महाराष्ट्र सरकार की ‘लाडकी बहिन योजना’ के खिलाफ याचिका, अदालत ने जल्द सुनवाई से इंकार किया

Ankit
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मुंबई, दो अगस्त (भाषा) महाराष्ट्र सरकार की महिलाओं के लिए नकद लाभ योजना ‘मुख्यमंत्री मांझी लाडकी बहिन योजना’ के खिलाफ एक चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि इससे करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।


याचिकाकर्ता ने नौ जुलाई को इस योजना को शुरू करने वाले सरकारी प्रस्ताव को रद्द करने की मांग की, जिसके तहत 21 से 65 आयु वर्ग की उन महिलाओं के बैंक खातों में 1,500 रुपये का मासिक भत्ता स्थानांतरित किया जाएगा, जिनकी पारिवारिक आय सालाना 2.5 लाख रुपये से कम है। इस योजना की घोषणा राज्य के बजट में की गई थी।

याचिकाकर्ता के वकील ओवैस पेचकर ने शुक्रवार को याचिका पर तत्काल सुनवाई और योजना के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश का अनुरोध किया, क्योंकि इस महीने के अंत में लाभार्थियों को राशि वितरित की जाएगी।

हालांकि, मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने अनुरोध को खारिज करते हुए कहा कि याचिका पर नियमित प्रक्रिया के अनुसार सुनवाई की जाएगी। मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा, ‘‘नियमित प्रक्रिया की प्रणाली को निरर्थक न बनाएं। कहीं तोड़फोड़ की कार्रवाई हो रही है या किसी को फांसी पर लटकाया जा रहा हो..तब अत्यावश्यक कार्यवाही होती है।’’

उच्च न्यायालय की वेबसाइट के अनुसार, जनहित याचिका पर पांच अगस्त को सुनवाई होने की संभावना है। याचिकाकर्ता नवीद अब्दुल सईद मुल्ला ने दावा किया कि संबंधित सरकारी योजना के माध्यम से ‘‘प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करदाताओं/राजकोष पर अतिरिक्त बोझ डाला जाता है, क्योंकि करों को अवसंरचना विकास के लिए एकत्र किया जाता है, न कि बेतुकी नकद योजनाओं के लिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी नकद लाभ योजनाएं, आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में मौजूदा गठबंधन सरकार में शामिल दलों की ओर से किसी खास वर्ग के मतदाताओं को किसी विशेष उम्मीदवार के पक्ष में वोट के लिए रिश्वत या उपहार देने के समान हैं।’’

याचिका में कहा गया कि ऐसी योजना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के विरुद्ध है और ‘‘भ्रष्ट आचरण’’ के समान है। याचिका में दावा किया गया कि महिलाओं के लिए इस योजना पर लगभग 4,600 करोड़ रुपये खर्च होंगे और यह ‘‘महाराष्ट्र पर बहुत बड़ा बोझ है, जिस पर पहले से ही 7.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।’’

भाषा आशीष नरेश

नरेश



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