बांकेबिहारी मंदिर के सेवायतों ने मुस्लिम कारीगरों पर प्रतिबंध की मांग को नकारा

Ankit
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मथुरा (उप्र), 13 मार्च (भाषा) वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों ने भगवान के लिए मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाई जाने वाली पोशाकों का इस्तेमाल बंद करने की मांग को खारिज कर दिया है और इस बात पर बल दिया कि मंदिर की परंपराओं में धार्मिक भेदभाव का कोई स्थान नहीं है।


यह मांग श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष न्यास के नेता दिनेश शर्मा ने उठाई थी। उन्होंने मंदिर प्रबंधन से मुस्लिम कारीगरों की सेवा लेने से बचने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि भगवान कृष्ण की पोशाक केवल उन लोगों द्वारा तैयार की जाए जो ‘‘धार्मिक शुचिता’’ का ध्यान रखते हों।

मंदिर के सेवायतों को लिखे पत्र में दक्षिणपंथी समूह ने दलील दी कि भगवान की पोशाक उन लोगों द्वारा नहीं बनाई जानी चाहिए जो ‘‘मांस खाते हैं और हिंदू परंपराओं या गोरक्षा का सम्मान नहीं करते हैं’’।

पत्र में यह भी चेतावनी दी गई कि अगर मांग को नहीं माना गया तो संगठन विरोध-प्रदर्शन शुरू करेगा।

मांग को नकारते हुए मंदिर के सेवायत ज्ञानेंद्र किशोर गोस्वामी ने कहा, ‘‘ऐसा किया जाना संभव ही नहीं है। वैसे भी, हम किसी सम्प्रदाय विशेष से भेदभाव या परहेज नहीं करते। जो श्रद्धालु ठाकुरजी को पोशाक अर्पित करते हैं वे स्वयं शुचिता का पालन करके ही पोशाक बनाते हैं।’’

गोस्वामी ने कहा कि कारीगरों का मूल्यांकन धर्म के आधार पर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों से ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला दिया जहां पुण्य और पापी दोनों व्यक्ति एक ही परिवार में पैदा हुए।

उन्होंने कहा, ‘‘भगवान कृष्ण के नाना उग्रसेन के परिवार में कंस जैसे पापी का जन्म हुआ तो हिरण्यकश्यप जैसे हरि विरोधी के घर में प्रह्लाद रूपी नारायण भक्त ने जन्म लिया। इस प्रकार कहना यह है कि अच्छे और बुरे मनुष्य तो कहीं भी, किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या कुल में हो सकते हैं।’’

सेवायतों ने मंदिर की परंपराओं में मुस्लिम कारीगरों के योगदान पर भी प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा, ‘‘जिस प्रकार मथुरा-वृन्दावन में बड़ी संख्या में मुस्लिम कारीगर ही ठाकुरजी के मुकुट और पोशाक बनाते हैं, उसी प्रकार काशी में भगवान शिव के लिए रुद्राक्ष की मालाएं मुस्लिम परिवार ही बनाते हैं।’’

ऐतिहासिक उदाहरणों का हवाला देते हुए, उन्होंने याद दिलाया कि मुगल सम्राट अकबर ने एक बार मंदिर से जुड़े एक पूज्य संत स्वामी हरिदास को भगवान कृष्ण की पूजा के लिए इत्र भेंट किया था।

उन्होंने कहा, ‘‘आज भी, मुस्लिम समुदाय के संगीतकार विशेष अवसरों पर नफीरी (एक पारंपरिक वाद्य यंत्र) बजाते हैं।’’

नाम न उजागर करने की शर्त पर मंदिर के एक अन्य सेवायत ने कहा कि यह प्रस्ताव ‘‘अव्यवहारिक’’ है और भगवान की पोशाक, मुकुट और जरदोजी बनाने वाले कुशल कारीगरों में से लगभग 80 प्रतिशत मुस्लिम हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘केवल पोशाक ही नहीं, बल्कि मंदिर की लोहे की रेलिंग, ग्रिल और अन्य संरचनाएं भी उनके द्वारा बनाई जाती हैं। हम प्रत्येक कारीगर की व्यक्तिगत शुचिता कैसे परख सकते हैं?’’

उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण को प्रतिदिन लगभग एक दर्जन पोशाकों और एक वर्ष में हजारों पेशाकों की आवश्यकता होती है तो ऐसे में भला मुस्लिम कारीगरों की जरूरत को कैसे नकारा जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘अन्य समुदायों के पास इन पोशाकों को तैयार करने में समान स्तर की विशेषज्ञता नहीं है।’’

मंदिर प्रशासक उमेश सारस्वत ने खुद को इस मामले से अलग करते हुए कहा कि ठाकुर जी की सेवा-पूजा एवं भोगराग की जिम्मेदारी सेवायत गोस्वामियों के ही हाथों में होती है।

सारस्वत ने कहा, ‘‘हमारी भूमिका मंदिर परिसर और रसद व्यवस्थाओं के प्रबंधन तक सीमित है।’’

भाषा सं जफर मनीषा खारी

खारी



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