शाही लीची, लाख की चूड़ियों के लिए है प्रसिद्ध |

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(कुणाल दत्त)


मुजफ्फरपुर, एक जनवरी (भाषा) ऐतिहासिक मुजफ्फरपुर के जिला बनने के बुधवार को 150 साल पूरे हो गए। विश्व प्रसिद्ध ‘शाही लीची’ के लिए प्रसिद्ध यह जिला लाख से बनी चूड़ियों के लिए भी मशहूर है। साथ ही यह भूमि कई स्वतंत्रता सेनानियों की वीर गाथाओं की भी गवाह है।

अभिलेखों के अनुसार, एक जनवरी, 1875 को तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी में तत्कालीन तिरहुत जिले को विभाजित कर बनाये गए दो नये जिले अस्तित्व में आये थे।

दिसंबर 2024 में, ‘पीटीआई-भाषा’ संवाददाता ने उत्तर बिहार के ऐतिहासिक शहर मुजफ्फरपुर के जिला मुख्यालय का दौरा किया था और कई वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों तथा जिला कलेक्ट्रेट एवं अन्य कार्यालयों में कई दशकों से काम कर रहे कुछ कर्मचारियों से बातचीत की थी।

जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, मुजफ्फरपुर जिला बनाये जाने की तारीख कुछ साल पहले कोलकाता स्थित अभिलेखीय दस्तावेजों से पता चली थी, जब तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा गठित एक दल को मुजफ्फरपुर जिला बनने पर शोध करने के लिए कहा गया था।

अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘दल एक बहुत पुराना अखबार खोजने में सफल रहा था, जिसमें 1875 में जारी की गई मूल अधिसूचना उसी वर्ष प्रकाशित हुई थी और इस प्रकार यह पता चला था कि एक जनवरी स्थापना दिवस है।’’

उन्होंने कहा कि इसके बाद वर्तमान मुजफ्फरपुर कलेक्ट्रेट भवन के पास एक बैनर लगाया गया, जिसमें 150 साल पहले समाचारपत्र में प्रकाशित अधिसूचना की तस्वीर प्रदर्शित की गई।

अधिसूचना में कहा गया है, ‘‘तिरहुत जिले के दरभंगा, मधुबनी और ताजपुर अनुमंडलों को मिलाकर एक नया जिला बनाया गया है, जिसका नाम पूर्वी तिरहुत होगा और इसका मुख्यालय दरभंगा में होगा।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘तिरहुत के वर्तमान जिले के शेष हिस्सों- मुजफ्फरपुर, हाजीपुर और सीतामढ़ी अनुमंडलों को मिलाकर एक जिला बनाया गया है, जिसका नाम पश्चिमी तिरहुत होगा और जिसका मुख्यालय मुजफ्फरपुर होगा। ये व्यवस्थाएं एक जनवरी 1875 से प्रभाव में आएंगी।’’

दोनों जिलों को अंततः मुजफ्फरपुर और दरभंगा नाम दिया गया।

दरभंगा में ब्रिटिश काल के पुराने कलेक्ट्रेट भवन के मुख्य अग्रभाग पर अंग्रेजी और हिंदी में दो पट्टिकाएं लगी हैं, जिन पर एक जनवरी, 1875 की तारीख अंकित है।

इस प्रकार, आज दरभंगा जिले की स्थापना के भी 150 वर्ष पूरे हो गए हैं। दरभंगा जिला सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध है और यह अपने ऐतिहासिक महलों और धरोहर इमारतों तथा मिथिला क्षेत्र के संगीत एवं भोजन के लिए जाना जाता है।

मुजफ्फरपुर कलेक्ट्रेट में बड़ा बाबू (हेड क्लर्क) राज त्रिवेदी 1958 में प्रकाशित पुराने मुजफ्फरपुर जिला गजेटियर की एक जिल्दबंद फोटोकॉपी दिखाते हैं, जो 1907 में प्रकाशित ऐतिहासिक गजेटियर का संशोधित संस्करण था। इसे इंपीरियल सिविल सेवा (आईसीएस) अधिकारी एलएसएस ओ’मैली ने लिखा था।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें गर्व है कि मुजफ्फरपुर ने एक जिले के रूप में 150 साल पूरे कर लिये हैं लेकिन, पहले हमें इसके बनने की तारीख नहीं पता थी।’’

वर्ष 1907 में मुजफ्फरपुर जिला बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था और पांच साल बाद 1912 में बंगाल से अलग हुए एक नये प्रांत- बिहार एवं उड़ीसा- के गठन के बाद यह बिहार क्षेत्र के अंतर्गत आ गया।

पी सी रॉय चौधरी द्वारा 1958 के जिला गजेटियर में लिखा गया है, ‘‘जब अंतिम गजेटियर (1907 में) प्रकाशित हुआ था, तब मुजफ्फरपुर जिला पटना डिवीजन का हिस्सा था।’’

गजेटियर में लिखा है कि 1908 में पटना कमिश्नरी का विभाजन कर दिया गया और गंगा नदी के उत्तर में स्थित सारण, चंपारण, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिलों को ‘तिरहुत डिविजन’ के रूप में जाना जाने लगा।

तिरहुत कमिश्नर का कार्यालय प्रतिष्ठित मुजफ्फरपुर कलेक्ट्रेट भवन के पास स्थित एक खूबसूरत ब्रिटिशकालीन इमारत में स्थित है।

वर्ष 1934 में आए भीषण भूकंप ने उत्तर बिहार और नेपाल के कई शहरों को तबाह कर दिया था। मुजफ्फरपुर और दरभंगा दोनों ही शहरों को इस आपदा का खामियाजा भुगतना पड़ा था और दोनों शहरों और उनके पड़ोसी इलाकों में मरम्मत और पुनर्निर्माण कार्य किया गया था।

मुजफ्फरपुर शहर में कई प्रतिष्ठित ऐतिहासिक इमारतें हैं, जिसमें 1936 में निर्मित एक मंजिला कलेक्ट्रेट भवन भी शामिल है।

हालांकि, शहर के कई स्थानीय निवासियों और धरोहर प्रेमियों ने इसको लेकर अफसोस जताया कि पुराने जिला बोर्ड भवन और उसके द्वारा संचालित डाक बंगला जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें पिछले 10-15 वर्षों में ‘विकास’ के नाम पर अपना अस्तित्व खो चुकी हैं।

मुजफ्फरपुर के जिला मजिस्ट्रेट सुब्रत कुमार सेन ने दिसंबर में अपने कार्यालय में ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में आश्वासन दिया था कि जिला प्रशासन यहां की धरोहर संरचनाओं का रखरखाव सुनिश्चित करेगा।

जिलाधिकारी कार्यालय में लगे बोर्ड के अनुसार, सी एफ वर्सली को 1875 में मुजफ्फरपुर जिले का पहला मजिस्ट्रेट और कलेक्टर नियुक्त किया गया था।

मुजफ्फरपुर की धरती खुदीराम बोस जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें 1908 में 18 वर्ष की आयु में शहर में एक ब्रिटिश मजिस्ट्रेट की हत्या करने के इरादे से एक गाड़ी पर बम फेंकने के लिए फांसी दे दी गई थी।

इसके साथ ही जुब्बा सहनी को 38 वर्ष की आयु में भागलपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई थी। सहनी मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले थे और उनकी स्मृति में मुजफ्फरपुर शहर में एक प्रमुख उद्यान का निर्माण किया गया है।

भाषा अमित अविनाश

अविनाश



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