विदेशियों को महाकुम्भ की ओर खींच रही सनातन धर्म की आध्यात्मिकता |

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(अरुणव सिन्हा)


महाकुम्भ नगर (उप्र), 26 जनवरी (भाषा) स्वीडन से आए टॉमू स्वस्तिक द्वार के पास स्थित पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में संतों के बीच गंभीर चर्चा में मशगूल दिखे। उन्होंने स्वयं के और उनके जैसे कई अन्य विदेशियों के महाकुम्भ में पहुंचने की वजह को समझाया।

टॉमू ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ज्यादातर लोग हिंदू धर्म के मुख्य देवताओं – राम, कृष्ण और शिव या त्रिदेवों के बारे में जानते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर लोग हिंदू धर्म के गहरे अर्थ को समझते हैं। मेरा मानना है कि सनातन के आध्यात्मिक सार को समझने के लिए कुम्भ से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती।’’

स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम से लगभग 115 किलोमीटर दूर एस्किलस्टुना निवासी टॉमू ने रुद्राक्ष की दो मालाएं भी पहनी हुई थीं।

उन्होंने कहा, ‘‘कई विदेशी यहां आ रहे हैं क्योंकि वे हिंदू धर्म के गहरे अर्थ और दर्शन को समझना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, कई लोग ‘हरे राम, हरे कृष्ण’ का जाप करते हैं और ऐसा लगता है कि वे इस जाप में पूरी तरह खो गए हैं।’’

टॉमू ने कहा, ‘‘कई लोगों को यह भी महसूस होता है कि उन्हें और अधिक जानने की जरूरत है और यही कारण है कि महाकुम्भ में ऐसे विदेशी नागरिकों की संख्या बढ़ रही है। भारत विश्व स्तर पर उच्च आध्यात्मिकता वाले देश के रूप में जाना जाता है।’’

टॉमू की तरह अमेरिका के टेक्सास की राजधानी ऑस्टिन से लेस्ली और जॉन चैथम भी पहली बार महाकुम्भ में आए हैं। यह उनकी पहली भारत यात्रा है। उनके समूह में नौ लोग हैं, जिनमें ब्रिटेन और कनाडा के लोग भी शामिल हैं।

लेस्ली और जॉन ने कहा, ‘‘यह अद्भुत है।’’

जॉन का मानना है कि वैश्विक स्तर पर भारत की धारणा ‘‘बहुत अच्छी’’ है।

रियल एस्टेट क्षेत्र में काम करने वाले लेस्ली ने कहा, ‘‘मेरे पास भारत से कई ग्राहक हैं और उनके साथ काम करना एक संतोषजनक अनुभव है।’’

कुछ विदेशियों ने न केवल हिंदू धर्म अपनाया है, बल्कि हिंदू नाम भी अपनाया है और कुछ आध्यात्मिक परीक्षा से भी गुजरे और महामंडलेश्वर बन गए हैं।

टॉम, अमेरिकी सेना के एक पूर्व वरिष्ठ कमांडर के बेटे हैं। उन्होंने हिंदू धर्म अपनाने के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की एक अच्छी नौकरी छोड़ दी। उन्हें ‘अखाड़ा’ में एक नया नाम और पद मिला है।

पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के प्रमुख महंत रवींद्र पुरी ने कहा, ‘‘हमने टॉम को एक नया नाम दिया है – स्वामी व्यासानंद गिरि और एक पद भी दिया है। वह अब पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी में महामंडलेश्वर हैं।’’

पुरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर टॉम ने संन्यास ले लिया और हिंदू धर्म अपना लिया। उन्होंने योग और ध्यान किया और हिंदू धर्म तथा सनातनी संस्कृति पर गहन शोध किया। पिछले कुछ सालों से वह अक्सर ऋषिकेश आते रहे हैं और मुझसे मिलते भी रहे हैं।’’

इसी तरह माइकल अमेरिका के पूर्व सैनिक हैं। वह न्यू मेक्सिको से हैं। वह बाबा मोक्षपुरी के नाम से लोकप्रिय हैं और जूना अखाड़े का हिस्सा हैं।

माइकल ने बताया, ‘‘एक समय मैं भी अन्य लोगों की तरह ही था जो परिवार के साथ समय बिताना पसंद करता था और भ्रमण करना पसंद करता था। मगर जब मुझे सांसारिक गतिविधियों की नश्वरता का एहसास हुआ तो जीवन बदल गया और इससे मुझे मोक्ष की खोज शुरू करने की प्रेरणा मिली। इस तरह मैं यहां पहुंचा।’’

उन्होंने बताया कि कैसे उनके बेटे की मौत ने उन्हें आध्यात्मिकता का रुख करने के लिये प्रेरित किया। इसी के चलते वह साल 2000 में कुछ समय के लिए भारत आए और तब से वे देश में ही रह रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने ध्यान, योग और सनातन धर्म के सार की तलाश की। भारतीय संस्कृति और परंपराओं की समृद्धि ने मुझे गहराई से प्रभावित किया, जिससे मेरी आध्यात्मिक जागृति हुई, जिसे मैं अब एक दिव्य आह्वान के रूप में देखता हूं।’

माइकल ने कहा कि प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु नीम करोली बाबा के आश्रम की उनकी यात्रा एक अनोखा अनुभव था।

उन्होंने कहा, ‘‘नीम करोली बाबा के आश्रम की ऊर्जा परिवर्तनकारी थी। ऐसा लगा जैसे बाबा भगवान हनुमान की आत्मा को मूर्त रूप दे रहे हों, जिससे ध्यान और योग के प्रति मेरी भक्ति और प्रतिबद्धता और गहरी हो गई।’’

पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के प्रमुख महंत रवींद्र पुरी ने कहा, ‘‘विदेशियों के बारे में एक अच्छी बात यह है कि एक बार जब वे किसी चीज को स्वीकार कर लेते हैं, तो वे पूरी लगन और ईमानदारी के साथ ऐसा करते हैं और विचलित नहीं होते। वे हिंदू धर्म और सनातन के महान राजदूत हैं।’’

प्रयागराज में 13 जनवरी को शुरू हुए 45 दिवसीय महाकुम्भ मेले का समापन 26 फरवरी को होगा। अब तक करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम के पवित्र जल में डुबकी लगा चुके हैं।

भाषा अरुणव सलीम खारी

खारी



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