भारत लंबे समय तक इजराइल-फलस्तीन संतुलन नीति जारी नहीं रख सकता: पूर्व राजनयिक सरना |

Ankit
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जयपुर, 31 जनवरी (भाषा) पूर्व राजनयिक नवतेज सरना ने शुक्रवार को कहा कि भारत ने लंबे समय से इजराइल और फलस्तीन के साथ संतुलन बनाए रखा है, लेकिन संदेह जताया कि क्या वह सात अक्टूबर 2023 को हुए हमास के हमले के बाद भी ऐसा करना जारी रख सकता है।


जयपुर साहित्य महोत्सव (जेएलएफ)में सरना ने कहा कि भारत और इजराइल के बीच बढ़ते संपर्क, विशेष रूप से 2023 में आतंकवादी हमले के बाद से, ने भारत की स्थिति को परिभाषित किया है क्योंकि इसने ‘ग्लोबल साउथ’ द्वारा इजराइल के खिलाफ लाये गए ‘‘कुछ प्रस्तावों से दूरी बना ली।’’

पूर्व राजनयिक ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में इजराइल के बारे में भारत की स्थिति काफी अलग और विभिन्न चरणों में विकसित हुई है।

उन्होंने कहा कि भारत कभी भी फलस्तीन के विभाजन या धर्म के आधार पर राष्ट्र के रूप में उसे मान्यता देने के पक्ष में नहीं रहा है।

सरना ने कहा, ‘‘वर्तमान में, भारत का इजराइल के साथ रणनीतिक और कूटनीतिक दोनों ही दृष्टि से बहुत मजबूत संबंध है। और भारत ने सहायता और संयुक्त राष्ट्र में बयानों के संदर्भ में फलस्तीनी मुद्दे के लिए अपने समर्थन के साथ संतुलन बनाने में काफी सावधानी बरती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हाल के वर्षों में, भारत और इजराइल के बीच सरकारों के स्तर पर बहुत करीबी संबंध रहे हैं। इजराइल आज यकीनन रक्षा उपकरणों का आपका दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।’’

उपन्यासकार पंकज मिश्रा और ब्रिटिश फलस्तीनी लेखिका सलमा डब्बाग ने भी सत्र को संबोधित किया।

मिश्रा ने ‘‘द वर्ल्ड आफ्टर गाजा’’ लिखा है। उन्होंने तर्क दिया कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ‘‘नैतिक शक्ति’’ के रूप में खुद को पुनः स्थापित करने का अवसर ‘‘गंवा दिया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कई मायनों में, फलस्तीन के साथ नैतिक एकजुटता की स्थिति ने भारत को व्यापक विश्व में एक प्रकार का नैतिक नेतृत्व भी प्रदान किया, जिसे (जवाहरलाल) नेहरू और अन्य नेताओं ने बहुत सफलतापूर्वक बनाए रखा था।’’

भाषा सुभाष संतोष

संतोष



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