विश्व को अमेरिका पर निर्भर हुए बिना पर्यावरणीय संकटों का समाधान तलाशना चाहिए: विशेषज्ञ |

Ankit
7 Min Read


(गौरव सैनी)


नयी दिल्ली, 11 फरवरी (भाषा) प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण लगाने के प्रयासों को छोड़ने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से विशेषज्ञों के बीच चिंता पैदा हो गई है। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इस संकट से निपटने में वैश्विक प्रगति धीमी पड़ सकती है।

उन्होंने सुझाव दिया कि दुनिया को अब अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय समाधान तलाशना चाहिए।

ट्रंप ने सोमवार को कहा कि वह संघीय स्तर पर कागज की स्ट्रॉ के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, क्योंकि वे ‘‘टिकाऊ’’ नहीं होते। उन्होंने कहा कि इसके बजाए प्लास्टिक के इस्तेमाल की तरफ बढ़ना चाहिए। इससे पहले ट्रंप अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से अलग करने की भी घोषणा कर चुके हैं।

ट्रंप का यह कदम सिर्फ़ स्ट्रॉ के बारे में नहीं है। यह प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ़ वैश्विक लड़ाई में एक व्यापक झटका है, खासकर तब जब देश इस संकट से निपटने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि पर बातचीत कर रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, विश्व में प्रतिवर्ष 43 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से दो-तिहाई अल्पकालिक उत्पाद होते हैं, जो शीघ्र ही अपशिष्ट बन जाते हैं, महासागरों को प्रदूषित करते हैं तथा यहां तक ​​कि मानव खाद्य श्रृंखला में भी प्रवेश कर जाते हैं।

यदि तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो 2060 तक वैश्विक प्लास्टिक कचरा लगभग तीन गुना बढ़कर 1.2 अरब टन हो सकता है।

‘‘थिंक टैंक’’ ‘‘इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी’’ के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चंद्रभूषण ने कहा कि ट्रंप का रुख हैरान करने वाला नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका हर पर्यावरणीय वार्ता से पीछे हट जाएगा। अमेरिका प्लास्टिक, तेल और गैस का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। ट्रंप के नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण पर पिछले 20 वर्षों में हुई प्रगति खत्म हो जाएगी।’’

उन्होंने कहा कि ट्रंप के कार्यकाल के बाद वैश्विक विश्वास और गति को फिर से बनाने में कम से कम एक दशक लगेगा। चंद्रभूषण ने कहा, ‘‘अमेरिका हमेशा से ही अंतर-सरकारी वार्ताओं में सबसे बड़ी बाधा रहा है, चाहे वह जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि या प्लास्टिक प्रदूषण पर हो।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब दुनिया को बहुपक्षवाद पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है – यदि वैश्विक सहमति संभव नहीं है तो क्षेत्र कैसे सहयोग कर सकते हैं। हमें अमेरिका पर निर्भर हुए बिना जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय संकटों के समाधान तलाशने चाहिए।’’

चंद्रभूषण ने कहा, ‘‘हालांकि, यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है, तो अमेरिका पीछे नहीं रह सकता। यदि हर कोई इलेक्ट्रिक वाहनों और हरित ऊर्जा की ओर बढ़ जाता है, तो अमेरिका तेल बेचकर खुद को कैसे बनाए रखेगा?’’

जलवायु कार्यकर्ता और सतत सम्पदा जलवायु फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक हरजीत सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति के निर्णय को ‘‘जीवाश्म ईंधन उद्योग के लिए एक उपहार और प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के वैश्विक प्रयासों के साथ विश्वासघात’’ कहा।

उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में सबसे बड़ा ऐतिहासिक योगदानकर्ता और प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरे का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, अमेरिका नेतृत्व करने से इनकार कर रहा है, जिससे प्लास्टिक संधि वार्ता कमजोर हो रही है और पेट्रोकेमिकल्स के विस्तार को बढ़ावा मिल रहा है।

सिंह ने कहा, ‘‘इससे हमारा भविष्य और अधिक उत्सर्जन, अधिक अपशिष्ट और अधिक पर्यावरणीय अन्याय की ओर बढ़ रहा है। यह अस्वीकार्य है कि अमेरिका उसी उद्योग को बढ़ावा दे रहा है जो जलवायु और पारिस्थितिकी संकटों को बढ़ावा दे रहा है।’’

उन्होंने कहा कि देशों को वैश्विक संकटों के लिए साहसिक समाधान के साथ आगे बढ़ना चाहिए, चाहे अमेरिका इसमें शामिल हो या नहीं। सिंह ने कहा, ‘‘लेकिन सबसे बड़े ऐतिहासिक प्रदूषक के रूप में, अमेरिका की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वह कार्रवाई करे और अपना उचित हिस्सा अदा करे।’’

‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ (टेरी) के ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ एवं अपशिष्ट प्रबंधन प्रभाग के निदेशक सुनील पांडे ने बताया कि अधिकांश पॉलिमर जीवाश्म ईंधन आधारित पेट्रोकेमिकल उद्योगों से आते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ट्रंप प्रशासन ने पहले ही संकेत दे दिया है कि तेल कंपनियां ड्रिलिंग जारी रखेंगी, जिससे तेल उत्पादन बढ़ेगा। स्वाभाविक रूप से, प्लास्टिक उत्पादन भी जारी रहेगा। वे प्लास्टिक उत्पादन या खपत को कम करने पर विचार नहीं कर रहे हैं।’’

पांडे ने कहा कि भारत पहले ही प्लास्टिक स्ट्रॉ से दूर हो चुका है, जो एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की उसकी प्रतिबद्धता के अनुरूप है। उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि अमेरिकी नीति में बदलाव से भारत की पहल पर कोई असर नहीं पड़ेगा।’’

वैश्विक प्लास्टिक संधि वार्ता पर पांडे ने कहा कि बाध्यकारी समझौता अभी मुश्किल है। उन्होंने कहा, ‘‘रूस के नेतृत्व में कुछ देश कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि का विरोध कर रहे हैं। अमेरिका भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।’’

‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन इकाई के उप कार्यक्रम प्रबंधक सिद्धार्थ घनश्याम ने कहा कि प्लास्टिक पर संधि वार्ता में अमेरिका ने कभी भी नेतृत्वकारी भूमिका नहीं निभाई।

उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिका अंतर-सरकारी वार्ता में शायद ही कभी अपनी स्थिति का खुलासा करता है। वह कोई मजबूत रुख नहीं अपनाता है और न ही सक्रिय रूप से भाग लेता है। परंपरागत रूप से, उसने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।’’

घनश्याम ने आगाह किया कि अमेरिका के इस फैसले से प्लास्टिक के सख्त नियमों का विरोध करने वाले देशों को बढ़ावा मिल सकता है।

हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्लास्टिक संधि का नतीजा किसी एक देश पर निर्भर नहीं करता। उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिका के फैसले से वार्ता प्रभावित होगी, लेकिन हमें इसे उससे अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, जितना यह हकदार है।’’

भाषा आशीष नरेश

नरेश



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *