भारत के साथ व्यापार युद्ध अमेरिका के हित में नहीं, कार्यबल बनाने की जरूरत: शोध संस्थान आरआईएस |

Ankit
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नयी दिल्ली, एक जनवरी (भाषा) भारत के साथ व्यापार युद्ध अमेरिका के हित में नहीं है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल में भी एकाध साल को छोड़कर भारत की अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष की स्थिति रही थी। प्रतिष्ठित आर्थिक शोध संस्थान ‘विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस)’ एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।

आरआईएस ने ‘ट्रेड, टैरिफ और ट्रंप’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि भारत को घरेलू नीतियां मौजूदा स्थिति के अनुरूप लाने के लिए तत्काल एक कार्यबल नियुक्त करने या अन्य संस्थागत व्यवस्था बनाने पर विचार करना चाहिए।

इस विषय पर मंगलवार को आयोजित एक सत्र में प्रतिभागियों ने कहा, ‘‘अमेरिकी अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन मजबूत है। उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 2024 में 2.7 से 2.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो 2022 में 1.9 प्रतिशत थी। लेकिन आगामी ट्रंप सरकार के लिए व्यापार घाटा महत्वपूर्ण मुद्दा रहेगा।’’

आरआईएस ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में आशंका है कि ट्रंप सरकार अपने नए कार्यकाल में भारत के साथ उच्च व्यापार अधिशेष के कारण कुछ सुधारात्मक कदम उठाते हुए शुल्क लगा सकती है। हालांकि संरचनात्मक बदलाव होने में समय लगता है।’’

अमेरिका के साथ भारत लगातार व्यापार अधिशेष की स्थिति में है। पिछले दो दशकों में 2008 के एकमात्र अपवाद को छोड़कर भारत ने अमेरिका के साथ लगातार व्यापार अधिशेष बनाए रखा है।

अमेरिका के 2023 में कुल 1,050 अरब डॉलर के व्यापार घाटे में चीन, मेक्सिको और कनाडा की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है। भारत इस मामले में शीर्ष 10 देशों में 3.2 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ नौवें स्थान पर है।

आरआईएस ने कहा, ‘‘भारत के साथ व्यापार युद्ध अमेरिका के हित में नहीं है। हालांकि नई नीतियों के अपनाने से अस्थायी अल्पकालिक प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन ऐसा देखा गया है कि ये चीजें आगे जाकर संतुलित हो जाती हैं।’’

शोध संस्थान के मुताबिक, प्रभावित देशों के सक्रियता से कदम उठाने पर चीजें संतुलित होती हैं। इन उपायों में एकतरफा शुल्क में वृद्धि, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में विवाद निपटान निकाय में आवेदन शामिल हैं। ये प्रयास अमेरिका के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण साबित हुए हैं और अंतत: अमेरिका सरकार की तरफ से डाले गये दबाव को कम करते हैं।

रिपोर्ट कहती है, ‘‘ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल में विशेष रूप से 2018 में भारत के व्यापार अधिशेष के स्तर में भारी गिरावट आई थी। लेकिन यह गिरावट अल्पकालिक थी और अमेरिका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष लगातार जारी रहा और यह स्थिति ट्रंप के 2021 में कार्यकाल समाप्त होने तक जारी रही।’’

शुल्क दर के संदर्भ आरआईएस ने कहा कि क्षेत्र और उत्पादों के संदर्भ में इस बात की काफी संभावना है कि अमेरिका की नई सरकार विशेष रूप से अंतिम खपत की वस्तुएं यानी उपभोक्ता सामान पर ऊंचा शुल्क लगा सकती है। भारत का औषधि, रत्न और आभूषण, मत्स्य पालन, विशेष रूप से झींगा शुल्क के संदर्भ में यह आसान लक्ष्य हो सकता है।’’

आरआईएस ने कहा, ‘‘ऐसे में भारत को अमेरिकी नियामक यूएसएफडीए के मानकों को पूरा करने के साथ गुणवत्ता सुनिश्चित करने को लेकर औषधि क्षेत्र के लिए मुख्य रसायन (एपीआई) जैसे उत्पादों के लिए आपूर्ति व्यवस्था की जरूरत होगी। साथ ही प्रभाव कम करने के लिए अन्य बाजारों पर भी ध्यान देना होगा।’’

रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका को आभूषणों के निर्यात के लिहाज से मूल्यवर्धन महत्वपूर्ण हो सकता है। वहीं झींगा के मामले में स्वच्छता एवं साफ-सफाई उपायों को और मजबूत करने की जरूरत हो सकती है।

आरआईएस के महानिदेशक प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘भारत को घरेलू नीतियों को मौजूदा स्थिति के अनुरूप लाने के लिए तत्काल एक कार्यबल या अन्य संस्थागत व्यवस्था बनाने पर विचार करना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘साथ ही भारत को अमेरिका के साथ व्यापक जुड़ाव रखना चाहिए। इसके अलावा व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी आदि से जुड़े मुद्दों के समाधान को लेकर नयी संस्थागत रूपरेखा तलाशनी चाहिए।’’

भाषा

रमण अजय प्रेम

प्रेम



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