संपत्ति का अधिकार संवैधानिक अधिकार है: उच्चतम न्यायालय |

Ankit
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नयी दिल्ली, तीन जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है और कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजे का भुगतान किए बिना किसी व्यक्ति से उसकी संपत्ति नहीं ली जा सकती।


न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने कहा कि संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 के कारण संपत्ति का मौलिक अधिकार समाप्त कर दिया गया। हालांकि यह एक कल्याणकारी राज्य में एक मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है।

संविधान के अनुच्छेद 300-ए में प्रावधान है कि कानूनी प्रक्रिया का उपयोग किए बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।

शीर्ष अदालत ने बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट (बीएमआईसीपी) के लिए भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के नवंबर 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर बृहस्पतिवार को अपना फैसला सुनाया।

पीठ ने कहा, “संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के प्रावधानों के मद्देनजर यह एक संवैधानिक अधिकार है।”

इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना से संबंधित मुआवजे पर अपने फैसले में अदालत ने कहा, ‘किसी व्यक्ति को कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजा दिए बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।’

पीठ ने कहा कि कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (केआईएडीबी) ने जनवरी 2003 में, परियोजना के सिलसिले में भूमि अधिग्रहण के लिए एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी की थी और नवंबर 2005 में अपीलकर्ताओं की भूमि का कब्जा ले लिया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में अपीलकर्ता भूमि मालिकों को पिछले 22 वर्षों के दौरान कई मौकों पर अदालतों का रुख करना पड़ा और उन्हें बिना किसी मुआवजे के उनकी संपत्ति से वंचित कर दिया गया।

भाषा

जोहेब नरेश

नरेश



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