(ऐरन जे कैवोसी, कर्टिन विश्वविद्यालय)
पर्थ, 25 फरवरी (द कन्वरसेशन) अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ‘मैरिनर-9’ अंतरिक्ष यान से 1970 के दशक में हासिल तस्वीरों ने मंगल पर पानी से बनी सतहों की मौजूदगी का खुलासा किया था। इसी के साथ वैज्ञानिकों के लिए लंबे समय से अबूझ पहेली रही यह गुत्थी सुलझ गई थी कि लाल ग्रह पर कभी पानी मौजूद था या नहीं।
तब से इस बात के कई प्रमाण मिले हैं कि मंगल पर एक दौर में पानी की अहम भूमिका हुआ करती थी। उदाहरण के लिए, मंगल ग्रह के उल्कापिंडों के अध्ययन में वहां 4.5 अरब साल पहले पानी की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। पिछले कुछ वर्षों में लाल ग्रह पर बने ‘इंपैक्ट क्रेटर’ (किसी क्षुद्रग्रह या उल्कापिंड के किसी ग्रह या चंद्रमा जैसी विशाल ठोस वस्तु की सतह से टकराने पर बनने वाला गड्ढा) भी वहां सतह के नीचे बर्फ की मौजूदगी के संकेत देते हैं।
आज के समय में मंगल को लेकर सबसे ज्यादा कौतुहल का विषय यह है कि लाल ग्रह पर पानी कब आया, यह कितनी मात्रा में उपलब्ध था और वहां कितने समय तक रहा। वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने की कोशिशों में भी जुटे हैं कि क्या लाल ग्रह पर कभी महासागर हुआ करते थे?
‘पीएनएएस’ पत्रिका में मंगलवार को छपे एक नये अध्ययन में ऐसे कुछ सवालों के जवाब देने की कोशिश की गई है। गुआंगझाउ विश्वविद्यालय के जियानहुई ली के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में चीनी और अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक टीम ने चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन के मंगल यान ‘झुरोंग’ से मिले डेटा का विश्लेषण किया।
यह डेटा लाल ग्रह पर अरबों साल पुरानी संभावित तटरेखा के पास मौजूद चट्टानों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी प्रदान करता है। शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्हें मंगल ग्रह पर एक प्राचीन समुद्र के तट पर पाई जाने वाली चट्टानों के नमूने मिले हैं।
लाल ग्रह पर पानी की मौजूदगी
-मंगल से जुड़े रहस्य खंगालने वाले यान ग्रह के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करते हैं, जिसमें भूविज्ञान, मिट्टी और वायुमंडल शामिल है। वे अक्सर पानी की मौजूदगी के किसी भी निशान की तलाश में रहते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि पानी यह निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक है कि क्या मंगल पर कभी जीवन पनपा था।
अवसादी चट्टानें अक्सर अध्ययन के केंद्र में होती हैं, क्योंकि उनमें मंगल ग्रह पर पानी की मौजूदगी के प्रमाण मिल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, नासा का ‘पर्सिवियरेंस’ यान ‘डेल्टा’ में जमा गाद में जीवन की तलाश कर रहा है। डेल्टा उस त्रिकोणीय क्षेत्र को कहते हैं, जो तेज गति से बहने वाले पानी के स्थिर पानी वाले विशाल जल निकाय में मिलने पर रेत, खनिज और आसपास की घाटी से कटाव के कारण गाद के कण जमा होने की वजह से बनता है। पृथ्वी पर डेल्टा के उदाहरणों में अमेरिका स्थित मिसिसिपी डेल्टा और मिस्र स्थित नील डेल्टा शामिल हैं।
‘पर्सिवियरेंस’ यान जिस डेल्टा के अध्ययन में जुटा है, वह लगभग 45 किलोमीटर चौड़े जेजेरो इंपैक्ट क्रेटर के भीतर स्थित है। माना जाता है कि इस इंपैक्ट क्रेटर के स्थान पर कभी एक झील हुआ करती थी।
वहीं, चीन के ‘झुरोंग’ यान की नजरें पानी के एक बहुत ही अलग स्रोत-मंगल ग्रह के उत्तरी गोलार्ध में स्थित एक प्राचीन महासागर के अवशेष-पर टिकी हुई हैं।
प्राचीन महासागर के अवशेष खोजता ‘झुरोंग’
-‘झुरोंग’ यान का नामकरण एक पौराणिक अग्नि देवता के नाम पर किया गया है। चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन ने 2020 में इसे प्रक्षेपित किया था और यह 2021 से 2022 तक लाल ग्रह की सतह पर सक्रिय था। ‘झुरोंग’ लगभग 3,300 किलोमीटर व्यास क्षेत्र में फैले ‘यूटोपिया प्लेनिटिया’ में उतरा था, जो मंगल ग्रह पर मौजूद सबसे विशाल ज्ञात ‘इंपैक्ट बेसिन’ है।
‘झुरोंग’ मंगल ग्रह पर हजारों किलोमीटर के दायरे में फैली ‘पैलियोशोरलाइन’ के पास के एक क्षेत्र का अध्ययन कर रहा है। ‘पैलियोशोरलाइन’ की व्याख्या एक वैश्विक महासागर के अवशेषों के रूप में की गई थी, जो मंगल के उत्तरी गोलार्ध के एक-तिहाई क्षेत्र में मौजूद था।
सतह के 100 मीटर नीचे की संरचना का अध्ययन
-यह निर्धारित करने के लिए कि क्या ‘यूटोपिया प्लेनिटिया’ में पाई जाने वाली चट्टानें उन चट्टानों से मेल खाती हैं, जो समुद्र के बहने के दौरान जमा गाद से बनती हैं, ‘जुरोंग’ ने घाटी के किनारे 1.3 किलोमीटर लंबी रेखा ‘ट्रांसेक्ट’ के आसपास का डेटा एकत्र किया। ‘ट्रांसेक्ट’ पैलियोशोरलाइन के लंबवत थी। इस अध्ययन का लक्ष्य यह पता लगाना था कि वहां किस तरह की चट्टानें मौजूद हैं और वे क्या कहानी बयां करती हैं।
‘झुरोंग’ ने ‘ग्राउंड पेनिट्रेटिंग राडार’ की मदद से सतह के 100 मीटर नीचे की संरचना का विश्लेषण किया। इस दौरान वहां मौजूद चट्टानों की कई विशेषताओं का पता चला, जिसमें उनका अभिविन्यास भी शामिल है।
‘ग्राउंड पेनिट्रेटिंग राडार’ ने ‘ट्रांसेक्ट’ के आसपास मौजूद चट्टानों में कई परावर्तक परतें पाईं, जो सतह से लगभग 30 मीटर नीचे तक दिखाई देती हैं। ये सभी परतें ‘पैलियोशोरलाइन’ से दूर बेसिन में गहराई में व्याप्त हैं। यह ज्यामिति बिल्कुल उसी तरह है, जिस तरह पृथ्वी पर समुद्र के किनारे जमा गाद की होती है।
‘झुरोंग’ ने ‘यूटोपिया प्लेनिटिया’ से जो डेटा एकत्र किया था, शोधकर्ताओं ने उसकी तुलना पृथ्वी पर जलाशयों में जमी गाद से जुड़े डेटा से की। उन्होंने पाया कि ‘झुरोंग’ ने जिन चट्टानों का अध्ययन किया, उनकी संरचना समुद्र के किनारे जमा तटीय गाद से मेल खाती है। इसका मतलब यह है कि ‘झुरोंग’ लाल ग्रह पर मौजूद प्राचीन समुद्र तट का पता लगाने में सफल रहा है।
पानी की मौजूदगी के निशान कितने पुराने
-मंगल के इतिहास के नोआचियन काल (4.1 से 3.7 अरब वर्ष पहले) में वहां पानी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं। घाटी नेटवर्क और खनिज मानचित्रों की कक्षीय छवियों के विश्लेषण से पता चलता है कि नोआचियन काल में मंगल की सतह पर पानी बहता था।
हालांकि, 3.7 से 3 अरब साल पहले के हेस्पेरियन काल के दौरान सतही जल के साक्ष्य कम हैं। हेस्पेरियन भू-आकृतियों में विशाल बहिर्वाह चैनलों के कक्षीय चित्रों के विश्लेषण से ऐसा प्रतीत होता है कि इनका निर्माण स्थिर जल के बजाय भूजल के विनाशकारी रिसाव से हुआ होगा।
इस लिहाज से ऐसा लगता है कि हेस्पेरियन काल तक मंगल ग्रह ठंडा होकर सूख गया था।
(द कन्वरसेशन) पारुल नरेश
नरेश