बीते सप्ताह मंडियों में कम आवक से तेल-तिलहन कीमतों में सुधार

Ankit
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नयी दिल्ली, एक सितंबर (भाषा) सरकार के खाद्यतेलों के आयात शुल्क में वृद्धि की संभावना के कारण किसानों के मंडियों में आवक घटाने के बीच बीते सप्ताह सभी तेल-तिलहनों के दाम में सुधार देखने को मिला तथा सरसों, मूंगफली एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के भाव मजबूत बंद हुए।

बाजार सूत्रों ने कहा कि सस्ते खाद्यतेलों की भरमार से बाजार में खाद्यतेलों के थोक दाम टूटे हुए हैं और खरीफ तिलहन फसलें मंडियों में आने की तैयारी में हैं। मौजूदा हालत बनी रही तो किसानों के देशी तिलहन फसल पहले के सालों की तरह बाजार में खपने के बजाय गोदामों में रखे जायेंगे।

कुछेक राज्यों के चुनावों के मद्देनजर किसानों को उम्मीद है कि सरकार देशी तिलहन किसानों की अपेक्षाओं को पूरा करने और आयातित सस्ते खाद्यतेलों पर लगाम लगाने के लिए उनके हित में आयातित खाद्यतेलों पर आयात शुल्क बढ़ायेगी। इस उम्मीद में वह अपनी फसल यथासंभव रोक रखे हैं जिससे मंडियों में आवक कम है। यह सभी खाद्यतेल तिलहनों में सुधार का मूल कारण है।

सूत्रों ने कहा कि देश के प्रमुख तेल संगठन ‘सोपा’ ने कृषि मंत्री से मिलकर देश के तेल-तिलहन उद्योग और किसानों की परेशानियों से अवगत कराया। सोपा ने बताया कि प्रति व्यक्ति खाद्यतेल की खपत इतनी नहीं है कि इससे मंहगाई बेतहाशा बढे। इसके बाद किसानों को यह उम्मीद बन रही है कि आगामी खरीफ तिलहन फसलों के सही दाम (बढ़ा हुआ न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी) उन्हें दिलाने का सरकार की ओर से प्रयास किया जायेगा और इस क्रम में आयातित खाद्यतेलों पर आयात शुल्क में यथोचित वृद्धि की जायेगी।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 में जब सूरजमुखी तेल का दाम 1,150-1,200 डॉलर प्रति टन था तब उस तेल पर आयात शुल्क 38.5 प्रतिशत लगाया जाता था लेकिन मौजूदा समय में जब इस तेल का दाम 1,050-1,060 डॉलर प्रति टन है तो उसपर आयात शुल्क केवल 5.5 प्रतिशत ही लागू है। इस वजह से इन तेलों का बेतहाश आयात भी हो रहा है। विदेशों में इन तेलों का उत्पादन भी प्रचुर मात्रा में हो रहा है।

कृषि मंत्री से सोपा की बैठक के बाद आयातित तेलों के आयात शुल्क में वृद्धि की संभावनाओं के बारे में चर्चा बढ़ी है और कुछ तेल-तिलहन मामले के प्रवक्ताओं को फिर से मंहगाई बढ़ने की चिंता होने लगी है।

सूत्रों ने कहा कि तेल-तिलहन से कहीं ज्यादा मंहगाई पर असर दूध का हो सकता है जिसकी प्रति व्यक्ति खपत भी अधिक है। पर प्रवक्ताओं को मंहगाई की जड़े दूध की जगह खाद्यतेल में दिखाई देती हैं और वे दूध के बारे में शायद ही कभी चिंता जताते नजर आते हैं। दूध का उत्पादन बढ़ाने में तेल-खली का महत्वपूर्ण योगदान होता है जिसकी प्राप्ति देशी तिलहनों से ही होती है।

