राजनीतिक दलों ने राज्यों को एससी को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति देने संबंधी फैसले का स्वागत किया

Ankit
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नयी दिल्ली, एक अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्यों को अनुसूचित जातियों (एएसी) के भीतर सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक पिछड़ी जातियों के उन्नयन के लिए कोटा देने के वास्ते उप-वर्गीकरण करने की अनुमति देने के फैसले का राजनीतिक दलों ने बृहस्पतिवार को स्वागत करते हुए इसे ‘‘ऐतिहासिक’’ करार दिया।


प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक के मुकाबले छह मतों के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का उप-वर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि इन समूहों के भीतर अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा प्रदान करना सुनिश्चित किया जा सके।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने 1996 में एससी उप-वर्गीकरण पर न्यायमूर्ति रामचंद्र राजू आयोग का गठन करके इस दिशा में पहला कदम उठाया था।

श्रीशैलम में एक जनसभा को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा, ‘‘सभी वर्गों के साथ न्याय होना चाहिए और सामाजिक न्याय की जीत होनी चाहिए। यह तेदेपा का दर्शन है। सबसे गरीब वर्गों तक पहुंचने के लिए उप-वर्गीकरण उपयोगी होगा।’’

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और आंध्र प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सत्य कुमार यादव ने भी इस फैसले को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग को न्याय मिला है।

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के नेता ए. सुरेश ने कहा कि न्यायालय के फैसले का इस्तेमाल अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिए किया जाना चाहिए, न कि ‘‘अवसरवादी राजनीति’’ के लिए।

उन्होंने ताड़ेपल्ली स्थित पार्टी कार्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ईमानदारी से चाहती है कि शीर्ष न्यायालय के फैसले का इस्तेमाल अवसरवादी राजनीति के लिए न किया जाए, बल्कि अनुसूचित जातियों को मजबूत करने के लिए किया जाए, जिससे सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो और विचार, वचन और कर्म से फैसले की भावना का पालन किया जाए।’’

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्यों को वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए निर्धारित आरक्षण में उप-वर्गीकरण करने का अधिक अधिकार दिए जाने के फैसले को बृहस्पतिवार को ‘‘ऐतिहासिक’’ करार दिया और कहा कि इस फैसले से श्रेणियों में कोटा देने के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा दूर हो गई है।

सिद्धरमैया ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘अनुसूचित जातियों में सबसे पिछड़े लोगों की पहचान करने और उन्हें आरक्षण में कोटा देने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखने का उच्चतम न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक है। मैं इस फैसले का तहे दिल से स्वागत करता हूं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के फैसले से आरक्षण में कोटा देने के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा दूर हो गई है। हम फैसले के विवादास्पद पहलुओं के बारे में अनुसूचित जाति के नेताओं और कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे और उचित कार्रवाई करेंगे।’’

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने बृहस्पतिवार को राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए उप-वर्गीकरण करने के अधिकार से जुड़े उच्चतम न्यायालय के निर्णय की सराहना की।

उच्चतम न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि पीठ ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित अधिनियम के तहत अरुंथथियार समुदाय को दिए गए आंतरिक आरक्षण को बरकरार रखा है।

स्टालिन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘आज का उच्चतम न्यायालय का फैसला उत्पीड़ित लोगों की सामाजिक मुक्ति के लिए सामाजिक न्याय स्थापित करने की हमारी द्रविड़ मॉडल यात्रा की एक और मान्यता है।’’

उन्होंने कहा कि एक औपचारिक समिति गठित की गई थी और इसके माध्यम से एकत्र आंकड़ों के आधार पर दिवंगत मुख्यमंत्री और द्रमुक नेता एम. करुणानिधि ने अरुंथथियार समुदाय के लिए तीन प्रतिशत आंतरिक आरक्षण निर्धारित किया था।

मुख्यमंत्री और द्रमक अध्यक्ष ने कहा, ‘‘मैंने राज्य विधानसभा में (इस दिशा में) एक विधेयक पेश किया और इसे पारित कर दिया गया।’’

