नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा (आईएमएनएस) से अवकाशप्राप्त एक महिला की नियुक्ति का आदेश देते हुए कहा कि रक्षा बलों के सेवारत सदस्यों का मनोबल बनाए रखने के लिए पूर्व सैनिकों का प्रभावी पुनर्वास आवश्यक है।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अगर पूर्व सैन्य कर्मियों के पुनर्वास की उपेक्षा की जाती है, तो प्रतिभाशाली युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत एक पूर्व सैनिक द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने एक महिला उम्मीदवार की याचिका को स्वीकार कर लिया था और उनकी तत्काल नियुक्ति का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ता एक पूर्व सैनिक हैं जिन्होंने भारतीय सेना के मेडिकल कोर में कैप्टन के रूप में काम किया था। उन्हें विज्ञापन के तहत पंजाब सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) में अतिरिक्त सहायक आयुक्त (प्रशिक्षण के तहत) के रूप में चुना गया और नियुक्त किया गया और वह 2022 में सेवा में शामिल हुए।
प्रतिवादी संख्या 4 को आईएमएनएस से मुक्त कर दिया गया था और उन्होंने भी उसी विज्ञापन के तहत ‘पूर्व सैनिक’ के रूप में आवेदन किया था, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को राज्य द्वारा 2021 में इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि वह इस श्रेणी के तहत योग्य नहीं हैं।
महिला की उम्मीदवारी की अस्वीकृति के खिलाफ उनकी रिट याचिका को एकल न्यायाधीश ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आईएमएनएस कर्मी ‘पूर्व सैनिक’ श्रेणी के तहत आरक्षण लाभ का दावा नहीं कर सकते।
हालांकि, खंडपीठ ने प्रतिवादी संख्या 4 की अपील को स्वीकार कर लिया और इस निष्कर्ष पर पहुंची कि भर्ती को नियंत्रित करने वाले प्रासंगिक नियम, यानी पंजाब पूर्व सैनिक भर्ती नियम, 19823 उन व्यक्तियों को पूर्व सैनिकों को उपलब्ध लाभ का दावा करने से अयोग्य नहीं ठहराते हैं जो आईएमएनएस से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
नतीजतन, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रतिवादी संख्या 4, यदि योग्य पाई जाती हैं, तो उन्हें तुरंत नियुक्त किया जाए और सेवा के लाभ दिए जाएं।
भाषा वैभव अविनाश
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