नयी दिल्ली, चार फरवरी (भाषा) सरकार सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र के निर्यातकों को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराने, उनके लिए ‘फैक्टरिंग’ सेवाओं को मजबूत करने के जरिये वैकल्पिक वित्तपोषण साधन को बढ़ावा देने और अन्य देशों द्वारा लगाए गए गैर-शुल्क उपायों से निपटने में सहायता की पेशकश करने के लिए योजनाएं तैयार कर रही है। एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
‘फैक्टरिंग’, वित्तीय लेनदेन और देनदार वित्त का एक प्रकार है, जिसमें एक व्यवसाय अपने प्राप्य खातों (यानी चालान) को एक तीसरे पक्ष (जिसे फैक्टर कहा जाता है) को छूट पर बेचता है।
विदेश व्यापार महानिदेशक (डीजीएफटी) संतोष कुमार सारंगी ने यहां पत्रकारों से कहा कि वाणिज्य, एमएसएमई और वित्त मंत्रालय इन योजनाओं पर काम कर रहे हैं।
ये योजनाएं 2025-26 के केंद्रीय बजट में घोषित निर्यात संवर्धन मिशन के तहत तैयार की जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि ये योजनाएं लगभग चार से पांच महीने में लागू होने की उम्मीद है।
सरकार ने देश के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 2,250 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ निर्यात संवर्धन मिशन की स्थापना की एक फरवरी को घोषणा की थी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि इस मिशन के जरिये सरकार निर्यातकों को ऋण तक आसान पहुंच, सीमा पार ‘फैक्टरिंग’ सहायता और विदेशी बाजारों में गैर-शुल्क उपायों से निपटने के लिए एमएसएमई को सहायता प्रदान करेगी।
सारंगी ने कहा कि ‘फैक्टरिंग’ सेवाओं को बढ़ावा देने से निर्यातकों की बैंकों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
निर्यात ‘फैक्टरिंग’ सेवाएं (जो विश्व स्तर पर व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला वित्तपोषण साधन है) भारत में उच्च ‘फैक्टरिंग’ लागत, उच्च ब्याज दर, उच्च जोखिम प्रीमियम तथा अनुदान योजनाओं के साथ समानता की कमी के कारण कम अपनाई जाती हैं।
उन्होंने कहा कि सीमापार ‘फैक्टरिंग’ को एक निश्चित स्तर पर पहुंचना चाहिए, जिससे यह वस्तु निर्यात का करीब तीन प्रतिशत (वैश्विक औसत के अनुरूप) हो जाएगा।
भाषा निहारिका अजय
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