पेड़ों की कटाई को लेकर तेलंगाना को न्यायालय की फटकार, 100 एकड़ वनभूमि बहाल करने की योजना देने को कहा

Ankit
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नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास एक भूखंड पर पेड़ों को काटने के लिए जल्दबाजी में की गई कार्रवाई के वास्ते तेलंगाना सरकार को बुधवार को फटकार लगाई और निर्देश दिया कि यदि वह (राज्य सरकार) चाहती है कि उसके मुख्य सचिव को “किसी भी गंभीर कार्रवाई से बचाया जाए” तो वह कटाई से प्रभावित 100 एकड़ की वनभूमि पर फिर से पेड़ लगाने के लिए एक विशिष्ट योजना प्रस्तुत करे।


पेड़ों को काटने की कांग्रेस सरकार की ‘अत्यधिक जल्दबाजी’ पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह (अदालत) पर्यावरण की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि उच्चतम न्यायालय की पहली चिंता पर्यावरण की बहाली है। पीठ ने यह भी कहा कि कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र में इस भूमि पर एक भी पेड़ अब नहीं काटा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति गवई ने तेलंगाना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी से कहा, ‘यदि आप चाहते हैं कि आपके मुख्य सचिव या सचिवों को किसी भी कठोर कार्रवाई से बचाया जाए, तो आपको एक योजना बनानी होगी कि आप उस 100 एकड़ भूमि पर पेड़ कैसे लगाएंगे।’

पीठ ने कहा कि अपने कदम को उचित ठहराने के बजाय, राज्य सरकार के लिए बेहतर तरीका यह होगा कि वह वृक्ष आवरण को बहाल करने की योजना लेकर आए।

इसने कहा, ‘‘अन्यथा, हम नहीं जानते कि आपके कितने अधिकारियों को उसी स्थान पर बनाई जाने वाली अस्थायी जेल में जाना पड़ेगा।’’

पीठ ने कहा कि वह उन वीडियो को देखकर आश्चर्यचकित है जिसमें शाकाहारी जानवर आश्रय की तलाश में यहां वहां भटक रहे हैं। इसने कहा कि यह भी बताया गया कि इनमें से कुछ जानवरों को आवारा कुत्तों ने काट लिया।

पीठ ने कहा, ‘हम तेलंगाना राज्य के वन्यजीव वार्डन को निर्देश देते हैं कि वह 100 एकड़ वनों की कटाई के कारण प्रभावित हुए वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदमों की जांच करें और उन्हें तत्काल लागू करें।’

न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, ‘छुट्टियों के तीन दिनों में ऐसा करने की क्या जल्दी थी?’

पीठ ने कहा कि उसे केवल पर्यावरण की चिंता है और राज्य इसे कैसे बहाल करेगा।

इसने कहा, ‘पर्यावरण और पारिस्थितिकी की सुरक्षा के लिए हम हरसंभव प्रयास करेंगे।’ पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शीर्ष अदालत ‘कुछ भी कर सकती है।’

संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को अपने समक्ष किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ सुनिश्चित करने के लिए कोई भी आदेश पारित करने की व्यापक शक्तियां प्रदान करता है।

इस महीने की शुरुआत में, हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने विश्वविद्यालय की सीमा से लगे 400 एकड़ भूमि को विकसित करने की राज्य सरकार की योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था।

सिंघवी ने अदालत को बताया कि संबंधित क्षेत्र में सभी गतिविधियां रोक दी गई हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि हाथियों की फर्जी तस्वीरें प्रसारित की जा रही हैं।

पीठ ने कहा कि वह केवल इस बात से चिंतित है कि कैसे सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना बड़ी संख्या में पेड़ों को काट दिया गया और कैसे 100 एकड़ क्षेत्र को साफ करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया।

सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पीठ ने कहा कि उत्तराखंड में चारधाम परियोजना जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए भी केंद्र को अदालत में वर्षों तक लड़ाई लड़नी पड़ी।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘शहर में हरित क्षेत्र होने चाहिए जैसे कि बम्बई, चेन्नई और जयपुर में हैं।’

शुरुआत में सिंघवी ने पीठ को बताया कि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट दायर की है और राज्य सरकार को इसका जवाब देने के लिए कुछ समय चाहिए।

पीठ ने तेलंगाना को सीईसी की रिपोर्ट पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया तथा मामले की अगली सुनवाई 15 मई को तय की।

पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘इस बीच, वहां एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा।’

न्याय मित्र के तौर पर न्यायालय की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कहा कि सीईसी रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार ने इस क्षेत्र की भूमि को 10,000 करोड़ रुपये में एक निजी पार्टी को गिरवी रख दिया था।

शीर्ष अदालत ने तीन अप्रैल को कांचा गाचीबोवली वन क्षेत्र में राज्य के पेड़ कटाई अभियान का स्वत: संज्ञान लिया था और इसे ‘‘बहुत गंभीर’’ मामला बताया था।

भाषा नोमान सुरेश

सुरेश



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