यात्रियों की मौत खुद की लापरवाही से हुई तो सीआरएस जांच की जरूरत नहीं : विशेषज्ञ |

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(जीवन प्रकाश शर्मा)


नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) जलगांव ट्रेन हादसे में रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस) की ओर से स्वतंत्र जांच की संभावना नहीं है, क्योंकि यात्रियों ने अपनी सुरक्षा को नजरअंदाज किया। रेलवे सूत्रों ने यह जानकारी दी।

बुधवार को उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव जिले में आग लगने की अफवाह के बाद ट्रेन से उतरे 12 यात्रियों की बगल की पटरी पर आ रही ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई।

रेलवे बोर्ड ने बृहस्पतिवार को इस घटना की जांच के लिए अपने पांच वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम नियुक्त की, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सीआरएस द्वारा जांच किए जाने की संभावना नहीं है।

सीआरएस नागरिक उड्डयन मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक स्वतंत्र निकाय है और इसे रेल यात्रा एवं ट्रेन संचालन की सुरक्षा के मामलों में निरीक्षण, जांच तथा सलाह देने के लिए विभिन्न अधिनियमों और नियमों द्वारा अधिकार प्राप्त है।

रेलवे के एक सूत्र ने कहा, ‘‘नियमानुसार, रेल प्रशासन ने सेंट्रल सर्किल के सीआरएस मनोज अरोड़ा को दुर्घटना के बारे में सूचित कर दिया है और अब यह उन पर निर्भर है कि वह जांच करेंगे या नहीं।’’

कई प्रयासों के बावजूद इस मामले पर टिप्पणी के लिए अरोड़ा से संपर्क नहीं हो पाया।

इस बीच, सुरक्षा विशेषज्ञों के एक वर्ग ने रेलवे (दुर्घटनाओं की जांच के नोटिस) नियम, 1998 का ​​हवाला देते हुए कहा कि किसी भी रेल यात्री की मृत्यु या चोट को ‘गंभीर रेल दुर्घटना’ माना जाता है और इसके लिए सीआरएस जांच अनिवार्य है।

हालांकि, उन्होंने कहा कि यदि मृत्यु या चोट यात्री की अपनी लापरवाही के कारण हुई है, तो इसे ऐसा नहीं माना जा सकता है और जांच शुरू करना या न करना सीआरएस का विवेकाधिकार है।

जलगांव ट्रेन त्रासदी के बारे में सामने आए विवरण से पता चला कि आग की अफवाह के कारण ट्रेन से उतरे पुष्पक एक्सप्रेस के यात्रियों के पास सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए पर्याप्त समय था क्योंकि कर्नाटक एक्सप्रेस 20 मिनट बाद पहुंची थी।

नयी दिल्ली में अधिकारियों ने बताया कि बुधवार को शाम पौने पांच बजे माहेजी और परधाडे स्टेशन के बीच आपातकालीन चेन खींचने के कारण रुकी ट्रेन से उतरे लोग आसन्न खतरे के बावजूद बगल की पटरी पर ही रुके रहे। उन्होंने कहा कि करीब 5.05 बजे कर्नाटक एक्सप्रेस वहां से गुजरी जिसकी चपेट में 12 यात्री आ गए। उन्होंने उन खबरों को खारिज किया कि पुष्पक एक्सप्रेस के कुछ यात्री जल्दबाजी में ट्रेन से कूद गए।

इस संबंध में एक सेवानिवृत्त सीआरएस ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘‘1998 के नियमों में यह परिभाषित किया गया है कि गंभीर रेल दुर्घटना क्या होती है और इसके अनुसार एक भी यात्री की मृत्यु या चोट को गंभीर रेल दुर्घटना माना जा सकता है। इतना ही नहीं, सीआरएस जांच के लिए रेलवे की संपत्ति को 2 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान भी गंभीर रेल दुर्घटना माना जा सकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यदि यात्रियों की मौत उनकी अपनी लापरवाही के कारण हुई है, तो ऐसी स्थिति में जांच करने या न करने का निर्णय लेने की जिम्मेदारी सीआरएस पर छोड़ दी गई है।’’

रेलवे के एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि ट्रेन की छत या पायदान पर यात्रा करने वाले यात्री, पटरी पर खड़े होने वाले व्यक्ति ट्रेन की चपेट में आने वाले किसी बाहरी व्यक्ति (यात्री नहीं) की मौत गंभीर रेलवे दुर्घटना की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में संबंधित स्टेशन मास्टर का यह कर्तव्य है कि वह दुर्घटना का पूरा ब्योरा सीआरएस को बताए, जिसमें मृत्यु और घायलों के बारे में भी जानकारी हो। जांच शुरू करना या न करना सीआरएस पर छोड़ दिया जाता है।’’

‘ऑल इंडिया रेलवेमेन्स फेडरेशन’ के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने सुरक्षा विशेषज्ञों का समर्थन करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि जलगांव रेल हादसे के यात्री अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाह थे।

मिश्रा ने कहा, ‘‘मैंने व्यक्तिगत रूप से मामले पर गौर किया है और भुसावल मंडल के रेलवे अधिकारियों और कर्मचारियों से सभी विवरण एकत्र किए हैं, जहां यह घटना हुई। ये मौतें परिवारों के लिए बहुत दुखद हैं, लेकिन यह यात्रियों की ओर से अत्यधिक लापरवाही थी, जो पटरी पर खड़े थे और तेज गति से आ रही ट्रेन के प्रति बेखबर थे।’’

भाषा आशीष नेत्रपाल

नेत्रपाल



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