नागपुर, 11 अप्रैल (भाषा) यवतमाल में एक सार्वजनिक परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि के एक खंड पर एक सौ साल पुराने लाल चंदन के पेड़ के मूल्यांकन के सिलसिले में रेलवे को एक करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।
बंबई उच्च न्यायालय ने रेलवे को इस संबंध में एक करोड़ रुपये जमा करने को कहा है और आदेश दिया है कि मूल्यांकन प्रक्रिया में देरी को देखते हुए इसमें से 50 लाख रुपये उस किसान को दिए जाएं, जिसकी भूमि अधिग्रहित की गई थी।
वर्ष 2018 में पुसाद के खरशी गांव में याचिकाकर्ता केशव शिंदे की जमीन ‘‘यवतमाल-पुसाद-नांदेड़ रेलवे लाइन’’ परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी, लेकिन मुआवजे की राशि का भुगतान नहीं किया गया, क्योंकि रेलवे पेड़ का मूल्यांकन प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सका। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया।
अदालत ने फरवरी में अधिकारियों को पेड़ का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया और रेलवे को ‘कोर्ट रजिस्ट्री’ में एक करोड़ रुपये जमा करने को कहा।
नौ अप्रैल को जब मामला सुनवाई के लिए आया तो न्यायमूर्ति अविनाश घरोटे और न्यायमूर्ति अभय मंत्री की पीठ ने पाया कि मूल्यांकन प्रक्रिया अब भी पूरी नहीं हुई है।
अदालत ने कहा, ‘‘चूंकि भूमि और पेड़ का कब्जा प्रतिवादी अधिकारियों ने बहुत पहले ही ले लिया है, इसलिए याचिकाकर्ता मुआवजे का हकदार है। किसी भी तरह की देरी से सिर्फ लागत बढ़ेगी और कुछ नहीं।’’
लाल चंदन के पेड़ का मूल्य निर्धारित करने के लिए जरूरी समय का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को अभी 50 लाख रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए।
पीठ ने अधिकारियों को जून तक लाल चंदन के पेड़ का मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया पूरी करने और सात जुलाई को रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो वह याचिकाकर्ताओं को शेष 50 लाख रुपये जारी करने के लिए बाध्य होगी।
भाषा सुरेश खारी
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