(अनिसुर रहमान)
ढाका, एक अगस्त (भाषा) बांग्लादेश ने देशव्यापी अशांति के चलते जन सुरक्षा के लिए उत्पन्न खतरे का हवाला देते हुए आतंकवाद रोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी और इसकी छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर पर बृहस्पतिवार को प्रतिबंध लगा दिया।
सरकार ने आरोप लगाया कि जमात-ए-इस्लामी उस आंदोलन को भड़का रही है, जिसमें कम से कम 150 लोग मारे गए। गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि सरकार के पास ‘‘पर्याप्त सबूत’’ हैं कि जमात-ए-इस्लामी और उसके अग्रणी संगठन इस्लामी छात्र शिबिर के कार्यकर्ता हाल की हत्याओं, विध्वंसकारी और चरमपंथी गतिविधियों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे।
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख सहयोगी जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध के मद्देनजर पूरे देश में सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक कार्यक्रम में कहा कि जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्र शिबिर के कार्यकर्ता प्रतिबंध लगाए जाने के बाद ‘‘भूमिगत हो सकते हैं और विनाशकारी गतिविधियों में संलिप्त हो सकते हैं’’ तथा उनसे ‘‘चरमपंथी समूह’’ के रूप में निपटा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह, हमें उनसे एक चरमपंथी समूह के रूप में निपटना होगा और लोगों की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करना होगा। बांग्लादेश की धरती पर चरमपंथियों के लिए कोई जगह नहीं है।’’
जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख डॉ. शफीकुर रहमान ने संविधान का उल्लंघन करके बांग्लादेश की ‘‘सबसे पुरानी पारंपरिक लोकतांत्रिक पार्टी’’ पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेश की कड़ी निंदा की। उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘हम सरकार के इस असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और अन्यायपूर्ण निर्णय की कड़ी निंदा करते हैं और इसका विरोध करते हैं।’’
रहमान ने बांग्लादेश के लोगों से अपील की कि वे ‘‘सरकार द्वारा किए गए सामूहिक नरसंहार, मानवाधिकारों की अवहेलना, उत्पीड़न और उनकी पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के हालिया असंवैधानिक निर्णय के खिलाफ व्यवस्थित रूप से अपनी आवाज बुलंद करें।’’
इस बीच, गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल ने कहा कि किसी भी हिंसक घटना पर सख्ती से निपटा जाएगा तथा सुरक्षा एजेंसियों को कड़ी निगरानी रखने के आदेश दिए गए हैं।
यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग के नेतृत्व वाले 14-दलों गठबंधन की बैठक के बाद हुआ है। इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया था कि जमात को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
जमात पर प्रतिबंध लगाने का हालिया निर्णय 1972 में ‘‘राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म का दुरुपयोग’’ करने के कारण लगाए गए प्रारंभिक प्रतिबंध के 50 वर्ष बाद आया है।
जमात ने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध किया था और मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों का पक्ष लिया था। अधिसूचना में जमात-ए-इस्लामी और उसके अग्रणी संगठन की 1971 में भूमिका को पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के चार कारणों में से एक बताया गया है।
सरकार ने प्रतिबंध लगाने का कारण हालिया प्रदर्शनों में पार्टी की संलिप्तता का उल्लेख किया है। नौकरी में आरक्षण के खिलाफ हालिया विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सेना को उतारा गया। हिंसा में कम से कम 150 लोग मारे गए।
भाषा आशीष पवनेश
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