यूएपीए के तहत अभियोजन मंजूरी देने की समयसीमा का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए : न्यायालय |

Ankit
3 Min Read


नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत अभियोजन मंजूरी की सिफारिश और स्वीकृति के लिए निर्धारित समयसीमा का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी समयसीमाओं के बिना सत्ता ‘बेलगाम’ हो जाएगी, जो ‘एक लोकतांत्रिक समाज के खिलाफ’ है।


गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के नियम 3 और 4 सात दिन की समयसीमा प्रदान करते हैं, जिसके भीतर संबंधित प्राधिकारी को जांच अधिकारी द्वारा एकत्रित सामग्री के आधार पर अपनी सिफारिश करनी होती है और सरकार को अभियोजन की मंजूरी देने के लिए अतिरिक्त सात दिन की अवधि प्रदान की जाती है। शीर्ष अदालत ने प्राधिकारी की रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में समयसीमा का पालन ‘निस्संदेह महत्वपूर्ण’ है।

न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने फैसला सुनाया कि यूएपीए के तहत अभियोजन मंजूरी की वैधता को सुनवाई अदालत के समक्ष जल्द से जल्द चुनौती दी जानी चाहिए।

पीठ ने कहा, “कुछ समयसीमा होनी चाहिए, जिसके भीतर सरकार के प्रशासनिक अधिकारी अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकें। ऐसी समयसीमा के बिना सत्ता बेलगाम हो जाएगी, जिसके बारे में बताने की जरूरत नहीं है कि यह एक लोकतांत्रिक समाज के खिलाफ है। समयसीमा ऐसे मामलों में संतुलन बनाए रखने वाले आवश्यक पहलु के रूप में काम करती है और यह निश्चित रूप से, निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण है।”

उसने कहा कि विधायी मंशा स्पष्ट है और वैधानिक शक्तियों के आधार पर बनाए गए नियम जनादेश और समयसीमा दोनों निर्धारित करते हैं।

शीर्ष अदालत ने फुलेश्वर गोपे की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। गोपे पर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआई) का सदस्य होने का आरोप है, जो झारखंड में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से अलग हुआ एक समूह है।

गोपे ने यूएपीए के तहत अभियोजन और उसके बाद की कार्यवाही को स्वीकृति दिए जाने के खिलाफ उसकी याचिका को खारिज करने के झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

भाषा पारुल माधव

माधव



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *