नयी दिल्ली, 10 दिसंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कानूनों को उपनिवेशवाद से मुक्त कर और फौजदारी न्यायालयों में सुधार के जरिये एक करूणामय एवं ‘‘मानवीय न्याय प्रणाली’’ की मंगलवार को वकालत की।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) द्वारा आयोजित मानवाधिकार दिवस समारोह के अवसर पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मानवाधिकार को मानव से अलग नहीं किया जा सकता।
उन्होंने मानवाधिकारों को मानव समाज का आधार बताया और कहा कि वैश्विक शांति सुनिश्चित करना जरूरी है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह हमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर लाता है। और प्रश्न यह है कि एक करुणामय और मानवीय न्याय की मांग की जाए। हम इसे कैसे सुनिश्चित करें? हम अपनी कानून प्रणाली में इसे कैसे बढ़ावा दें?’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘फौजदारी न्यायालय ऐसे क्षेत्र हैं, जिन पर बहुत अधिक ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है। कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है।’’
उन्होंने फौजदारी अदालतों में स्थिति का उल्लेख किया और व्यवस्था में सुधार की वकालत करते हुए कहा कि जब एक अमीर व्यक्ति अदालत में पेश होता है तो इसका उस पर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन यदि एक रिक्शा चालक एक दिन भी अदालत में बिताता है तो उसका जीवन और आजीविका प्रभावित होती है।
प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की संख्या का मुद्दा उठाया और कहा कि विचाराधीन कैदियों की संख्या (जेलों में) कुल कैदियों की क्षमता से अधिक है। उन्होंने आंकड़े साझा करते हुए कहा कि देशभर की जेलों की क्षमता कुल 4.36 लाख विचाराधीन कैदी रखे जाने की है, लेकिन वर्तमान में जेलों में लगभग 5.19 लाख कैदी हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘अत्यधिक संख्या में कैदियों के होने का असर विशेष रूप से विचाराधीन कैदियों पर पड़ता है, इससे समाज से उनका संबंध टूट जाता है। यह उन्हें अपराधीकरण के चक्र में धकेलता है और समाज की मुख्य धारा में उनका पुनः एकीकरण एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है।’’
कार्यक्रम में विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी आर गवई और उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में शीर्ष न्यायालय, दिल्ली उच्च न्यायालय और अधीनस्थ अदालतों के कई अन्य न्यायाधीश भी शामिल हुए।
न्यायमूर्ति गवई ने अपने संबोधन में कहा कि नालसा का उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना तथा देश के दूरदराज के स्थानों पर भी उनके लिए न्याय सुलभ करना है।
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने बुजुर्ग और असाध्य रूप से बीमार कैदियों की दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार के तहत प्रदान की जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा अक्सर उनके लिए ‘‘सैद्धांतिक और मुश्किल’’ बनी रहती है।
कार्यक्रम में नालसा के ‘‘बुजुर्ग कैदियों और असाध्य रूप से बीमार रोगियों के लिए विशेष अभियान’’ की शुरुआत की गई।
भाषा सुभाष पवनेश
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