(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 28 सितंबर (भाषा) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार का आह्वान करते हुए शनिवार को कहा कि यह ‘पुरातन’ नहीं रह सकता और इस विश्व निकाय का समकालीन युग में अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण तथा उद्देश्यों के अनुकूल होना ‘आवश्यक’ है।
विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘वैश्विक व्यवस्था स्वाभाविक रूप से बहुलवादी और विविधतापूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र की शुरुआत 51 सदस्यों के साथ हुई थी। अब हम 193 हैं। दुनिया बहुत बदल गई है, और इसलिए इसकी चिंताएं और अवसर भी बदल गए हैं।’’
उन्होंने कहा कि विश्व की चिंताओं और चुनौतियों का समाधान करने तथा व्यवस्था को मजबूत करने के वास्ते आवश्यक है कि ‘‘साझा आधार तलाशने के लिए संयुक्त राष्ट्र केन्द्रीय मंच बने।’’
हालांकि, जयशंकर ने आगाह किया कि संयुक्त राष्ट्र निश्चित रूप से ‘‘पुरातन’’ मंच नहीं बना रह सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे समय के प्रमुख मुद्दों पर निर्णय लेने के मामले में दुनिया के बड़े हिस्से को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। एक प्रभावी और कुशल संयुक्त राष्ट्र, एक अधिक प्रतिनिधियुक्त संयुक्त राष्ट्र और समकालीन युग में उद्देश्य के लिए उपयुक्त संयुक्त राष्ट्र आवश्यक है।’’
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र से एक स्पष्ट संदेश भेजने का आह्वान किया कि ‘‘हम पीछे नहीं छूटने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। एक साथ आकर, अनुभव साझा करके, संसाधनों को एकत्रित करके और अपने संकल्प को मजबूत करके, हम दुनिया को बेहतर के लिए बदल सकते हैं’’।
जयशंकर ने यह भी रेखांकित किया कि बहुपक्षवाद में सुधार करना अनिवार्य है।
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘इस सत्र के विषय द्वारा इस आह्वान की तात्कालिकता को रेखांकित किया गया है। किसी को भी पीछे न छोड़ने का अर्थ है शांति को आगे बढ़ाना, सतत विकास सुनिश्चित करना और मानव गरिमा को मजबूत करना। विभाजन, संघर्ष, आतंकवाद और हिंसा का सामना करने वाले संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह कार्य नहीं किया जा सकता। न ही इसे तब आगे बढ़ाया जा सकता है जब भोजन, ईंधन और उर्वरक तक पहुंच खतरे में हो।’’
विदेश मंत्री ने कहा कि जब बाजार पर कब्जा करने में संयम की कमी होती है, तो इससे दूसरों की आजीविका और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचता है। विकसित देशों द्वारा जलवायु संबंधी जिम्मेदारियों से बचने से विकासशील देशों की विकास संभावनाएं कमजोर हो जाती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि विश्व ऐसी स्थिति में है, तो इस निकाय को स्वयं से पूछना चाहिए, यह कैसे हुआ? समस्याएं संरचनात्मक कमियों, राजनीतिक नफा-नुकसान, नितांत स्वार्थ और हां, पीछे छूट गए लोगों के प्रति उपेक्षा के संयोजन से उत्पन्न होती हैं।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘आज हम जिस स्थिति का सामना कर रहे हैं, उससे अभिभूत होना स्वाभाविक है। आखिरकार, इसमें कई आयाम, विभिन्न गतिशील भाग, दिन के मुद्दे और बदलते परिदृश्य शामिल हैं।’’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘लेकिन हर बदलाव कहीं न कहीं से शुरू होना चाहिए। और उससे बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती, जहां से यह सब शुरू हुआ। हम, संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को अब गंभीरता से और उद्देश्यपूर्ण तरीके से उस कार्य करना चाहिए। इसलिए नहीं कि यह प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा है या पदों के लिए झगड़ा है, बल्कि इसलिए कि, अगर हम इसी तरह चलते रहे, तो दुनिया की स्थिति और खराब होती जाएगी। इसका अभिप्राय यह हो सकता है कि हममें से ज्यादातर लोग पीछे छूट जाएंगे।’’
भारत सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग वर्षों से कर रहा है जिसमें इसकी स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों के सदस्यों की संख्या में वृद्धि की मांग शामिल है। भारत का कहना है कि 1945 में स्थापित 15 देशों की परिषद 21वीं सदी के उद्देश्यों के लिए उपयुक्त नहीं है और समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है। भारत इस बात पर जोर देता रहा है कि वह सही परिषद की स्थायी सदस्यता का हकदार है।
भाषा धीरज सुरेश
सुरेश