स्पर्धा हो, व्यक्तिगत स्पर्धा हो, हम सभी ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। ’’
हांग्झोउ एशियाई खेलों में रजत पदक जीतने वाली पुरुष रिकर्व टीम के सदस्य 22 वर्षीय धीरज ने कहा, ‘‘भले ही यह ओलंपिक सभी के लिए बहुत अलग मंच हो लेकिन हमने वैसा ही प्रदर्शन किया जैसा हम आमतौर पर विश्व कप में करते हैं। इस बार पदक जीतने में हमारी कमी रही। निश्चित रूप से हम अपनी कमियों पर काम करेंगे। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह हार बहुत दर्दनाक है, लेकिन यह हमें अंदर से मजबूत करेगी। ’’
अंकिता ने कहा कि हालांकि वह दबाव संभालने में सफल रहीं लेकिन हवा के कारण टीम पदक से चूक गई।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने थोड़ा दबाव लिया। जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, मैं पदक की उम्मीद लगाये थी। इसलिये थोड़ा दबाव था। थोड़ी हवा भी चल रही थी जिससे मैं खुद को नियंत्रित नहीं कर सकी।’’
उन्होंने कहा कि वह खुश भी हैं और दुखी भी क्योंकि इतिहास में पहली बार उन्होंने अंतिम चार में जगह बनाई लेकिन पदक से चूक गये।
खेलों के अनुभव पर अंकिता ने कहा, ‘‘मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं क्योंकि हम पहली बार यहां तक पहुंचे। मुझे थोड़ा दुख भी हो रहा है। कि हम यहां तक पहुंचने के बावजूद भी पदक नहीं जीत पाए। लेकिन यह अच्छा है कि हम धीरे धीरे सुधार कर रहे हैं। और हम भविष्य में और भी बेहतर करेंगे। ’’
भाषा नमिता मोना
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