सरकारों का पक्ष रखने वाले विधि अधिकारियों में 30 प्रतिशत महिलाएं होनी चाहिए : न्यायमूर्ति नागरत्ना |

Ankit
4 Min Read


मुंबई, 15 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने शनिवार को ग्राम पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण की सराहना करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधि अधिकारियों में भी कम से कम 30 प्रतिशत महिलाएं होनी चाहिए।


न्यायमूर्ति नागरत्ना ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में सक्षम महिला अधिवक्ताओं की पदोन्नति का आह्वान किया ताकि न्यायाधीशों में अधिक विविधता लाई जा सके।

शीर्ष अदालत की न्यायाधीश ने यहां मुंबई विश्वविद्यालय द्वारा ‘ब्रेकिंग ग्लास सीलिंग: वूमेन हू मेड इट’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए सवाल किया कि यदि 45 वर्ष से कम आयु के पुरुष अधिवक्ताओं को उच्च न्यायालयों में नियुक्त किया जा सकता है, तो सक्षम महिला अधिवक्ताओं को क्यों नहीं।

उन्होंने कहा, ‘‘सफलतापूर्वक बंदिशों को तोड़ने के लिए, हमें कल की लड़कियों और महिलाओं को लिंग-भूमिकाओं और गुणों के पूर्वाग्रहों से नहीं गुजरने देना चाहिए। सफलता के लिए कोई ऐसा गुण नहीं है जो केवल पुरुषों के लिए हो और महिलाओं में न हो।’’

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने रेखांकित किया कि युवा महिलाओं के पास ऐसे आदर्श और मार्गदर्शकों का अभाव है जो उन्हें कानूनी पेशे में आगे बढ़ने और सफल होने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित और मदद कर सकें।

उन्होंने कहा, ‘‘यह अहम है कि हम उन महिलाओं के महत्व को पहचानें जिन्होंने बंदिशों को तोड़ दिया और उनके मार्ग का अनुसरण करें। साथ ही, हमें उन महिलाओं को भी याद रखना चाहिए जिन्होंने भले ही उच्च-स्तरीय उपलब्धियों के माध्यम से सुर्खियां नहीं बटोरीं, लेकिन उनका योगदान महत्वपूर्ण है और जिन्होंने अपने आसपास के लोगों के जीवन पर अपनी छाप छोड़ी है।’’

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि आम महिलाओं के जीवन को भी मान्यता दी जानी चाहिए, जिनकी प्राथमिक भूमिकाएं मां, पत्नी और देखभाल करने वाली की हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘उनका महत्व हमेशा दिखाई नहीं देता, लेकिन कई मायनों में, ये महिलाएं ही हैं जो अपने परिवार के सदस्यों के लिए बाहरी दुनिया पर विजय पाने का आधार बनाती हैं। बच्चों की परवरिश और घर-परिवार को संभालने के लिए भी काफी नेतृत्व, बौद्धिक क्षमता और रचनात्मकता की आवश्यकता होती है।’’

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने रेखांकित किया कि न्यायपालिका को हर स्तर पर संवेदनशील, स्वतंत्र और पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हालांकि अग्रणी विधि विद्यालयों और विश्वविद्यालयों से स्नातक होकर जूनियर स्तर पर काम करने वाली महिला स्नातकों की संख्या उनके पुरुष समकक्षों के लगभग बराबर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कार्यस्थल पर या बाद में उच्च पदों पर समान प्रतिनिधित्व होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘उनकी उन्नति की गतिशीलता प्रणालीगत भेदभाव से बाधित है। समाज की सेवा करने वाले व्यवसायों में लैंगिक विविधता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां महिलाओं की उपस्थिति समानता और निष्पक्षता के आदर्श को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर वंचित समूहों के बीच। जहां तक कानूनी पेशे का सवाल है, केंद्र या राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले कम से कम 30 प्रतिशत विधि अधिकारी महिलाएं होनी चाहिए।’’

भाषा धीरज रंजन

रंजन



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *