वकीलों को वरिष्ठ पदनाम देने की प्रक्रिया पर आत्मावलोकन करने की जरूरत: उच्चतम न्यायालय |

Ankit
4 Min Read


नयी दिल्ली, 20 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता नामित करने के मामले में ‘‘आत्मावलोकन’’ करने की आवश्यकता है और इस मुद्दे को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को भेज दिया, ताकि वह निर्णय ले सकें कि इस मामले की सुनवाई वृहद पीठ को करनी चाहिए या नहीं।


न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अपनी आपत्तियां जताते हुए कहा कि यह संदेहास्पद है कि किसी उम्मीदवार का कुछ मिनटों का साक्षात्कार लेकर वास्तव में उसके व्यक्तित्व या उपयुक्तता का परीक्षण किया जा सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘जिस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है, वह यह है कि क्या न्यायालय को पदनाम प्रदान करने के लिए आवेदन करने की अनुमति देनी चाहिए, हालांकि कानून में ऐसा प्रावधान नहीं है। यदि विधायिका का इरादा अधिवक्ताओं को पदनाम के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का था, तो धारा 16 की उपधारा (2) में इस न्यायालय या उच्च न्यायालयों को पदनाम प्रदान करने से पहले अधिवक्ताओं की सहमति लेने का प्रावधान नहीं होता।’’

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16, वकीलों को वरिष्ठ पद पर नियुक्त करने से संबंधित है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि कोई अधिवक्ता, बार में अपनी स्थिति, अपनी योग्यता या विशेष ज्ञान के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नियुक्त होने का हकदार है, तो सवाल यह उठता है कि ऐसे अधिवक्ता को साक्षात्कार के लिए बुलाकर क्या हम अधिवक्ता की गरिमा से समझौता नहीं कर रहे हैं? क्या हम पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया को चयन प्रक्रिया में नहीं बदल रहे हैं?’’

तीन पूर्व न्यायाधीशों — न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की एक पूर्ववर्ती पीठ ने 12 अक्टूबर 2017 को वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की याचिका पर अपना फैसला सुनाया था तथा वकीलों को वरिष्ठ पदनाम देने के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्थायी समिति गठित करने सहित कई दिशानिर्देश जारी किए थे।

हालांकि, बृहस्पतिवार को शीर्ष अदालत ने दोहराया कि उसका पूर्व के निर्णयों के प्रति कोई अनादर नहीं है, और वह केवल अपनी चिंताएं जता रही है ताकि प्रधान न्यायाधीश यह निर्णय ले सकें कि व्यक्त की गई शंकाओं पर एक उपयुक्त वृहद पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है या नहीं।

न्यायालय ने कहा कि मौजूदा प्रक्रिया के तहत, स्थायी समिति का यह कर्तव्य है कि वह अंक-आधारित फॉर्मूले के आधार पर उम्मीदवार का समग्र मूल्यांकन करे।

पीठ ने कहा, ‘‘समग्र मूल्यांकन करने का कोई अन्य तरीका प्रदान नहीं किया गया है। कोई भी इस बात पर विवाद नहीं कर सकता है कि जिस वकील में ईमानदारी की कमी है या जिसमें निष्पक्षता का गुण नहीं है, वह इस पदनाम को पाने के लिए अयोग्य है।’’

न्यायालय ने कहा कि नामित वरिष्ठ अधिवक्ता की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि नामित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की कानूनी प्रणाली में एक अलग स्थिति और ‘‘काफी प्रतिष्ठा’’ होती है।

भाषा सुभाष देवेंद्र

देवेंद्र



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *