‘राज्यपाल के भेजे विधेयक पर राष्ट्रपति की मंजूरी में देरी पर राज्य शीर्ष अदालत का रुख कर सकते हैं’

Ankit
5 Min Read


नयी दिल्ली, 12 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगर राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक को राष्ट्रपति मंजूरी नहीं देते हैं तो राज्य सरकारें सीधे शीर्ष अदालत का रुख सकती हैं। तमिलनाडु द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाने वाली याचिका पर महत्वपूर्ण फैसले में शीर्ष अदालत ने यह कहा है।


न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने आठ अप्रैल को द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) नीत तमिलनाडु सरकार को बड़ी राहत दी और 10 राज्य विधेयकों को मंजूरी दे दी, जिन्हें राज्यपाल आर एन रवि ने राष्ट्रपति के विचार के लिए रोक रखा था। पीठ ने राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के संबंध में समयसीमा भी निर्धारित की।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने पीठ के लिए 415 पृष्ठों का निर्णय लिखते हुए संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा तथा अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा शक्ति के प्रयोग की न्यायिक समीक्षा पर विचार किया तथा निष्कर्ष प्रस्तुत किए।

अनुच्छेद 200 राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक पारित करने से संबंधित स्थितियों और राज्यपाल के पास अनुमति देने, अनुमति न देने या विधेयक को पुनर्विचार के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने को लेकर उपलब्ध विकल्पों से संबंधित है। अनुच्छेद 201 राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए रोके गए विधेयकों से संबंधित है।

न्यायालय ने विभिन्न स्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य कानून के संबंध में राज्यपालों और राष्ट्रपति की कार्रवाई कुछ परिस्थितियों में न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।

फैसले में कहा गया, ‘‘जहां राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए सुरक्षित रखते हैं और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकार के लिए इस न्यायालय के समक्ष अनुरोध करने का अधिकार खुला होगा।’’

न्यायालय ने जोर दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल और अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति को दी गई संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग मनमाने ढंग से या जवाबदेही के बिना नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा, ‘‘जहां राज्यपाल अपने विवेकानुसार किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ रखते हैं… वहां राज्य सरकार को उपयुक्त उच्च न्यायालय या इस न्यायालय के समक्ष अनुरोध करने की स्वतंत्रता होगी।’’

इसके बाद पीठ ने वे आधार बताए जिनके आधार पर राज्य सरकार उच्च न्यायालय जा सकती है। फैसले में कहा गया है कि राज्यपाल को इस संबंध में स्पष्ट संदर्भ देना होगा।

फैसले में कहा गया, ‘‘राज्य सरकार इस आधार पर इसे चुनौती दे सकती है कि राज्यपाल ने पूर्वोक्त चर्चा के अनुसार आवश्यक कारण प्रस्तुत करने में विफलता दिखाई है या बताए गए कारण पूरी तरह अप्रासंगिक, दुर्भावनापूर्ण, मनमाने, अनावश्यक या बाहरी विचारों से प्रेरित हैं। चूंकि यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका निर्णय संवैधानिक न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, इसलिए यह पूरी तरह न्यायोचित होगा।’’

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि ‘‘राज्यपाल के व्यक्तिगत असंतोष, राजनीतिक लाभ या किसी अन्य असंगत या अप्रासंगिक विचार’’ जैसे आधारों पर विधेयक को रोके रखना संविधान द्वारा पूरी तरह से अनुचित है और केवल इसी आधार पर इसे तत्काल रद्द किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि यदि राज्यपाल किसी राज्य विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ इस आधार पर सुरक्षित रख लेते हैं कि विधेयक स्पष्ट रूप से असंवैधानिक प्रतीत होता है, तो उस पर मंजूरी न देना पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक प्रश्न होगा और इसलिए यह राजनीतिक संकीर्णता के सिद्धांत द्वारा लगाए गए किसी भी अवरोध के बिना न्यायोचित होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में, राष्ट्रपति के लिए यह विवेकपूर्ण होगा कि वे अनुच्छेद 143 के तहत संदर्भ के माध्यम से इस न्यायालय की राय प्राप्त करें और उसके अनुसार कार्य करें ताकि पक्षपात, मनमानी या दुर्भावना की किसी भी आशंका को दूर किया जा सके।’’

भाषा आशीष अविनाश

अविनाश



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *