मुंबई, एक मार्च (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा प्रणालियां वस्तुकरण और व्यावसायीकरण से ग्रस्त हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा से असमानता कम होती है।
दक्षिण मुंबई में केपीबी हिंदुजा कॉलेज के वार्षिक दिवस समारोह में धनखड़ ने कहा कि अमेरिका के कुछ विश्वविद्यालयों की निधियां अरबों डॉलर में हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘पश्चिम में, (शैक्षणिक) संस्थान से निकलने वाला कोई भी व्यक्ति कुछ वित्तीय योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध होता है।’’ उन्होंने कॉरपोरेट जगत से इस दिशा में सोचने का आग्रह किया।
धनखड़ ने कहा कि सनातन (सनातन धर्म) भारत के सभ्यतागत लोकाचार और सार का हिस्सा रहा है। उन्होंने कहा कि सनातन को देश की संस्कृति और शिक्षा का हिस्सा होना चाहिए, क्योंकि यह समावेशिता का प्रतीक है। उन्होंने जड़ों से जुड़े रहने की आवश्यकता पर बल दिया।
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘परोपकारी प्रयासों को वस्तुकरण और व्यावसायीकरण के दर्शन से प्रेरित नहीं होना चाहिए। हमारी स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा प्रणालियां इनसे ग्रस्त हैं।’’
वस्तुकरण से तात्पर्य किसी चीज को ऐसी वस्तु बनाने से है, जिसे खरीदा, बेचा या जिसका आदान-प्रदान किया जा सके।
उन्होंने शिक्षा को सबसे प्रभावशाली परिवर्तनकारी तंत्र भी बताया, जो समानता लाती है।
उपराष्ट्रपति ने सनातन धर्म का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा कि सनातन भारत की सभ्यतागत प्रकृति और सार का हिस्सा रहा है।
धनखड़ ने कहा, ‘‘सनातन को देश की संस्कृति और शिक्षा का हिस्सा होना चाहिए क्योंकि यह समावेशिता का प्रतीक है।’’
उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में ओदंतपुरी, तक्षशिला, विक्रमशिला, सोमपुरा, नालंदा और वल्लभी जैसी शानदार संस्थाएं थीं और ज्ञान प्राप्त करने, ज्ञान देने और ज्ञान साझा करने के लिए दुनिया के कोने-कोने से विद्वान यहां आते थे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे, लेकिन 1193 में मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने इसे (विश्वविद्यालय) नष्ट कर दिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘1193 में बख्तियार खिलजी ने परिसर में आग लगवा दी थी। महीनों तक सुलगती रही आग ने विशाल पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया, जिससे गणित, चिकित्सा और दर्शन पर सैकड़ों-हजारों अपूरणीय पांडुलिपियां राख हो गईं।’’
धनखड़ ने कहा, ‘‘हमें लोगों को अपने सनातन मूल्यों के बारे में जागरूक करना चाहिए। हम वैश्विक मंच पर फिर से आ गए हैं, हमें उस गौरव को पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता है। हमें इस देश में शिक्षा के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा।’’
उन्होंने कहा कि भारत ऐसे विमर्शों का शिकार नहीं बन सकता जो भारत के अस्तित्व के प्रतिकूल स्रोतों से निकलते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमें नालंदा जैसे संस्थानों और अपनी बौद्धिक विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए काम करना होगा, जो 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।’’
हिंदुजा फाउंडेशन के चेयरमैन अशोक हिंदुजा ने सरकार से शिक्षा में सनातन सिद्धांतों को शामिल करने पर विचार करने का आग्रह किया।
भाषा
देवेंद्र नेत्रपाल
नेत्रपाल