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्यों को वंचित जातियों के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए निर्धारित आरक्षण में उप-वर्गीकरण करने का अधिक अधिकार दिये जाने के फैसले का बृहस्पतिवार को स्वागत किया।

रेड्डी ने विधानसभा को बताया कि तेलंगाना सरकार ने ही उप-वर्गीकरण के लिए उच्चतम न्यायालय में जोरदार तरीके से दलील रखी थी।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मैं भारत के उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। सात में से छह न्यायाधीशों ने कहा कि राज्य सरकारें उपवर्गीकरण पर विचार कर सकती हैं। राज्य सरकार की ओर से मैं यह बयान दे रहा हूं कि तेलंगाना उपवर्गीकरण लागू करने वाला पहला राज्य होगा।’’

उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो उनकी सरकार मौजूदा नौकरी अधिसूचनाओं में भी उपवर्गीकरण लागू करने के लिए अध्यादेश लाएगी।

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामा राव ने एक बयान में कहा कि उनकी पार्टी उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करती है।

उन्होंने कहा कि बीआरएस पार्टी ने शुरू से ही उपवर्गीकरण के लिए ईमानदारी से काम किया जबकि अन्य राजनीतिक दल इस मुद्दे पर वोट बैंक की राजनीति में लिप्त रहे।

राम राव ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकार से तुरंत उपवर्गीकरण लागू करने की मांग करते हैं। पार्टी सरकार को समर्थन देगी।’’

उन्होंने कहा कि पिछली के. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार ने सत्ता में आने के बाद एक प्रस्ताव पारित कर इसे व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपा था।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने बृहस्पतिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जातियों (एससी) के उप-वर्गीकरण को स्वीकार्य मानकर ‘‘लंबित विवाद’’ का समाधान कर दिया है। पार्टी ने इस बात पर जोर दिया कि केंद्र और राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुसूचित जातियों के पिछड़े वर्गों को आरक्षण मिले।

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि इससे एक लंबित विवाद का समाधान हो गया है।

येचुरी ने कहा, ‘‘लंबित विवाद का समाधान करते हुए उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य है। न्यायालय ने पिछड़ी एससी श्रेणियों के लिए अलग से कोटा की भी अनुमति दी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र और राज्य सरकारों को उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार अब अनुसूचित जातियों के पिछड़े वर्गों को इस दायरे में लाने के लिए सभी उपाय करने चाहिए।’’

माकपा पोलित ब्यूरो ने भी एक बयान जारी कर सरकारों से उचित कदम उठाने का आह्वान किया।

पोलित ब्यूरो ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अनुसूचित जातियों का उप वर्गीकरण स्वीकार्य है। न्यायालय ने एससी श्रेणियों के भीतर अधिक पिछड़े लोगों के लिए अलग कोटा की भी अनुमति दी।’’

पार्टी ने कहा, ‘‘सरकारों को अब उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए कि अनुसूचित जातियों के पिछड़े वर्गों को उनकी स्थिति में सुधार के लिए सुविधाएं प्रदान की जाएं।’’

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक प्रमुख सहयोगी ने बृहस्पतिवार को दावा किया कि राज्यों को वंचित वर्गों के लिए आरक्षण में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार देने वाला उच्चतम न्यायालय का फैसला ‘‘प्रदेश सरकार के पुराने रुख की पुष्टि करता है’’।

बिहार के संसदीय कार्य मंत्री चौधरी ने कहा, ‘‘हमारे द्वारा शुरू की गयी इन उप-श्रेणियों ने यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा किया है कि आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंदों तक पहुंचे। यही कारण है कि ‘‘क्रीमी लेयर’’ नामक एक और श्रेणी है जो अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति वाले लोगों को कवर करती है, जिन्हें अब इन सुविधाओं की आवश्यकता नहीं है।’’

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आज के फैसले ने बिहार सरकार के पुराने रुख को सही साबित कर दिया है।

क्रीमी लेयर का तात्पर्य आरक्षित श्रेणियों के व्यक्तियों के एक वर्ग से है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहतर हैं। वर्तमान में क्रीमी लेयर की अवधारणा केवल ओबीसी के आरक्षण पर लागू है।

लोकसभा सदस्य चंद्रशेखर आजाद ने फैसले के क्रियान्वयन को लेकर चिंता व्यक्त की।

उन्होंने कहा, ‘‘क्या यह अनुच्छेद 341 का उल्लंघन नहीं है? मैं भी चाहता हूं कि वंचित वर्ग को लाभ मिले, लेकिन जिस तरह से सरकार ने निजीकरण किया है और नीतियों को लागू किया है, उससे पिछड़ी जातियों को क्या लाभ होगा? वे कहते हैं कि जो दर्द महसूस करते हैं, वही इसे जानते हैं। मैं देखना चाहता हूं कि पीठ में कितने एससी/एसटी जज हैं, वकील कौन थे और उनकी मंशा क्या थी। यह सब सामने आना चाहिए।’’

आजाद ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा, ‘‘अगर उप-वर्गीकरण शुरू होता है, तो उच्चतम न्यायालय को सबसे पहले लोकतंत्र लाने की दिशा में काम करना चाहिए। जब ​​वे (न्यायाधीश) ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) का समर्थन करते हैं और फिर राज्यसभा सदस्य या आयोग के सदस्य बन जाते हैं, तो कई सवाल उठते हैं।’’

आजाद समाज पार्टी (कांशी राम) के सांसद आजाद ने कहा, ‘‘एससी और एसटी के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर क्या निगरानी की गई है? एससी/एसटी के लोग अब जागरूक हैं और चर्चा होगी। जाति जनगणना के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। मैं फैसले का अध्ययन किए बिना और कुछ नहीं कह सकता।’’

वहीं, सांसद पप्पू यादव ने प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता पर बल दिया।

यादव ने ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करने में आंकड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने सही बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि इसे कौन लागू करेगा। आरएसएस? न्यायालय के फैसले का कितना सम्मान किया गया है? जाति जनगणना के बारे में बात करना कि किसके पास क्या है और किसे अवसर मिलना चाहिए, यह बहुत स्पष्ट है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एक बार जाति जनगणना हो जाने के बाद, यह स्पष्ट हो जाएगा कि किसे क्या और कब मिला। यह फैसला बिल्कुल सही है और जिन समुदायों को अवसर नहीं मिले हैं, उन्हें आगे आना चाहिए।’’

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने आरक्षण के मूल आधार पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘‘आरक्षण का आधार अस्पृश्यता थी। इसका उद्देश्य उन जातियों को आरक्षण देकर ऊपर उठाना था जो पिछड़ गई थीं। इसलिए, एससी/एसटी पर क्रीमी और नॉन-क्रीमी लेयर लागू नहीं हो सकती क्योंकि इसका आधार अस्पृश्यता और सामाजिक प्रतिनिधित्व है।’’

भाजपा सांसद बृजलाल ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह एससी/एसटी समुदायों के बीच आर्थिक असमानताओं को दूर करता है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं क्योंकि इससे यह सुनिश्चित होता है कि जिन एससी/एसटी परिवारों की पीढ़ियां सरकारी नौकरियों में हैं और जो अमीर बन गए हैं, उन्हें आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। इसके बजाय, गांवों में रहने वाले गरीब मजदूर और किसान जो शारीरिक श्रम कर रहे हैं, उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए।’’

बृजलाल ने कहा, ‘‘यह एक सामाजिक मुद्दा भी है, क्योंकि अगर आज किसी को आरक्षण से वंचित किया जाता है, तो उसकी अगली पीढ़ी फिर से गरीब हो सकती है। इसलिए, मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं।’’

कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने आरक्षण में प्रतिनिधित्व के महत्व पर जोर दिया और उच्चतम न्यायालय की व्याख्या से सहमति जताई।

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायालय संविधान की व्याख्या करने वाला सर्वोच्च तंत्र है और आरक्षण का मतलब प्रतिनिधित्व है। ये बातें सामने आनी चाहिए।’’ उन्होंने फैसले को संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप बताया।

भाषा धीरज नेत्रपाल

नेत्रपाल



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