(फाइल फोटो के साथ)
पटना, 14 अप्रैल (भाषा) पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने सोमवार को घोषणा की कि उनकी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा नहीं है, क्योंकि राजग ने उनके भतीजे चिराग पासवान का साथ देने का फैसला किया है।
पारस ने अपने दिवंगत भाई रामविलास पासवान द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) से बगावत करते हुए 2021 में रालोजपा की स्थापना की थी। उन्होंने बीआर आंबेडकर की जयंती के अवसर पर पटना में रालोजपा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी पार्टी के राजग से अलग होने की घोषणा की।
इस मौके पर पारस ने रामविलास पासवान को “दूसरा आंबेडकर” बताते हुए उन्हें भारत रत्न से अलंकृत करने की मांग भी की।
पारस ने कहा, “मैं 2014 से राजग के साथ रहा हूं। लेकिन, आज मैं घोषणा करता हूं कि अब से मेरी पार्टी का राजग के साथ कोई संबंध नहीं होगा।”
पारस ने पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले केंद्रीय मंत्री के पद से उस समय इस्तीफा दे दिया था, जब उनके भतीजे चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी-रामविलास (लोजपा-आरवी) को राजग की घटक के रूप में चुनाव लड़ने के लिए पांच सीटें आवंटित की गई थीं और इन सभी सीटों पर पार्टी उम्मीदवार विजयी रहे थे।
लोजपा (आरवी) को जो सीटें मिली थीं, उनमें रामविलास पासवान का गढ़ कहलाने वाली हाजीपुर सीट भी शामिल थी, जिससे पारस 2019 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे। वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व चिराग कर रहे हैं, जो केंद्रीय मंत्री भी हैं।
राजग में नजरअंदाज किए जाने के बावजूद पारस ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर गठबंधन में मजबूत स्थिति बनाए रखने की कोशिश की।
हालांकि, पिछले साल राज्य की पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के दौरान राजग ने एक सीट पर रालोजपा के दावे को दरकिनार कर दिया। यही नहीं, रालोजपा का संभावित उम्मीदवार भाजपा में शामिल हो गया, जिसने उनके बेटे को टिकट दे दिया।
इसके अलावा, राज्य सरकार ने पारस से वह बंगला खाली कराकर चिराग को आवंटित कर दिया, जिससे वह (पारस) अपनी पार्टी का संचालन कर रहे थे।
पारस ने 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ अपने भतीजे के विद्रोह को अस्वीकार करते हुए उनसे नाता तोड़ लिया था।
रालोजपा के कार्यक्रम में पारस ने नीतीश पर “दलित विरोधी” होने का आरोप लगाया और दावा किया कि “38 में से 22 जिलों का दौरा करने के बाद” उन्हें एहसास हो गया है कि “बिहार एक नयी सरकार चाहता है।”
पारस ने आरोप लगाया, “नीतीश कुमार के 20 साल के शासन में राज्य में शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है, कोई नया उद्योग स्थापित नहीं हुआ है और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण सभी कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावित हो रहा है।”
हाल-फिलहाल में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद से कई बार मुलाकात कर चुके पारस ने हालांकि अपने पत्ते नहीं खोले। उन्होंने कहा, “मैं बाकी 16 जिलों का दौरा भी जल्द पूरा करना चाहता हूं और राज्य के सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत करना चाहता हूं।”
घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री और बिहार के एक अन्य प्रमुख दलित नेता जीतन राम मांझी ने कहा कि “रालोजपा के अलग होने से राजग पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।”
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष मांझी ने कहा, “उन्होंने (पारस ने) भले ही आज औपचारिक घोषणा की हो, लेकिन लालू प्रसाद के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ने के बाद से ही यह बात साफ हो गई थी।”
भाषा पारुल अविनाश
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