हिसार, 10 मार्च (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को यहां कहा कि जो व्यक्ति हमेशा आध्यात्मिक चेतना को जागृत रखता है, उसे आंतरिक शांति का अनुभव होता है।
वह ब्रह्माकुमारीज के स्वर्ण जयंती के मौके पर राज्य स्तरीय अभियान की शुरूआत करने के बाद एक सभा को संबोधित कर रही थीं।
राष्ट्रपति ने कहा कि आध्यात्म मानव निर्मित सीमाओं से ऊपर उठकर पूरी मानवता को एकजुट करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या आध्यात्म पर आधारित किसी भी अन्य प्रकार की व्यवस्था नैतिक और टिकाऊ होती है। जो व्यक्ति हमेशा आध्यात्मिक चेतना को जागृत रखता है, उसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है तथा वह आंतरिक शांति का अनुभव करता है।’’
उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक शांति का अनुभव करने वाला व्यक्ति दूसरों के जीवन को भी सकारात्मक ऊर्जा से समृद्ध करता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आध्यात्मिक शांति की वास्तविक उपयोगिता अकेले रहने में नहीं है।
मुर्मू ने कहा कि इसका इस्तेमाल स्वस्थ, मजबूत और समृद्ध समाज और राष्ट्र के निर्माण में किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संगठन आध्यात्मिक ऊर्जा का इस्तेमाल राष्ट्र और समाज के लाभ के लिए कर रहा है।
उन्होंने कहा कि यह संगठन नशाखोरी के खिलाफ अभियान, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण जैसे कई सामाजिक और राष्ट्रीय पहलों में योगदान दे रहा है।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि ब्रह्माकुमारी परिवार आध्यात्मिकता के बल पर लोगों के समग्र स्वास्थ्य और देश के समग्र विकास में योगदान देता रहेगा।
राष्ट्रपति ने हिसार में ब्रह्माकुमारी केंद्र द्वारा मानवता की सेवा के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में इस समारोह के आयोजन के लिए संगठन को बधाई दी।
उन्होंने कहा, ‘‘आपके प्रयासों से लोगों के लिए शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के रास्ते खुले हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जिस प्रकार गीता के उपदेशों के बल पर लोग सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की लड़ाइयों का सामना करने और उन्हें जीतने के लिए अपने अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करना चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आध्यात्मिक शांति की वास्तविक उपयोगिता समाज से दूर रहकर शांतिपूर्ण बने रहने में नहीं है। आध्यात्मिक शांति की वास्तविक उपयोगिता एक स्वस्थ, मजबूत और समृद्ध समाज और राष्ट्र का निर्माण करने में है।’’
भाषा रंजन संतोष
संतोष