(निवेदिता खांडेकर)
नयी दिल्ली, दो अगस्त (भाषा) विशेषज्ञों ने वर्षा और भूस्खलन की आशंका के बीच संबंध स्थापित करने वाली एक सटीक पूर्व चेतावनी प्रणाली की जरूरत पर बल दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह बहुत जरूरी है क्योंकि बारिश पूरे भारत में पहाड़ों पर कहर ढा रही है और केरल के वायनाड की ढलानों पर तो यह और भी ज्यादा खतरनाक हो गई है, जहां भूस्खलन के कारण सैंकड़ों घर और हजारों लोग दब गए।
बृहस्पतिवार को हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से घर, पुल और सड़कें बह गईं, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई और 50 लोग लापता हो गए। उत्तराखंड में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई और घर ढह गए, जिसमें कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई।
इन पहाड़ी राज्यों में बारिश की वजह से त्रासदियां ऐसे समय में हुईं, जब दो दिन पहले ही 48 घंटों में 570 मिमी से ज्यादा बारिश हुई, जिससे वायनाड में तबाही मच गई, और कम से कम 195 लोगों की मौत हो गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि अनियमित बारिश, चरम मौसमी घटनाओं, बदलती जलवायु परिस्थितियों और नाजुक पहाड़ियों – उत्तर और दक्षिण दोनों में – के परिदृश्य को देखते हुए वर्षा सीमा के पिछले अनुभवों के आधार पर एक सटीक पूर्व चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) और उसके बाद व्यवस्थित निकासी प्रोटोकॉल आवश्यक है।
‘सेंटर फॉर डेवलपमेंट एंड डिजास्टर मैनेजमेंट सपोर्ट सर्विसेज’ के नीलमाधब प्रुस्ती ने ‘‘पीटीआई-भाषा’’ को बताया, ‘‘ईडब्ल्यूएस यह समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि कौन से क्षेत्र संवेदनशील हैं और कौन से समुदाय संवेदनशील हैं। ईडब्ल्यूएस क्षेत्रों और खतरे की संभावनाओं, खतरे की सीमा और समय का उपयोग करेगा ताकि यह निकासी सहित अन्य उपायों को स्थापित कर सके।’’
अभी तक, देश में भूस्खलन के पूर्वानुमान के लिए कोई विस्तृत अध्ययन या ईडब्ल्यूएस नहीं है। उदाहरण के लिए केरल में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने 29 जुलाई को दो दिनों के लिए पूर्वानुमान दिया था, लेकिन यह नहीं बताया कि क्या होने वाला है और 30 जुलाई की सुबह भूस्खलन हुआ।
केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (केएसडीएमए) को चार श्रेणियों में भूस्खलन के पूर्वानुमान मिलते हैं – बहुत अधिक संभावना, उच्च संभावना, मध्यम और कम संभावना। केएसडीएमए के प्रेस सचिव पी एम मनोज ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘ वायनाड जिले के लिए ‘प्रायोगिक वर्षा प्रेरित भूस्खलन पूर्वानुमान बुलेटिन’ ने केवल यह पूर्वानुमान लगाया कि भूस्खलन की घटनाओं की कम संभावना है। कुछ छोटे भूस्खलन हो सकते हैं।’
उन्होंने बताया, “केंद्रीय एजेंसी से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली थी कि व्यापक या मध्यम स्तर का भूस्खलन होगा।”
केरल ने 2020 में राज्य-विशिष्ट भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणालियों के लिए तीन पायलट परियोजनाओं को मंजूरी दी थी, लेकिन अभी तक कोई भी पूरी नहीं हुयी है।
जीएसआई की वेबसाइट के अनुसार, लगभग चार लाख वर्ग किमी (भारत के भूमि क्षेत्र का लगभग 12.6 प्रतिशत कवर करता है) में भूस्खलन की आशंका है। इसमें सभी हिमालयी राज्य, पूर्वोत्तर के उप-हिमालयी इलाके और पूर्वी और पश्चिमी घाट वाले राज्य शामिल हैं।
निकासी का भी सवाल है। उदाहरण के लिए, केएसडीएमए के पास स्थानीय रूप से प्रशिक्षित डीएम कर्मियों का एक विस्तृत नेटवर्क और प्रारंभिक चेतावनी संदेशों को प्रसारित करने के लिए पर्याप्त तंत्र हैं। लेकिन यह तस्वीर का केवल एक हिस्सा है।
मनोज ने बताया कि 29 जुलाई को केएसडीएमए ने पहाड़ी इलाकों के लोगों से राहत शिविरों में जाने को कहा, लेकिन लोग नहीं गए क्योंकि “उन्हें आपदा की तीव्रता इतनी अधिक होने की उम्मीद नहीं थी।
दिसंबर 2017 में, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने ‘कम लागत वाले भूस्खलन निगरानी समाधान’ के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की। लेकिन एक अधिकारी ने कहा कि यह केवल हिमालयी राज्यों तक ही सीमित था और उसके बाद कुछ खास नहीं किया गया है।
महाराष्ट्र में ईडब्ल्यूएस में एक समुदाय द्वारा संचालित प्रयास से बदलाव आने की उम्मीद है। यह एक ऐसी परियोजना है जो भूस्खलन की चेतावनी जारी करती है। अगस्त 2015 में पुणे स्थित गैर-लाभकारी सेंटर फॉर सिटिजन साइंस (सीसीएस) द्वारा शुरू किया गया यह संगठन सह्याद्री पर्वतमाला (जिसे महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट के रूप में जाना जाता है) में भूस्खलन के बारे में जागरूकता सुनिश्चित करता है और अलर्ट जारी करता है। समूह का काम पुणे जिले के मालिन गांव में हुए भूस्खलन के एक साल बाद शुरू हुआ जिसमें 151 लोग मारे गए थे।
एनडीएमए के विशेषज्ञ समूह के सदस्य संजय श्रीवास्तव ने बताया, ‘‘पूर्व चेतावनी प्रणाली के दो भाग हैं। पहला है सटीक अलर्ट जारी करना , जिसे हमारी वैज्ञानिक एजेंसियां काफी अच्छे तरीके से कर रही हैं और फिर उसे प्रभावी तरीके से संबंधित लोगों तक पहुंचाना।’’
भाषा नरेश
नरेश शोभना
शोभना