भारत ने नयी सुरक्षा परिषद में धर्म, आस्था जैसे नए मानदंडों को आधार बनाने के प्रयासों की निंदा की

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(योषिता सिंह)


संयुक्त राष्ट्र, 16 अप्रैल (भाषा) भारत ने नयी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में धर्म और आस्था जैसे नए मानदंडों को प्रतिनिधित्व के आधार के रूप में शामिल करने के प्रयासों की आलोचना की और कहा है कि यह क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के स्वीकृत आधार के पूरी तरह विपरीत है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी. ​​हरीश ने ‘भविष्य की परिषद का आकार और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व पर क्लस्टर चर्चा’ पर अंतर-सरकारी वार्ता (आईजीएन) बैठक में कहा कि जो लोग नियम आधारित वार्ता का विरोध करते हैं वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधारों पर प्रगति नहीं चाहते हैं।

हरीश ने कहा, ‘‘ नयी परिषद में प्रतिनिधित्व के लिए धर्म और आस्था जैसे नए मानदंडों को आधार बनाने का प्रयास क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के पूरी तरह विपरीत है, जो संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व के लिए स्वीकृत आधार रहा है।’’

उन्होंने कहा कि ऐसे तर्क कि विस्तारित एवं नयी सुरक्षा परिषद प्रभावी नहीं होगी, वास्तविक सुधारों को रोकने का प्रयास है।

उन्होंने कहा, ‘‘ उचित कार्य पद्धतियों और जवाबदेही तंत्र युक्त नयी परिषद अहम वैश्विक मुद्दों पर सार्थक ढंग से काम करने में सक्षम होगी।’’

भारत ने जोर देकर कहा कि एक ऐसा मॉडल जिसमें स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में विस्तार नहीं हो वह सुधार के उद्देश्य को हासिल नहीं कर सकेगा और इससे स्थिति यथावत रहेगी।

इन टिप्पणियों से पहले हरीश ने जी-4 देशों ब्राजील, जर्मनी, जापान और भारत की ओर से एक वक्तव्य दिया, जिसमें समूह ने इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व एक स्वीकृत चलन है, जो संयुक्त राष्ट्र में समय की कसौटी पर खरा उतरा है।

जी4 ने कहा, ‘‘वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र का जो स्वरूप है वह एक अन्य युग का है, वह अब मौजूद नहीं है और वर्तमान की भू-राजनीतिक परिस्थितियां इस स्वरूप की समीक्षा की मांग करती हैं।

वर्तमान में सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं – चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका। शेष 10 सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिए गैर-स्थायी सदस्यों के रूप में चुना जाता है। भारत पिछली बार 2021-22 में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में परिषद में शामिल हुआ था।

भाषा शोभना नरेश

नरेश



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