स्कूल में डराए जाने वाले बच्चों में भविष्य के प्रति आशावादी दृष्टिकोण में होती है कमी

Ankit
5 Min Read


(हन्ना एल. शैक्टर, वेन स्टेट यूनिवर्सिटी)


डेट्रॉयट, दो अक्टूबर (द कन्वरसेशन) स्कूली छात्रों को डराने- धमकाने का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर काफी कुछ कहा जा चुका है। लेकिन, क्या उन्हें डराना-धमकाना उनकी भविष्य की आकांक्षाओं को भी प्रभावित कर सकता है?

हमारे नवीनतम शोध से यह पता चलता है कि नौवीं कक्षा में जिन विद्यार्थियों को धमकाया जाता है, वे दसवीं कक्षा के बाद अपनी शिक्षा और भविष्य की संभावनाओं के बारे में अधिक निराशावादी हो जाते हैं।

स्पष्ट तौर पर कहा जाए, तो डराने और धमकाए जाने से स्कूल के विद्यार्थियों में अवसाद का खतरा बढ़ जाता है, जिससे भविष्य के प्रति उनमें निराशावादी दृष्टिकोण और भावनाएं व्याप्त हो जाती हैं।

विद्यार्थियों के कल्याण का अध्ययन करने वाले एक विकासात्मक मनोवैज्ञानिक के रूप में, मैंने भविष्य के लिए किशोरों की अपेक्षाओं पर उन्हें डराने और धमकाने के दीर्घकालिक प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास किया।

मेरी शोध टीम ने दसवीं कक्षा के 388 छात्रों को इस शोध में शामिल किया, जिन्होंने हाल ही में नौवीं कक्षा की पढ़ाई शुरू की थी। हमने उनसे लगातार तीन वर्षों तक हर कुछ महीनों में सर्वेक्षण पूरा करने को कहा।

जिन विद्यार्थियों ने बताया कि नौवीं कक्षा में उनके साथियों द्वारा उन्हें अधिक परेशान किया जाता था, उन्होंने बताया कि 11वीं कक्षा तक आते-आते भविष्य की शैक्षणिक और करियर संबंधी संभावनाओं के प्रति उनकी अपेक्षाएं कम हो गईं।

दूसरे शब्दों में कहें तो, डराए और धमकाए गए छात्रों को अपनी इच्छित शिक्षा का स्तर प्राप्त करने, आनंददायक काम खोजने तथा दसवीं कक्षा के बाद स्वयं का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त धन कमाने की अपनी क्षमता के प्रति कम आत्मविश्वास महसूस हुआ।

जिन विद्यार्थियों को नौवीं कक्षा में अधिक परेशान किया गया, उनके भविष्य की उम्मीदों में उन सहपाठियों की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत अंकों की गिरावट आने की संभावना थी, जिन्हें स्कूल में परेशान नहीं किया गया।

जाति, लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और शैक्षणिक उपलब्धि के लिए पूर्व अपेक्षाओं जैसे कारकों को ध्यान में रखने के बाद भी यह गिरावट महत्वपूर्ण बनी हुई है।

दिलचस्प बात यह है कि विद्यार्थियों को एक विशेष तरीके से तंग करने का भविष्य को लेकर उनके दृष्टिकोण पर विशेष रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिन विद्यार्थियों ने साथियों द्वारा उत्पीड़न का अनुभव किया, जिसमें बहिष्कार शामिल था – जानबूझकर नजरअंदाज किया जाना अथवा सामूहिक गतिविधियों से बाहर रखा जाना – या जिन्होंने सामाजिक रिश्तों को नुकसान पहुंचाया, वे सबसे अधिक बुरी स्थिति में थे।

लेकिन, जो किशोर खुलेआम उत्पीड़न के शिकार हुए – जैसे कि मारना-पीटना या धमकी देना और सीधे गाली देना – उन्होंने भविष्य के प्रति कम उम्मीदें नहीं जताईं।

विद्यार्थियों के रिश्तों और सामाजिक प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाली डराने की गतिविधि भविष्य की सफलता के प्रति उनकी आशा को क्यों कमजोर कर देती है?

हमने पाया कि अवसाद भी इसमें अहम भूमिका निभाता है। जिन विद्यार्थियों ने नौवीं कक्षा में इस तरह की बदमाशी (डराया और धमकाया जाना) का अनुभव किया, उनमें 10वीं कक्षा तक आते-आते अवसाद के लक्षण अधिक दिखने लगे।

दसवीं कक्षा में अवसाद के अधिक लक्षण होने का संबंध एक वर्ष बाद भविष्य की कम उम्मीदों से था।

यह क्यों मायने रखता है

पिछले शोध से पता चलता है कि नकारात्मक भविष्य की उम्मीद रखने वाले विद्यार्थियों के वयस्क होने पर कॉलेज जाने और उच्च-स्तरीय नौकरी पाने की संभावना कम होती है।

हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि हाई स्कूल की शुरुआत में डराने-धमकाने के कारण बाद में शिक्षा और करियर की संभावनाओं के बारे में निराशा और हताशा का दुष्चक्र शुरू हो सकता है।

आगे क्या

हम अपने शोध में भाग लेने वाले युवाओं के साथ अतिरिक्त सर्वेक्षण करने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि वे आने वाले वर्षों में कॉलेज और कामकाजी दुनिया में प्रवेश करेंगे। ऐसा करके, हम डराने-धमकाने और उसके प्रभावों को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने के सर्वोत्तम तरीकों की पहचान करने की उम्मीद करते हैं। हमारा अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी किशोर वयस्क के रूप में आगे बढ़ने की अपनी क्षमता में आत्मविश्वास महसूस करें।

द कन्वरसेशन रवि कांत प्रशांत

प्रशांत



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *