रायपुर, सात जनवरी (भाषा) छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सोमवार को विस्फोट में सुरक्षाबल के आठ जवानों समेत नौ लोगों की मौत की घटना में मटवाड़ा एलओएस (स्थानीय संगठन दस्ता) के माओवादियों के शामिल होने का संदेह है। पुलिस अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि हमले में इस्तेमाल की गई लगभग 70 किलोग्राम वजनी बारूदी सुरंग कई महीने पहले जमीन के नीचे लगाई गई थी और इलाके में बारूदी सुरंगों को हटाने की लगातार कोशिशों के बावजूद इस सुरंग का पता नहीं लग पाने के संबंध में जांच जारी है।
जिले के कुटरू थाना क्षेत्र के अंबेली गांव के करीब सुरक्षाकर्मियों को ले जा रहे काफिले में शामिल एक वाहन को नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट करके उड़ा दिया था। इस घटना में आठ सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। इनमें जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और बस्तर बस्तर फाइटर्स के चार-चार जवान शामिल थे। यह पिछले दो साल में छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों पर नक्सलियों द्वारा किया गया सबसे बड़ा हमला है।
बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि मटवाड़ा एलओएस के माओवादी कुटरू क्षेत्र में सक्रिय है, जो माओवादियों के भैरमगढ़ और नेशनल पार्क एरिया कमेटी का संगम भी है। प्रारंभिक जांच के बाद इस बात का संदेह है कि मटवाड़ा एलओएस के सदस्यों ने एरिया कमेटी के सदस्यों के साथ मिलकर घटना को अंजाम दिया लेकिन इसकी जांच की जा रही है।
सुंदरराज ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि विस्फोटकों का वजन 50 किलोग्राम से अधिक था और इसे लगभग छह महीने या एक साल पहले सड़क के नीचे चार-पांच फुट गहराई में लगाया गया था, क्योंकि इसके आस-पास मिट्टी की हाल में खुदाई का कोई सबूत नहीं मिला है। विस्फोटक और बैलिस्टिक विशेषज्ञ इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्षेत्र में लगातार बारूदी सुरंगों को हटाए जाने के बावजूद विस्फोटक का पता कैसे नहीं चल पाया।
उन्होंने कहा कि विस्फोटक को किसी गैर-धातु वाली वस्तु या प्लास्टिक की थैली में पैक किया गया होगा। पुलिस अधिकारी ने विस्फोटक की प्रकृति के बारे में कहा कि अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की संभावना है, लेकिन जांच के बाद सटीक जानकारी मिली सकेगी।
मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के उल्लंघन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सुरक्षाकर्मियों ने इसका पालन किया। अबूझमाड़ में तीन दिन चले अभियान को पूरा करने के बाद एक हजार से अधिक सुरक्षाबलों के विभिन्न दल छह जनवरी की सुबह बेदरे (बीजापुर) पहुंचे थे।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस उप महानिरीक्षक (दक्षिण बस्तर) कमलोचन कश्यप और दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक गौरव राय उसी मार्ग का प्रयोग करते हुए दंतेवाड़ा से बेदरे पहुंचे थे जिसका सुरक्षा बलों की सुरक्षित वापसी के लिए पहले मुआयना किया गया था। अभियान से वापस आते समय कुछ स्थानों पर सुरक्षा बलों को लाने-ले जाने के लिए वाहनों का उपयोग किया जाता है।
उन्होंने बताया कि सोमवार को भी सुरक्षा बल के जवान जंगल में अभियान के दौरान 70-80 किलोमीटर पैदल चलने के बाद बेदरे पहुंचे, जिसके बाद उन्हें चार पहिया वाहनों और मोटरसाइकिलों से उनके ठिकानों पर भेजा जा रहा था।
अधिकारी ने बताया कि डीआरजी और बस्तर फाइटर्स के दल लगभग 12 वाहनों में बेदरे से रवाना हुए थे। वाहन क्रम से चल रहे थे, लेकिन दोनों के बीच की दूरी 300-500 मीटर थी। जिस वाहन को निशाना बनाया गया, वह सातवें स्थान पर था।
उन्होंने बताया कि विस्फोट इतना भीषण था कि वाहन के हिस्से विस्फोट स्थल से 100-150 मीटर दूर पाए गए। वाहन के कुछ हिस्से पीछे से आ रहे वाहन से टकराए, जिससे उसका ‘विंडशील्ड’ क्षतिग्रस्त हो गया, हालांकि, उस वाहन में सवार सुरक्षाकर्मियों को चोट नहीं आई।
सुंदरराज ने कहा, ”नक्सलियों द्वारा जंगलों और सड़कों पर लगाए गए आईईडी हमेशा से ही नक्सल विरोधी अभियानों में एक चुनौती रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उनसे निपट नहीं सकते।”
उन्होंने कहा, ”हमने पिछले साल सात जिलों वाले बस्तर संभाग में 311 आईईडी बरामद किए थे। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, लेकिन इससे सुरक्षा बलों के अभियान पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उनका मनोबल पिछले साल नक्सल विरोधी अभियान में सफलता हासिल करने के बाद से ऊंचा है।”
नक्सल मामलों को लेकर काम कर रहे विशेषज्ञों ने आशंका जताई कि ‘रोड ओपनिंग पार्टी’ (आरओपी) की ओर से चूक हुई।
नवागढ़ (बेमेतरा जिले) के एक सरकारी कॉलेज में सुरक्षा विशेषज्ञ और प्राधानाचार्य डॉ. गिरीशकांत पांडेय ने कहा, ”यह आश्चर्यजनक है कि आरओपी और बारूदी सुरंग हटाने की कवायद के बावजूद इतना शक्तिशाली विस्फोटक कैसे पकड़ा नहीं जा सका। सुरक्षा बल सड़क के दोनों ओर 100-150 मीटर तक बारूदी सुरंग हटाने के अभियान के दौरान उच्च प्रौद्योगिकी के ‘मेटल डिटेक्टर’ और खोजी कुत्तों का इस्तेमाल करते हैं।”
पांडेय ने कहा, ”जब सुरक्षा बलों की इतनी बड़ी आवाजाही हो रही थी, तो आरओपी को पूरे मार्ग पर तैनात रहना चाहिए था, जिससे संदिग्ध गतिविधि को देखा जा सके। विस्फोट को अंजाम देने वाले नक्सलियों की एक छोटी टीम विस्फोट करने के लिए सड़क के नज़दीक ही रही होगी।”
उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि आरओपी से चूक हुई।
भाषा संजीव
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