उन्होंने कहा कि बीते कुछ साल में मंहगाई बढ़ने की आड़ में सस्ते खाद्यतेलों का आयात बेतहाशा बढ़ा और आयात शुल्क कम किये गये। सरसों तेल छोड़कर बाकी खाद्यतेलों में मिश्रण की छूट होने का फायदा उठाकर इस सस्ते आयातित तेलों का देशी तेलों में मिश्रण कर देशी तेल के मंहगे दाम पर बेचने से जिन लोगों को फायदा पहुंच रहा है, संभवत: आयात शुल्क बढ़ने से उन्हें दिक्कत पेश आ सकती है।

सूत्रों ने कहा कि मौजूदा समय में देश में सूरजमुखी तेल (सॉफ्ट आयल) का भाव 1,045 डॉलर प्रति टन है। इसी प्रकार सोयाबीन तेल (सॉफ्ट आयल) का दाम 1,045-50 डॉलर प्रति टन है। इसके अलावा ‘हार्ड आयल’ कहलाने सीपीओ का दाम सॉफ्ट आयल-सूरजमुखी, सोयाबीन से कहीं अधिक यानी 1,060-65 डॉलर प्रति टन है। पर खाद्यतेलों की मंहगाई की चिंता करने वाले बता सकते हैं कि उपभोक्ताओं को सूरजमुखी और सोयाबीन तेल, सीपीओ से कम दाम पर मिल रहा है? अगर नहीं तो क्यों? थोक दाम सस्ते हुए तो फिर खुदरा दाम सस्ते क्यों नहीं हो रहे?

उन्होंने कहा कि सुधार के बावजूद सोयाबीन और सूरजमुखी एमएसपी से नीचे दाम पर बिक रहा है। पिछले दो तीन वर्षो में सभी खाद्यतेलों के एमएसपी में लगभग 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और सोयाबीन और सोयाबीन के मौजूदा हाजिर दाम एमएसपी से काफी कम हैं। इस ओर ध्यान देने की जरुरत है।

सूत्रों ने कहा कि बाहर की खाद्यतेल कंपनियों द्वारा पिछले 15-20 वर्षो से खाद्यतेलों से मंहगाई बढ़ने का हौव्वा पैदा करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है। इन प्रयासों का परिणाम है कि देश तेल-तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता की ओर कदम नहीं बढ़ा पाया और आयात पर निर्भर होता चला गया। देश का सूरजमुखी उत्पादन घटता चला गया। बाकी तेल तिलहन भी मौजूदा समय में ऐसी ही हालात का सामना कर रहे हैं।

किसानों को तिलहन खेती की ओर प्रेरित करने में भारी दिक्कत आ सकती है। किसान उत्पादन बढ़ायें और सस्ते खाद्यतेलों की भरपूर आयात की वजह से उनके माल बाजार में ना खपें तो वे तिलहन खेती से बचने का प्रयास कर सकते हैं। इन सब परिस्थितियों पर करीब से ध्यान देकर देश को अपनी एक सुस्पष्ट तेल-तिलहन नीति बनानी होगी जो सब के हित में होगा।

बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 150 रुपये बढ़कर 6,275-6,315 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 400 रुपये बढ़कर 12,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 55-55 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 1,985-2,085 रुपये और 1,985-2,100 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 170-170 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 4,670-4,700 रुपये प्रति क्विंटल और 4,480-4,605 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

इसी प्रकार सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के दाम क्रमश: 125 रुपये, 125 रुपये और 50 रुपये के सुधार के साथ क्रमश: 10,575 रुपये, 10,175 रुपये तथा 8,750 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।

मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार रहा। मूंगफली तिलहन 75 रुपये की मजबूती के साथ 6,550-6,825 रुपये क्विंटल, मूंगफली तेल गुजरात 100 रुपये के सुधार के साथ 15,525 रुपये क्विंटल और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल का भाव 25 रुपये के सुधार के साथ 2,335-2,635 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।

कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का दाम 325 रुपये की मजबूती के साथ 9,425 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। जबकि पामोलीन दिल्ली का भाव 200 रुपये के सुधार के साथ 10,525 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 300 रुपये के सुधार के साथ 9,725 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

बिनौला तेल 350 रुपये के सुधार के साथ 10,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

भाषा राजेश रमण

रमण



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